Wednesday, December 31, 2008

आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं

दस्विदानिया-२००८ dasvidaniya

नया वर्ष, नई उमंगे लेकर आया है। गत~ वर्ष की दुखदायी घटनाओं से भीगी पलकों को पोंछकर हम सब तैयार हैं नए वर्ष में नई खुशियों के सपने सजाने और उन्हें पूरा करने के लिए। इस कड़ी में हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है। जो आज है, वो कल नहीं था और न ही कल होगा। इसलिए अपने आज से बेहतर कल को बनाने के लिए जहां निरंतर परिश्रम की जरूरत हैं, वहीं नवीन चुनौतियों का सामना का सामना करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्म विश्वास की भी।
लेकिन इस सब के मध्य यह भी आवश्यक है कि हम बीते वर्ष ;बीत रहे वर्षद्ध की उन घटनाओं पर भी नजर डाले जिन्होंने हमारे मन-मस्तिष्क को झकझोरा। उस समय को याद कर अपनी मौन श्रद्धांजलि दंे, जब हमारा âदय दर्द से चीत्कार कर उठा था। उन पलों को पुन: भविष्य में जीने की आस रखे जब हमारा सिर गर्व से तन गया था। बीते वर्ष की इन्हीं भूली-बिसरी यादों को आपके सामने लेकर आए है दस्विदानिया-2008 में।



वैश्विक मंदी और धराशायी भारतीय शेयर बाजार: विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाले अमेरिका में सब प्राइम संकट ऐसा भूचाल लाया कि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की चूले हिल गर्इं। वैश्विक मंदी के इस चक्रव्यूह का भेदन करने के प्रयास निरंतर जारी हंै। अमेरिका के सबसे बड़े और पुराने बैंक लेहमैन और मेरिल लिंच इस आर्थिक सुनामी की भेंट चढ़ गए।

इस आर्थिक मंदी के कारण कुलांचे मार रहा भारतीय शेयर बाजार भी बेदम हो गया। विदेशी निवेशकों के शेयर बाजार से हाथ खींचने के कारण बीएसई औंधे मुंह जमीन पर आ गिरा। पहले जहां सेंसेक्स के 25-27 हजार तक पहुंचने के कयास लगाए जा रहे थे, वहीं बाद में सेंसेक्स के पांच हजारी होने की बात होने लगी। रातो-रात अमीर होने की चाह रखने वालों को शेयर बाजार ने जोर का झटका दिया और करोड़ों रुपये शेयर बाजार में डूब गए।

पहले लगी, फिर बुझी तेल की आग: महंगाई को बढ़ाने-घटाने में कच्चा तेल भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वर्ष 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में रिकाWर्ड वृद्धि और कमी हुई। कच्चे तेल के भाव वर्ष के मध्य में जहां 149 डाWलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे, वहीं वर्ष के अंत तक इनकी कीमतें मात्र 36 डाWलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई।


महंगाई की मार: वर्ष 2008 में मुदzास्फीति दर दो अंकों में पहुंच गई और आम आदमी को महंगाई की मार सहनी पड़ी। मुदzास्फीति की दर के 12 प्रतिशत के पास पहुंचने से सरकार ने आनन-फानन में अनेक रियायती कदम उठाए। कच्चे तेल की घटती कीमतों ने सरकार का साथ दिया और दिसंबर माह में मुदzास्फीति 6-7 प्रतिशत के बीच आ गई।


सबसे बड़ा आतंकी हमला: माया नगरी कहलाने वाली मुंबई के लिए 26 नवंबर की रात खौफ की रात बनकर आई। आतंकवादियों ने पहली बार छुपकर वार करने की जगह खुल्लम-खुल्ला मंुबई में एक साथ कई स्थानों पर हमला किया और 200 से अधिक लोगों को मार डाला। 10 आतंकवादियों ने मुंबई के चर्चित स्थानों पर गोलाबारी की। ताज तथा ट्राइडेंट होटल तथा नरीमन प्वाइंट को अपने कब्जे में कर लिया जिसे मुक्त कराने में कमांडों को लगभग 60 घंटे लगे। इस आतंकवादी हमले के कारण गृहमंत्री शिवराज पाटिल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख तथा गृहमंत्री आर.आर.पाटिल को अपने-अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।

संसद में नोट: वामदलों के केंदzीय सरकार से समर्थन लेने के बाद अल्प मत में आई यूपीए सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना पड़ा। कुछ सांसदों ने सरकार पर उन्हें खरीदने का आरोप लगाया और सदन में नोटों के बंडल दिखलाए।
फैशन मंत्री: राजधानी दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद स्थिति का जायजा लेने पहुंचे गृहमंत्री शिवराज पाटिल द्वारा तीन-तीन बार ड्रेस बदलने के कारण मीडिया ने उनकी बहुत किरकिरी हुई।


मुंबई राज: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा मुंबई में उत्तर वासियों के विरूद्ध छेड़े गए आंदोलन की देश भर में जमकर आलोचना हुई।


दिल्ली में शीला की हैट्रिक: 4 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को कांगzेस ने गहरा झटका दिया। कांगzेस जहां शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में अपनी सत्ता को बचाने में कामयाब रही, वहीं राजस्थान में उसने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। मिजोरम में भी कांगzेस की वापिसी हुई। भाजपा की दिल्ली विधानसभा में परचम लहराने की तमाम कवायद खोखली साबित हुई। पार्टी की अपने वरिष्ठ सांसद विजय मल्होत्रा को दिल्ली विधानसभा चुनावों में सीएम इन वेटिंग का झंडा पकड़वाना भारी पड़ा। मल्होत्रा अपनी सीट तो बचा गए, परंतु पार्टी चुनावों में हार गई। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह अपनी-अपनी सरकार पुन: बनाने में कामयाब रहे। जम्मू-कश्मीर में कांगzेस-नैकां का गठबंधन हुआ।


नहीं आई नैनो: लोगों का लखटकिया कार पाने का सपना, सपना ही बनकर रह गया। पश्चिम बंगाल में तीवz विरोध के कारण रतन टाटा की नैनो इस वर्ष लाने की योजना अधर में लटक गई।


खत्म हुआ फैब फोर का युग: भारतीय क्रिकेट में फेवरेट फोर युग का अंत सौरभ गांगुली और अनिल कुंबले के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के साथ खत्म हो गया। गांगुली आईपीएल के 20-20 क्रिकेट मैचों में फिलहाल नजर आएंगे।

सचिन ने तोड़ा रिकाWर्ड: भारतीय क्रिकेट के गाWड कहे जाने वाले सचिन तेंडुलकर ने टेस्ट मैचांे में सबसे ज्यादा रन बनाने का श्रेय हासिल किया।

आईपीएल में छाया वाWर्न का जादू: स्पिन गेंदबाजी के जादूगर कहे जाने वाले शेन वाWर्न का जादू इंडियन प्रीमियर लीग में सबके सिर चढ़कर बोला। आयोजन में सबसे कमजोर टीम का नेतृत्व करने वाले शेन वाWर्न ने टीम की एकजुटता तथा अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राजस्थान राWयल्स को आईपीएल का खिताब दिलवाया।

धोनी की धूम: भारतीय क्रिकेट जगत में महेंदz सिंह धोनी की धूम मची हुई है। धोनी वन-डे, टेस्ट तथा 20-20 मैचों में भारतीय टीम के कप्तान हैं।

लगा निशाना: चीन ओलंपिक भारत के लिए यादगार बना। ओलंपिक में निशानेबाज अभिनव बिंदzा ने पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता। वहीं बाWक्सिंग में विजेंदz तथा कुश्ती में सुशील कुमार ने कास्य पदक जीते।

कोसी में बाढ़: बिहार राज्य को कोसी में आई भीषण बाढ़ से जूझना पड़ा। बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया।

सीमा पर तनाव: पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दवाब बना हुआ है जिसके कारण सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ गई है।

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य

नेपाल में राजशाही की जगह लोकतंत्र: नेपाल में राजवंश का शासन समाप्त करके माओवादियों द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से सरकार बनाई।

पाकिस्तान में जरदारी राष्ट्रपति:
परवेश मुशर्रफ के स्थान पर स्व. बेनजीर भुट~टो के पति आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बने।

बराक ओबामा: अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय बराक ओबामा ने जोड़ दिया है। ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति हैं।

परमाणु करार: भारत तथा अमेरिका के मध्य होने वाला 123 परमाणु करार अंतत: सिरे चढ़ ही गया। हालांकि इस करार को लेकर विपक्षी दलों की अपनी आशंकाएं है। उनका मानना है कि इस करार से भारत को कई प्रतिबंध लग सकते हंै।

बुश पर जूता फेंका: अमेरिकी राष्ट्रपति जाWर्ज बुश पर इराक में आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान जूते फैंके गए। जूते फैंकने वाले इराकी शख्स के जूतों की कीमत करोड़ों में लगाई जा रही है।

महाप्रयोग: जिनेवा में वैज्ञानिकों ने एक महाप्रयोग कर बzãांड के रहस्यों को सुलझाने की पहल की। इस प्रयोग के तहत लगभग 27 किलोमीटर लंबी एक सुरंग जमीन के नीचे बनाई गई। इस महाप्रयोग से पृथ्वी के नष्ट हो जाने के कयास लगाए गए।

एलियन: परगzही यानि एलियन के अस्तित्व को लेकर पूरे वर्ष ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया सक्रिय रहा।

Wednesday, December 24, 2008

जूता महात्मय

अभी तक तो हम इस गलफत में थे कि मात्र अपने ही देश में जूते को तव्ज्जों दी जाती है, परंतु अब जाकर पता चला कि संपूर्ण विश्व ही जूतामय है। संपूर्ण विश्व जूते में है और जूता विश्व में। जूता वास्तविकता में ग्लोबल है।
जूतों की सर्वव्यापक महत्ता को जानकर अब मजनूओं, कविया ेंऔर नेताओं के प्रति आगाध श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाता है, जो अक्सर जूतों का रसास्वादन करते रहते हैं। पहले जिन्हें तुच्छ समझता था, अब उनकी अहमियत का पता चलता है।
आदिकाल से लेकर आधुनिककाल तक के साहित्य पर नजर दौड़ाने पर एक भी ऐसा उच्चकोटि का साहित्यकार नहीं मिलता, जिसने जूते के महत्व को जानकर उसके गुणों का बखान किया हो।
प्रेमिकाओं के नख-शिख सौंदर्य का ही वर्णन करके चुक जाने वाले साहित्यकार कभी-भी जूते में निहित सौंदर्य और उसके बहु आयामी उपयोग को समझ ही नहीं पाए। वो तो जूते को पांव की जूती ही समझते रह गए।
भला हो बुश साहब का जो अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम दिनों में जूते को महत्व दिलवा गए वर्ना अमेरिकी हवाई अड~डों पर अपने कपड़े-जूते सब कुछ उतार देने वाले लोग तो इस अहमियत से अछूते ही रहे।
यह बुश साहब की ही करामात है जिनके चाहने या न चाहने पर भी आर्थिक मंदी के महादौर में संपूर्ण विश्व को पता चल गया कि एक जूता आदमी को करोड़पति भी बना सकता है। अब तो यह लगने लगा है कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज आग या पहिया को न मानकर जूते को ही माननी चाहिए। जूते जब चाहें पहनों और जब चाहों चलाओ। देखा जाए तो जूता जहां पैरों के लिए ढाल है, तो वहीं यह मिसाइल बनकर दूर तक वार करने में भी सक्षम हैं। हां, इतना अवश्य है कि जूते की मारक क्षमता और तय दूरी फैंकने वाले की हिम्मत और शारीरिक ताकत पर ही निर्भर है। चूंकि अब तक जूतों को त्याज्य मानकर उन पर कोई सटीक अनुसंधान नहीं हुआ इसलिए उन पर कोई ऐसी दिशानिर्देशक चिप लगाने की व्यवस्था नहीं हो सकी जिससे वो ठीक निशाने पर लगे। उम्मीद की जा सकती है कि शीघz ही इस पर भी गहन अनुसंधान होगा और बाजारों में ऐसे जूते मिलने लगेंगे।
वर्तमान की घटनाओं को देखते हुए बोर्ड की परीक्षाओं में जुटे बच्चों को भी जूते की उपयोगिता के संदर्भ में अपनी जानकारी को परिपक्व करना चाहिए, ताकि परीक्षा में इस प्रकार कोई निबंध लिखने को मिलता है तो उन्हें परेशानी न हो।

Saturday, August 2, 2008

पप्पू की पढ़ाई और धोनी की एडमिशन

पप्पू की पढ़ाई और धोनी की एडमिशन सुनने में भले ही यह अजीब लगे कि पप्पू की पढ़ाई से धोनी की एडमिशन का कोई संबंध है, पर देखें तो बहुत गहरा संबंध है। हमारे देश में धोनी भले ही एक हो, परंतु पप्पूओं की संख्या हजारों-लाखों में है। हर पप्पू का बस यही सपना है कि लोग चिल्लाकर कहेंगे कि पप्पू पास हो गया है। पर कमबख्त, शिक्षा विभाग के अड़ियल रवैये के कारण एक पप्पू तो पिछले कई दशकों से दसवीं पास करने में जुटा है और अन्य कर्ई पप्पूओं को रेग्यूलर स्कूल, काWलेज में एडमिशन लेने के लिए भागीरथी प्रयास करने पड़ रहे हैं। वहीं अपने धोनी को स्नातक बनाने के लिए काWलेज प्रशासन शिक्षा विभाग तमाम नियम-मसौदों में हेर-फेर करने की जुगत लड़ा रहा है। अब तो बात आपको भी लाWजिंग क्लियर हो गया होगा कि पप्पू की पढ़ाई से धोनी की एडमिशन का संबंध परमाणु करार मुíे पर एकजुट कांगzेस और सपा से भी ज्यादा है। इसलिए देश का हर पप्पू अब धोनी को अपना आदर्श मानता है। माने भी क्यूं न, धोनी से उन्हें प्रेरणा मिलती है, खेलने की। अब आप यह सोचने लग जाएगे कि बात तो पप्पू की पढ़ाई की हो रही थी, फिर खेलने की बात कहां से आ गई। अब बात आ ही गई है तो समझ भी लें। पप्पूओं को धोनी से पेzरणा मिली खेलने की, अगर सभी पप्पू, धोनी की तरह खेलेंगे तो, वो दमादम नाम कमाएंगे।
नाम कमाएंगे तो धन वर्षा भी होगी और वो स्टार आइकाWन भी बन जाएंगे। अपने देश की जनता और मीडिया को प्रेम ही क्रिकेट से है। ऐसे में जब वो हर ओर छा जाएंगे तो उन्हंे भी आसानी से एडमिशन मिल जाएगा और फिर जनता जर्नादन एक साथ चीखेगी, पप्पू पास हो गया। अब आई बात समझ में। अब ज्यादा होशियार बनकर यह मत सोचने लग जाइएगा कि जब सभी पप्पू, धोनी की तरह खेलेंगे तो धोनी कहां खेलेगा।

मेट्रो की स्थिति


राजधानी दिल्ली में ‘मेट्रो’ नाम एक अनूठी संकल्पना को सहेजे हुए है। यह संकल्पना मेट्रो के सुव्यवस्थित परिचालन, चाक-चौबंद सुरक्षा एवं व्यवस्था आदि से निर्मित है। यह कहना औचित्यपूर्ण नहीं है कि राजधानी में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के बाद आम आदमी से जुड़ी यदि कोई सेवा दिल्लीवासियों को सहजता का आभास कराती है तो वह दिल्ली मेट्रो ही है। साफ-सुथरे हाईटेक प्लेटफार्म, सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था, निर्बाध गति से मेट्रो का परिचालन, कुल मिलाकर विश्वस्तरीय सरीखी सुविधाएं जो सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट में उपलब्ध नहीं हो सकती, वो मेट्रो द्वारा गत~ कई वर्षों से प्रदान की जा रही है।
राजधानी में मेट्रो का निर्माण जिस समय प्रारंभ हुआ था, उस समय प्राय: आम जन की राय यही थी कि यह वृहद परियोजना मात्र दिवास्वप्न ही साबित होगी और यदि यह परियोजना ठंडे बस्ते में नहीं गई तो इसके पूर्ण होने में कुछ वर्ष नहीं, बल्कि कई दशक सहज ही लग जाएंगे। सरकारी परियोजनाओं के संदर्भ में यह बात झूठी भी नहीं मानी जा सकती। हालांकि मेट्रो इसमें अपवाद ही रही। भूमिगत मेट्रो मार्ग हो या Åंचे-Åंचे पिलरों पर मेट्रो ट्रेक बिछाने का कार्य, डीएमआरसी ने हर जगह सफलता का इतिहास रचा। लेकिन अब यहीं मेट्रो विवादों के घेरे में घिरती जा रही है। मेट्रो निर्माण स्थल में होने वाले हादसों के कारण मेट्रो की कार्यप्रणाली के समक्ष प्रश्नचिह~न लगने प्रारंभ हो गए हैं। कभी मेट्रो मार्ग के निर्माण स्थल पर लोहे का गार्डर गाड़ी के Åपर गिर जाता है, तो कभी लोहे की छड़ व्यक्ति के आर-पार हो जाती है। मेट्रो निर्माण स्थल पर इस प्रकार की असावधानी मेट्रो की बिगड़ती प्रबंधकीय व्यवस्था की ओर साफ इशारा करती हैं। केंदzीय सचिवालय से दिल्ली विश्वविद्यालय मार्ग तक मेट्रो के परिचालन में मिलने वाली ढेर सारी शिकायतों से आहत दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्वयं मेट्रो में सवार होकर इसका निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बात को महसूस किया कि मेट्रो व्यवस्था में गिरावट आनी शुरू हो चुकी है। कमाई के मामले में मेट्रो आए दिन ही रिकाWर्ड बना रही है। परंतु जिन सुविधाओं के परिणामस्वरूप दिल्ली की जनता ने मेट्रो को सर-माथे पर बिठाया था, अब वहीं धीरे-धीरे नदारद होती जा रही है। देखा जाए तो डीएमआरसी का लगभग सारा ध्यान मेट्रो के माध्यम से मोटी कमाई करने का बन चुका है। डीएमआरसी जितना आतुर कमाई करने के लिए हो रखा है, उतना ही वह कम ध्यान यात्रियों की सुविधाओं पर दे रहा है। यदि स्थिति यही रही तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली मेट्रो की स्थिति भी डीटीसी की तरह हो जाएगी।

Saturday, July 19, 2008

व्यंग्य देश के भविष्य का सवाल


गुप-चुप से बैठे छेदीलाल बार-बार अपने मोबाइल फोन को इस तरह निहार रहे हैं, जैसे कोई पुराना शराबी, खाली पड़ी शराब की बोतल को बड़े अरमानों के साथ देखता है। पिछले कई दिनों से एकांतवास में बैठे छेदीलाल खुद को कोसते नहीं थकते। केंदz सरकार के अस्थिर होते ही सांसदों के जोड़-तोड़ की खबरे जैसे हीं मीडिया में सुनामी की तरह आने लगी, उसी समय मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह छेदीलाल भी अपना बोरिया-बिस्तर समेट एकांतवास में निकल गए।
आज चार दिन बीत जाने के बाद भी जब किसी पार्टी ने उन्हें फोन करके हाल-चाल नहीं पूछा तो उनका धैर्य भी चुकने लगा। मन ही मन मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे। मीडिया वालों ने व्यर्थ का हो-हल्ला मचा कर रखा हुआ है...सांसदों की लाWटरी लगने वाली है। यहां तो पिछले चार दिन से फोन की घंटी तक नहीं बजी। न तो मीडिया ने उन्हें विशषज्ञ मान उनसे कुछ पूछा और न किसी राजनीतिक दल ने कि आप किस ओर हैं।
पहले छेदीलाल जी को इस बात का गम सालता था कि कोई भी पार्टी उन्हें टिकट न देकर समाजसेवा करने से वंचित कर रही है।और जब वो जैसे-तैसे जोड़-तोड़ संसद पहुंचे तो अब उन्हें यह बात अंंदर ही अंदर ही खाए जा रही है कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें देश के भविष्य के निर्माण पूर्णाहूति डालने का निमंत्रण नहीं दे रहा। कोई भी नृप हो, हमें क्या हानि के मूलमंत्र में विश्वास रखने वाले छेदीलाल किसी भी परिस्थिति में उस प्रसाद से वंचित नहीं रहना चाहते तो पूर्णाहूति के पूर्व ही लोकतंत्र में बंट रहा है।
सरकार बचाने-गिराने के इस भीषण मंथन में उनकी सारी आस्था भीष्म की तरह प्रसाद के आसपास ही स्थिर हो चुकी है। तभी उनका मोबाइल घिग्गिया और देशभक्ति की रिंग टोन बजी। किसी अनजानी खुशी के साथ मोबाइल उन्होंने झटपट उठा गर्व के साथ कहा हैलो। उधर से एक सुरीली आवाज आई सर हमारा बैंक आपको लोन उपलब्ध करवा सकता है, क्या आपकी कोई रिक्वायरमेंट है? आप क्या करते हैं, मैं सांसद हूं, अनमने मन से खिसिया कर छेदीलाल बोले। तो फिर आपको लोन की क्या जरूरत, आजकल तो वैसे ही... इससे पहले बात पूरी होती छेदी लाल जी ने उसका आशय भांपकर फोन काट दिया और अपने ड्राईवर को आवाज लगाई चल पप्पू, झटपट गाड़ी निकाल राजधानी जाना है...ं देश के भविष्य का सवाल है।

Wednesday, July 9, 2008

वैकल्पिक उर्जा



बढ़ती तेल की कीमतों से न केवल भारत अपितु विश्व के अन्य देश भी प्रभावित हो रहे हैं। देखा जाए तो 18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के पश्चात~ से विश्व अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से तेल आधरित हो चुकी है। कच्चे तेल को इसी कारण ब्लैक गोल्ड की संज्ञा भी दी गई। लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व जीवाश्म से निर्मित यह अमूल्य संपदा निरंतर किए जा रहे दोहन के कारण आज समाप्ति के कगार पर पहुंच रही है। वैज्ञानिकों की माने तो यदि वर्तमान स्तर पर ही प्राकृतिक तेल का दोहन किया जाता रहा तो अगले कुछ सौ सालों में विश्व के तेल कुंए तेल उगलना बंद कर देंगे तथा उससे पूर्व तेल की कीमतें इतनी बढ़ चुकी होंगी की संभवत: वह राशनिंग पर भी न मिले। इस स्थिति से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक ईंधनों की खोज एवं उपयोग को बढ़ावा देने का विचार दिया है। हालांकि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं, परंतु उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। यदि इन वैकल्पिक उर्जा स्त्राोतों को परिष्कृत कर अपनाने के लिए सभी देश एक जुट हो जाएं तो स्थिति में काफी हर्षात्मक सुधार हो सकता है। पृथ्वी पर सरलता से प्राप्त होने वाले अन्य उर्जा स्त्रोतों यथा सौर, भूतापीय, समुंदzीय, वायु एवं परमाणु उर्जा के उपयोग की तरफ ध्यान दिया जाए तो बिगड़ी स्थिति को सुधरा भी जा सकता है, लेकिन इसके लिए बिना किसी लागलपेट के शुरूवात करने की जरूरत है। इस संदर्भ में अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का अभी तक रवैया सुखद नहीं रहा है।


तेल की खोज वो चमत्कारिक घटना थी, जिसने मानव जाति के भविष्य को ही बदल कर रख दिया। जैसे-जैसे वह इस तेल के उपयोग के विविध तरीकों की खोज करता गया, वैसे-वैसे वह नवीन इतिहास का सजृन करने लगा। यद्यपि तेल के प्रथम कुंए के मिलने का विवरण चौथी शताब्दी में चीन से जुड़ा है, परंतु इसके उपयोग की गाथा का प्रारंभ 18वीं शताब्दी से ही माना जाता है। इस शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का जो सूत्रापात हुआ था, उसी के वनस्पत: तेल के कंुओं की खोज और उसके परिष्कृत रूप के उपयोग की संभावनाओं को टटोला जाना शुरू हुआ, जो अब भी जारी है। भूमि से प्राप्त होने वाले इस कच्चे तेल के कंुओं पर आधिपत्य जमाने के लिए युद्ध आरंभ हुए जो आज भी जारी हैं। वस्तुत: आज तेल के बिना किसी प्रकार की प्रगति की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहनों से लेकर हवा में उड़ते हवाई जहाज सभी इस तेल की ही देन हैं। मनुष्य के उड़ने का सपना, सपना ही रह जाता यदि तेल की खोज न होती। आज दूसरे गzहों पर मानव बस्तियां बसाने की बात की जा रही हैं, नवीन अनुसंधान हो रहे हैं, वो सब इस तेल की ही देन तो हैं।



चूंकि तेल, जल की तरह चक्रीय संसाधन नहीं है, इसलिए आज इस बात की आवश्यकता बहुत बढ़ गई है कि तेल का उपयोग समझदारी पूर्वक किया जाए ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्राप्त होता रहे। इसके लिए आवश्यकता है ईंधन के वैकल्पिक स्त्रोतों के खोज एवं उनके उपयोग की।
इस कड़ी में सबसे पहले वैकल्पिक उर्जा के स्त्रोत के रूप में सौर उर्जा का नाम आता है। सूर्य से हमें निरंतर उष्मा प्राप्त होती है। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख कारण सूर्य ही है। उर्जा की दृष्टि से सूर्य वैकल्पिक उफर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत सिद्ध हो सकता है। यदि इस दिशा में अनुसंधान किए जाए।
वायु उर्जा: विश्व में अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े पंखों की सहायता से वायु का उपयोग उर्जा पैदा करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि यह स्त्रोत हर जगह कारगर सिद्ध नहीं हो सकता, परंतु उपयुक्त स्थानों पर इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
भूतापीय उर्जा: उर्जा के इस स्त्रोत का उपयोग केवल उन स्थानों पर किया जा सकता है जहां पर गर्म जल के झरने बहते हैं। यद्यपि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के क्षेत्र अत्यंत सीमित ही हैं, लेकिन जहां पर इन जल स्त्रोतों की भरमार है, वहां पर इनका उपयोग उर्जा उत्पादन के लिए करना श्रेयष्कर है।
समुंदzीय उर्जा: समुंदz की विशाल लहरों से विश्व के अनेक देशों में बिजली पैदा करने का कार्य किया जा रहा है। फांस आदि कुछेक देशों में इसके माध्यम से बिजली घर भी बनाए गए हैं। फिलहाल यह पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय नहीं हो पाई है।
समुंदz तटीय प्रदेशों में यदि सागरीय लहरांे के उपयोग द्वारा उफर्जा उत्पन्न करने की तकनीक को विकसित एवं बढ़ावा दिया जाए तो इससे भी तेल के उपयोग को कुछ कम करने में सहायता मिलेगी।
परमाणु उर्जा: परमाणु शक्ति को उफर्जा के एक वृहद स्त्रोत के रूप में देखा जाता है। परमाणु तकनीक के माध्यम से उर्जा को उत्पन्न कर उसका उपयोग लाभकारी कार्यों में किया जा सकता है।

विश्व में सबसे अधिक तेल उत्पादक देश साउदी अरब है जबकि सबसे बड़ा उपभोक्ता देश अमेरिका है। अनुमानत: साउदी अरब में 8.582 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन होता है। चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। संभावित आंकड़ों के आधर पर विश्व में तेल का स्टाWक 10 खरब बैरल से भी ज्यादा का है। जबकि वर्तमान में संपूर्ण विश्व में तेल की कुल खपत 84 मिलियन बैरल की है। हालांकि सभी देश पूर्णतया: न भी हो परंतु स्थूल रूप से इन खाड़ी देशों पर अपनी तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर हैं। जिस प्रकार से तेल की मांग बढ़ती जा रही है उसकी तुलना में इनका उत्पादन कम है। तेल की कीमतों में हो रही वृद्धि का यह प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त तेल उत्पादन में युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक परिस्थितियां, उत्पादक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती आदि कारणों से तेल की कीमतों में वृद्धि होती रहती है।



आए दिन आप विभिन्न समाचार पत्रों में पढ़ते अथवा टी.वी. न्यूज चैनलों पर सुनते होंगे कि कच्चे तेल की कीमतें रिकाWर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। आज कच्चे तेल के दाम इतने बैरल हो गए हैं आदि-आदि। क्या आपको पता है कि कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण बैरल में किया जाता है। एक बैरल में 158 लीटर तेल होता है। विश्व के संपूर्ण तेल का लगभग 75प्रतिशत हिस्सा ओपेक के सदस्य देशों के पास है। ये देश यदि एक दिन भी हड़ताल पर चले जाएं तो सारी दुनिया में ही हाहाकार मच जाएगा। इन देशों की अर्थव्यवस्था तेल के कुंओं पर ही आश्रित है। ब्लैक गोल्ड के ये सिरमोर देश ओपेक देश कहलाते हैं। उल्लेखनीय है कि ओपेक विश्व के 13 बड़े तेल उत्पादक देशों का समूह है। इन देशों में साउदी अरब, इराक, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, लीबिया, अंगोला, अलजीरिया, नाइजीरिया, कतर, इंडोनेशिया और वेनेजुएला सम्मिलित हंै। इन देशों द्वारा औसतन: 27-28 मिलियन बैरल से ज्यादा का तेल उत्पादन किया जाता है। दुनिया को गतिशील रखने में इन देशों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। कच्चे तेल में पेट्रोल, गैसोलीन, एलपीजी, बेंजीन, केरोसिन, नापथा, फुएल आWयल, ईथेन, गैसआWयल, एथीलीन, सिंथेटिकफाइबर, प्रोपीलीन, ब्यूटेडिएन्स, अमोनिया, मेथानाWल, लुबिzकेंट, सिंथेटिक रबर आदि मिले होते है।


विकास की दzुत गति के परिणाम स्वरूप देश में पेट्रोल की मांग तेजी से बढ़ी है। देश में कुल खपत का लगभग 70प्रतिशत हिस्सा भारत को बाहर से निर्यात करना पड़ता है। वर्तमान खपत दर के अनुसार देश में 116 मिलियन मिट्रिक टन तेल की वार्षिक आवश्यकता है। जबकि देश में इसका उत्पादन इस मांग के अनुपात में अत्यंत कम है। देश में घरेलू उत्पादन 33 मिलियन मिट्रिक टन मात्रा है।
तेल की बाकी आवश्यकता की आपूर्ति खाड़ी देशों से तेल निर्यात कर पूरी की जाती है। तेल और गैस की बढ़ती मांग के मíेनजर सरकार द्वारा तेल और गैस की खोज के क्षेत्र में शतप्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी जा चुकी है। इसके अतिरिक्त भारतीय कंपनियों द्वारा देश से इत्तर रूस सहित अनेक अन्य देशों में भी तेल की खोज तथा तेल परिष्करण के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां ओ.एन.जी.सी. तथा आWयल इंडिया लि. द्वारा भारत में तेल की खोज की जा रही है। आंकड़ों की माने तो तेल और गैस की घरेलू खोज में इन दोनों कंपनियों का कुल हिस्सा लगभग 83प्रतिशत है। देश में 150 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस की दैनिक आवश्यकता है।
जबकि देश में इसका उत्पादन लगभग 75 मिलियन क्यूबिक मीटर ही है। अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारत तथा ईरान के मध्य गैस पाईप लाईन परियोजना पर कार्य किया जा रहा है।

Monday, July 7, 2008

रेवा


इलेक्ट्रिक इंजन, फुल आWटोमैटिक
;बिना गियर और क्लच के, ट~यूबलेस टायर,
डिस्क बzेक, रिजेनरेटिंग बzेकिंग सिस्टम,डेंटप्रूपफ एबीएस बाWडी पैनल
वजन लगभग 650 किलो, लंबाई लगभग 2638 एमएम, उंचाई लगभग 1510 एमएम, उपलब्ध रंग लाल, पीला, नीला
दो दरवाजे, दो बड़े और दो बच्चों के बैठने की सीट।
पार्किंग के लिए जगह 3.5 मीटर
80प्रति’ात बैट्ररी चार्ज मात्रा 2.5 घंटे में, फुल चार्ज में 7 घंटे और चलेगी 80किमी., अधिकतम स्पीड 80 कि.मी. प्रति घंटा
छोटा चार्जर जिसे लाना ले जाना आसान
आठ बैटरी में एक ही जगह पानी डालने की सुविधा
यह सुविधएं भी जोड़ सकते हैं:- सीडी एमपी3 प्लेयर, सेंट्रल लाWकिंग सिस्टम, रिमोट के साथ एसी और हीटर, क्लाइमेट कंट्रोल सीट, लेदर सीट और लेदर कवर स्टेयरिंग

नई विंडोज


सपनों को हकीकत में बदलना और फिर उसे दूसरों के लिए आदर्श बना देना, यह जादू या करिश्मा वाकई में ही विश्व के सबसे धनी लोगों की श्रेणी में शुमार बिल गेट~स ही कर सकते हैं। सफलता के शिखर पर आसन जमाये बिल गेट~स ने 52 वर्ष की आयु में ;जोकि बहुत ज्यादा नहीं हैद्ध कंपनी के विशाल सामzज्य की जिम्मेदारी अपने एक मित्र के कंधों पर डालकर, अपने जीवन की दूसरी पारी में एक नए क्षेत्र में नवीन आदर्श तथा कीर्तिमान स्थापित करने के लिए बेहिचक पहल कर दी। अब उनका सबसे बड़ा लक्ष्य अपनी अरबों-खरबों की दौलत जरूरतमंदों में बांटने का है। देखा जाए तो वो कोई संत-महात्मा नहीं है। वो टैक्निकल लैंग्वेज में प्योर प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने लगभग 3 दशक पूर्व अपनी मेहनत से अपनी सफलता की कहानी लिखी। माइक्रोसाफ्ट कंपनी की नींव रखने वाले बिल गेट~स ने जग प्रसिद्ध कई नामचीन हस्तियों की तरह अपना कैरियर शून्य से शुरू कर उस मुकाम तक पहुंचाया जिसके आस-पास, आज तक कोई फटक नहीं पाया। अकूत संपदा के मालिक होने के बावजूद भी उनके कृत्य निरंतर जनसेवा के कार्यों से जुड़े रहे। इसलिए उन्हें उन संतों की श्रेणी में शामिल करना गलत नहीं होगा जो न केवल जनहित के लिए कार्य करते हैं अपितु समाज के सम्मुख आदर्श भी रखते हैं। यह साधारण व्यक्ति की असाधारण सोच नहीं है तो क्या है? इसे बिल गेट~स की आसाधण क्षमता ही कहा जाएगा कि सफलता के नवीन मापदंड उन्होंने स्वयं ही तय करें। इस कार्य के लिए उन्होंने किसी परिपाटी का अनुकरण की बजाय खुद के लिए एक नई लीक तैयार की। अब उनका ध्यान दुनिया भर में बिल एंड मेलिंडा गेट~स फाउडेंशन के माध्यम से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा प्रसार, रोग निदान आदि कार्यक्रमों को चलाने में रहेगा। अब उन्होंने जो नई विंडोज बनाई है, उसका लाभ भी जन-जन पहुंचेगा।

रियलिटी शो


पिछले कुछ एक वर्षों से छोटे पर्दें पर रियलिटी शो तथा प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रमों की बाढ़-सी आ रखी है। इन कार्यक्रमों से जिस प्रकार टी.वी.चैनलों की टीआरपी बढ़ती है, उसे देखते हुए हर एक टीवी चैनल इस प्रकार के ‘डेली सोप’ कार्यक्रमों को अपने एयर टाइम में जगह देने के लिए तैयार खड़ा है। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इन कार्यक्रमों में विजेता को एक भारी भरकम रकम तथा प्रसिद्धि इनाम के रूप में मिलती है, जिसके कारण शो में भाग लेने वाला हर प्रतिभागी खुद को सिकंदर साबित करने में जी-जान से जुट जाता है। और खुद को सिकंदर साबित करने की यह मनोदशा उन्हें कई बार अवसाद के चक्रव्यूह में भी उलझा देती है। उधर कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ाने के लिए भी तमाम तरह के हथकंडे चैनलों द्वारा अपनाए जाते हैं। शो के जजों के आपसी मनमुटाव से लेकर प्रतिभागियों की आपसी नोक-झोक को भी ‘सनसेशनल’ सनसनी बनाकर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। चूंकि यह सारा मामला टीआरपी से अर्थात~ गलाकाट होड़ में अन्य चैनलों से आगे निकलने का होता है इसलिए हर वो तरीका अपनाया जाता है, जिससे दर्शक कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित हांे। इसी बानगी के तहत छोटे-छोटे बच्चों को भी रातोरात स्टार और लखपति बनने के ख्याब दिखाए जाते हैं। बड़ों की तर्ज पर जब यह सुकुमार व्यावसायिकता के पुट से परिपूर्ण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो वहां उनके साथ व्यवहार भी किसी प्रोफेशनल की तरह ही किया जाता है। हालांकि इसमें केवल टी.वी. चैनल वालों को ही दोष देना गलत होगा, क्योंकि संभवत: अभिभावकों का एक बड़ा तबका भी जाने-अनजाने इस ग्लैमर से प्रभावित होकर अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों पर डाल देता है। इस सबके बीच में अबोध आयु के बच्चे पर कार्यक्रम में असफल होने पर क्या बीतती होगी, इसका अंदाजा किशोरवय शिंजिनी सेन गुप्ता की मनोस्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। दक्षिण कोलकाता की शिंजिनी को एक रियलिटी शो में जजों के विचारों से इस कदर मानसिक आघात लगा कि वह लकवे का शिकार हो गई। गुमसुम सी शिंजिनी अस्पताल में उपचाराधीन है। नृत्य, जो प्रत्येक मानवीय भावना को अपनी मुदzा द्वारा अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता है, उसकी स्तुति करने वाली शिंजिनी इस प्रकार अशक्त हो जाएगी, संभवत: किसी ने सोचा भी न होगा। यहां पर हमारा उíेश्य किसी पर दोषारोपण करने का या किसी की भावनाओं को आहत का कदापि भी नहीं है। शो के जजों को यदि गुरु मान लिया जाए तो उनका कार्य ही प्रतिभागियों ;शिष्योंद्ध की योग्यता का आंकलन कर उनकी कमियों को उनके सामने लाना है। ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि वह कटुवचन भी बोल दें। उधर प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी संतान जीवन में सफलता और यश प्राप्त करें, इस लिए वो अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं, और नि:संदेह करना भी चाहिए। लेकिन इन सब के बीच जो एक अहम~ सवाल है कि प्रतियोगी बच्चों की भावनाओं को भी सभी समझना आवश्यक है, उसे दर किनार ही कर दिया जाता है, जिसका परिणाम शिंजिनी के रूप में हमारे सामने है। यहां आवश्यक यह है कि बच्चा किसी प्रतियोगिता, केवल टीवी शो ही नहीं बल्कि पढ़ाई इत्यादि के क्षेत्र में भी असफल हो जाता है, तो उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास सभी के द्वारा करना चाहिए। रियालिटी शो में शिल्पा शेट~टी जैसे स्थापित कलाकार भावनात्मक रूप से आहत हो जाते हैं तो एक बच्चे की स्थिति सहज समझी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि टीवी चैनलों के जज एवं बच्चों के माता-पिता भी इस बात का ध्यान रखें। बहरहाल शिंजिनी ठीक होकर जल्द से जल्द घर आए, सबकी यहीं प्रार्थना है।