Saturday, July 19, 2008

व्यंग्य देश के भविष्य का सवाल


गुप-चुप से बैठे छेदीलाल बार-बार अपने मोबाइल फोन को इस तरह निहार रहे हैं, जैसे कोई पुराना शराबी, खाली पड़ी शराब की बोतल को बड़े अरमानों के साथ देखता है। पिछले कई दिनों से एकांतवास में बैठे छेदीलाल खुद को कोसते नहीं थकते। केंदz सरकार के अस्थिर होते ही सांसदों के जोड़-तोड़ की खबरे जैसे हीं मीडिया में सुनामी की तरह आने लगी, उसी समय मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह छेदीलाल भी अपना बोरिया-बिस्तर समेट एकांतवास में निकल गए।
आज चार दिन बीत जाने के बाद भी जब किसी पार्टी ने उन्हें फोन करके हाल-चाल नहीं पूछा तो उनका धैर्य भी चुकने लगा। मन ही मन मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे। मीडिया वालों ने व्यर्थ का हो-हल्ला मचा कर रखा हुआ है...सांसदों की लाWटरी लगने वाली है। यहां तो पिछले चार दिन से फोन की घंटी तक नहीं बजी। न तो मीडिया ने उन्हें विशषज्ञ मान उनसे कुछ पूछा और न किसी राजनीतिक दल ने कि आप किस ओर हैं।
पहले छेदीलाल जी को इस बात का गम सालता था कि कोई भी पार्टी उन्हें टिकट न देकर समाजसेवा करने से वंचित कर रही है।और जब वो जैसे-तैसे जोड़-तोड़ संसद पहुंचे तो अब उन्हें यह बात अंंदर ही अंदर ही खाए जा रही है कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें देश के भविष्य के निर्माण पूर्णाहूति डालने का निमंत्रण नहीं दे रहा। कोई भी नृप हो, हमें क्या हानि के मूलमंत्र में विश्वास रखने वाले छेदीलाल किसी भी परिस्थिति में उस प्रसाद से वंचित नहीं रहना चाहते तो पूर्णाहूति के पूर्व ही लोकतंत्र में बंट रहा है।
सरकार बचाने-गिराने के इस भीषण मंथन में उनकी सारी आस्था भीष्म की तरह प्रसाद के आसपास ही स्थिर हो चुकी है। तभी उनका मोबाइल घिग्गिया और देशभक्ति की रिंग टोन बजी। किसी अनजानी खुशी के साथ मोबाइल उन्होंने झटपट उठा गर्व के साथ कहा हैलो। उधर से एक सुरीली आवाज आई सर हमारा बैंक आपको लोन उपलब्ध करवा सकता है, क्या आपकी कोई रिक्वायरमेंट है? आप क्या करते हैं, मैं सांसद हूं, अनमने मन से खिसिया कर छेदीलाल बोले। तो फिर आपको लोन की क्या जरूरत, आजकल तो वैसे ही... इससे पहले बात पूरी होती छेदी लाल जी ने उसका आशय भांपकर फोन काट दिया और अपने ड्राईवर को आवाज लगाई चल पप्पू, झटपट गाड़ी निकाल राजधानी जाना है...ं देश के भविष्य का सवाल है।

Wednesday, July 9, 2008

वैकल्पिक उर्जा



बढ़ती तेल की कीमतों से न केवल भारत अपितु विश्व के अन्य देश भी प्रभावित हो रहे हैं। देखा जाए तो 18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के पश्चात~ से विश्व अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से तेल आधरित हो चुकी है। कच्चे तेल को इसी कारण ब्लैक गोल्ड की संज्ञा भी दी गई। लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व जीवाश्म से निर्मित यह अमूल्य संपदा निरंतर किए जा रहे दोहन के कारण आज समाप्ति के कगार पर पहुंच रही है। वैज्ञानिकों की माने तो यदि वर्तमान स्तर पर ही प्राकृतिक तेल का दोहन किया जाता रहा तो अगले कुछ सौ सालों में विश्व के तेल कुंए तेल उगलना बंद कर देंगे तथा उससे पूर्व तेल की कीमतें इतनी बढ़ चुकी होंगी की संभवत: वह राशनिंग पर भी न मिले। इस स्थिति से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक ईंधनों की खोज एवं उपयोग को बढ़ावा देने का विचार दिया है। हालांकि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं, परंतु उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। यदि इन वैकल्पिक उर्जा स्त्राोतों को परिष्कृत कर अपनाने के लिए सभी देश एक जुट हो जाएं तो स्थिति में काफी हर्षात्मक सुधार हो सकता है। पृथ्वी पर सरलता से प्राप्त होने वाले अन्य उर्जा स्त्रोतों यथा सौर, भूतापीय, समुंदzीय, वायु एवं परमाणु उर्जा के उपयोग की तरफ ध्यान दिया जाए तो बिगड़ी स्थिति को सुधरा भी जा सकता है, लेकिन इसके लिए बिना किसी लागलपेट के शुरूवात करने की जरूरत है। इस संदर्भ में अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का अभी तक रवैया सुखद नहीं रहा है।


तेल की खोज वो चमत्कारिक घटना थी, जिसने मानव जाति के भविष्य को ही बदल कर रख दिया। जैसे-जैसे वह इस तेल के उपयोग के विविध तरीकों की खोज करता गया, वैसे-वैसे वह नवीन इतिहास का सजृन करने लगा। यद्यपि तेल के प्रथम कुंए के मिलने का विवरण चौथी शताब्दी में चीन से जुड़ा है, परंतु इसके उपयोग की गाथा का प्रारंभ 18वीं शताब्दी से ही माना जाता है। इस शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का जो सूत्रापात हुआ था, उसी के वनस्पत: तेल के कंुओं की खोज और उसके परिष्कृत रूप के उपयोग की संभावनाओं को टटोला जाना शुरू हुआ, जो अब भी जारी है। भूमि से प्राप्त होने वाले इस कच्चे तेल के कंुओं पर आधिपत्य जमाने के लिए युद्ध आरंभ हुए जो आज भी जारी हैं। वस्तुत: आज तेल के बिना किसी प्रकार की प्रगति की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहनों से लेकर हवा में उड़ते हवाई जहाज सभी इस तेल की ही देन हैं। मनुष्य के उड़ने का सपना, सपना ही रह जाता यदि तेल की खोज न होती। आज दूसरे गzहों पर मानव बस्तियां बसाने की बात की जा रही हैं, नवीन अनुसंधान हो रहे हैं, वो सब इस तेल की ही देन तो हैं।



चूंकि तेल, जल की तरह चक्रीय संसाधन नहीं है, इसलिए आज इस बात की आवश्यकता बहुत बढ़ गई है कि तेल का उपयोग समझदारी पूर्वक किया जाए ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्राप्त होता रहे। इसके लिए आवश्यकता है ईंधन के वैकल्पिक स्त्रोतों के खोज एवं उनके उपयोग की।
इस कड़ी में सबसे पहले वैकल्पिक उर्जा के स्त्रोत के रूप में सौर उर्जा का नाम आता है। सूर्य से हमें निरंतर उष्मा प्राप्त होती है। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख कारण सूर्य ही है। उर्जा की दृष्टि से सूर्य वैकल्पिक उफर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत सिद्ध हो सकता है। यदि इस दिशा में अनुसंधान किए जाए।
वायु उर्जा: विश्व में अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े पंखों की सहायता से वायु का उपयोग उर्जा पैदा करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि यह स्त्रोत हर जगह कारगर सिद्ध नहीं हो सकता, परंतु उपयुक्त स्थानों पर इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
भूतापीय उर्जा: उर्जा के इस स्त्रोत का उपयोग केवल उन स्थानों पर किया जा सकता है जहां पर गर्म जल के झरने बहते हैं। यद्यपि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के क्षेत्र अत्यंत सीमित ही हैं, लेकिन जहां पर इन जल स्त्रोतों की भरमार है, वहां पर इनका उपयोग उर्जा उत्पादन के लिए करना श्रेयष्कर है।
समुंदzीय उर्जा: समुंदz की विशाल लहरों से विश्व के अनेक देशों में बिजली पैदा करने का कार्य किया जा रहा है। फांस आदि कुछेक देशों में इसके माध्यम से बिजली घर भी बनाए गए हैं। फिलहाल यह पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय नहीं हो पाई है।
समुंदz तटीय प्रदेशों में यदि सागरीय लहरांे के उपयोग द्वारा उफर्जा उत्पन्न करने की तकनीक को विकसित एवं बढ़ावा दिया जाए तो इससे भी तेल के उपयोग को कुछ कम करने में सहायता मिलेगी।
परमाणु उर्जा: परमाणु शक्ति को उफर्जा के एक वृहद स्त्रोत के रूप में देखा जाता है। परमाणु तकनीक के माध्यम से उर्जा को उत्पन्न कर उसका उपयोग लाभकारी कार्यों में किया जा सकता है।

विश्व में सबसे अधिक तेल उत्पादक देश साउदी अरब है जबकि सबसे बड़ा उपभोक्ता देश अमेरिका है। अनुमानत: साउदी अरब में 8.582 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन होता है। चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। संभावित आंकड़ों के आधर पर विश्व में तेल का स्टाWक 10 खरब बैरल से भी ज्यादा का है। जबकि वर्तमान में संपूर्ण विश्व में तेल की कुल खपत 84 मिलियन बैरल की है। हालांकि सभी देश पूर्णतया: न भी हो परंतु स्थूल रूप से इन खाड़ी देशों पर अपनी तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर हैं। जिस प्रकार से तेल की मांग बढ़ती जा रही है उसकी तुलना में इनका उत्पादन कम है। तेल की कीमतों में हो रही वृद्धि का यह प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त तेल उत्पादन में युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक परिस्थितियां, उत्पादक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती आदि कारणों से तेल की कीमतों में वृद्धि होती रहती है।



आए दिन आप विभिन्न समाचार पत्रों में पढ़ते अथवा टी.वी. न्यूज चैनलों पर सुनते होंगे कि कच्चे तेल की कीमतें रिकाWर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। आज कच्चे तेल के दाम इतने बैरल हो गए हैं आदि-आदि। क्या आपको पता है कि कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण बैरल में किया जाता है। एक बैरल में 158 लीटर तेल होता है। विश्व के संपूर्ण तेल का लगभग 75प्रतिशत हिस्सा ओपेक के सदस्य देशों के पास है। ये देश यदि एक दिन भी हड़ताल पर चले जाएं तो सारी दुनिया में ही हाहाकार मच जाएगा। इन देशों की अर्थव्यवस्था तेल के कुंओं पर ही आश्रित है। ब्लैक गोल्ड के ये सिरमोर देश ओपेक देश कहलाते हैं। उल्लेखनीय है कि ओपेक विश्व के 13 बड़े तेल उत्पादक देशों का समूह है। इन देशों में साउदी अरब, इराक, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, लीबिया, अंगोला, अलजीरिया, नाइजीरिया, कतर, इंडोनेशिया और वेनेजुएला सम्मिलित हंै। इन देशों द्वारा औसतन: 27-28 मिलियन बैरल से ज्यादा का तेल उत्पादन किया जाता है। दुनिया को गतिशील रखने में इन देशों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। कच्चे तेल में पेट्रोल, गैसोलीन, एलपीजी, बेंजीन, केरोसिन, नापथा, फुएल आWयल, ईथेन, गैसआWयल, एथीलीन, सिंथेटिकफाइबर, प्रोपीलीन, ब्यूटेडिएन्स, अमोनिया, मेथानाWल, लुबिzकेंट, सिंथेटिक रबर आदि मिले होते है।


विकास की दzुत गति के परिणाम स्वरूप देश में पेट्रोल की मांग तेजी से बढ़ी है। देश में कुल खपत का लगभग 70प्रतिशत हिस्सा भारत को बाहर से निर्यात करना पड़ता है। वर्तमान खपत दर के अनुसार देश में 116 मिलियन मिट्रिक टन तेल की वार्षिक आवश्यकता है। जबकि देश में इसका उत्पादन इस मांग के अनुपात में अत्यंत कम है। देश में घरेलू उत्पादन 33 मिलियन मिट्रिक टन मात्रा है।
तेल की बाकी आवश्यकता की आपूर्ति खाड़ी देशों से तेल निर्यात कर पूरी की जाती है। तेल और गैस की बढ़ती मांग के मíेनजर सरकार द्वारा तेल और गैस की खोज के क्षेत्र में शतप्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी जा चुकी है। इसके अतिरिक्त भारतीय कंपनियों द्वारा देश से इत्तर रूस सहित अनेक अन्य देशों में भी तेल की खोज तथा तेल परिष्करण के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां ओ.एन.जी.सी. तथा आWयल इंडिया लि. द्वारा भारत में तेल की खोज की जा रही है। आंकड़ों की माने तो तेल और गैस की घरेलू खोज में इन दोनों कंपनियों का कुल हिस्सा लगभग 83प्रतिशत है। देश में 150 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस की दैनिक आवश्यकता है।
जबकि देश में इसका उत्पादन लगभग 75 मिलियन क्यूबिक मीटर ही है। अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारत तथा ईरान के मध्य गैस पाईप लाईन परियोजना पर कार्य किया जा रहा है।

Monday, July 7, 2008

रेवा


इलेक्ट्रिक इंजन, फुल आWटोमैटिक
;बिना गियर और क्लच के, ट~यूबलेस टायर,
डिस्क बzेक, रिजेनरेटिंग बzेकिंग सिस्टम,डेंटप्रूपफ एबीएस बाWडी पैनल
वजन लगभग 650 किलो, लंबाई लगभग 2638 एमएम, उंचाई लगभग 1510 एमएम, उपलब्ध रंग लाल, पीला, नीला
दो दरवाजे, दो बड़े और दो बच्चों के बैठने की सीट।
पार्किंग के लिए जगह 3.5 मीटर
80प्रति’ात बैट्ररी चार्ज मात्रा 2.5 घंटे में, फुल चार्ज में 7 घंटे और चलेगी 80किमी., अधिकतम स्पीड 80 कि.मी. प्रति घंटा
छोटा चार्जर जिसे लाना ले जाना आसान
आठ बैटरी में एक ही जगह पानी डालने की सुविधा
यह सुविधएं भी जोड़ सकते हैं:- सीडी एमपी3 प्लेयर, सेंट्रल लाWकिंग सिस्टम, रिमोट के साथ एसी और हीटर, क्लाइमेट कंट्रोल सीट, लेदर सीट और लेदर कवर स्टेयरिंग

नई विंडोज


सपनों को हकीकत में बदलना और फिर उसे दूसरों के लिए आदर्श बना देना, यह जादू या करिश्मा वाकई में ही विश्व के सबसे धनी लोगों की श्रेणी में शुमार बिल गेट~स ही कर सकते हैं। सफलता के शिखर पर आसन जमाये बिल गेट~स ने 52 वर्ष की आयु में ;जोकि बहुत ज्यादा नहीं हैद्ध कंपनी के विशाल सामzज्य की जिम्मेदारी अपने एक मित्र के कंधों पर डालकर, अपने जीवन की दूसरी पारी में एक नए क्षेत्र में नवीन आदर्श तथा कीर्तिमान स्थापित करने के लिए बेहिचक पहल कर दी। अब उनका सबसे बड़ा लक्ष्य अपनी अरबों-खरबों की दौलत जरूरतमंदों में बांटने का है। देखा जाए तो वो कोई संत-महात्मा नहीं है। वो टैक्निकल लैंग्वेज में प्योर प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने लगभग 3 दशक पूर्व अपनी मेहनत से अपनी सफलता की कहानी लिखी। माइक्रोसाफ्ट कंपनी की नींव रखने वाले बिल गेट~स ने जग प्रसिद्ध कई नामचीन हस्तियों की तरह अपना कैरियर शून्य से शुरू कर उस मुकाम तक पहुंचाया जिसके आस-पास, आज तक कोई फटक नहीं पाया। अकूत संपदा के मालिक होने के बावजूद भी उनके कृत्य निरंतर जनसेवा के कार्यों से जुड़े रहे। इसलिए उन्हें उन संतों की श्रेणी में शामिल करना गलत नहीं होगा जो न केवल जनहित के लिए कार्य करते हैं अपितु समाज के सम्मुख आदर्श भी रखते हैं। यह साधारण व्यक्ति की असाधारण सोच नहीं है तो क्या है? इसे बिल गेट~स की आसाधण क्षमता ही कहा जाएगा कि सफलता के नवीन मापदंड उन्होंने स्वयं ही तय करें। इस कार्य के लिए उन्होंने किसी परिपाटी का अनुकरण की बजाय खुद के लिए एक नई लीक तैयार की। अब उनका ध्यान दुनिया भर में बिल एंड मेलिंडा गेट~स फाउडेंशन के माध्यम से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा प्रसार, रोग निदान आदि कार्यक्रमों को चलाने में रहेगा। अब उन्होंने जो नई विंडोज बनाई है, उसका लाभ भी जन-जन पहुंचेगा।

रियलिटी शो


पिछले कुछ एक वर्षों से छोटे पर्दें पर रियलिटी शो तथा प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रमों की बाढ़-सी आ रखी है। इन कार्यक्रमों से जिस प्रकार टी.वी.चैनलों की टीआरपी बढ़ती है, उसे देखते हुए हर एक टीवी चैनल इस प्रकार के ‘डेली सोप’ कार्यक्रमों को अपने एयर टाइम में जगह देने के लिए तैयार खड़ा है। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इन कार्यक्रमों में विजेता को एक भारी भरकम रकम तथा प्रसिद्धि इनाम के रूप में मिलती है, जिसके कारण शो में भाग लेने वाला हर प्रतिभागी खुद को सिकंदर साबित करने में जी-जान से जुट जाता है। और खुद को सिकंदर साबित करने की यह मनोदशा उन्हें कई बार अवसाद के चक्रव्यूह में भी उलझा देती है। उधर कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ाने के लिए भी तमाम तरह के हथकंडे चैनलों द्वारा अपनाए जाते हैं। शो के जजों के आपसी मनमुटाव से लेकर प्रतिभागियों की आपसी नोक-झोक को भी ‘सनसेशनल’ सनसनी बनाकर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। चूंकि यह सारा मामला टीआरपी से अर्थात~ गलाकाट होड़ में अन्य चैनलों से आगे निकलने का होता है इसलिए हर वो तरीका अपनाया जाता है, जिससे दर्शक कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित हांे। इसी बानगी के तहत छोटे-छोटे बच्चों को भी रातोरात स्टार और लखपति बनने के ख्याब दिखाए जाते हैं। बड़ों की तर्ज पर जब यह सुकुमार व्यावसायिकता के पुट से परिपूर्ण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो वहां उनके साथ व्यवहार भी किसी प्रोफेशनल की तरह ही किया जाता है। हालांकि इसमें केवल टी.वी. चैनल वालों को ही दोष देना गलत होगा, क्योंकि संभवत: अभिभावकों का एक बड़ा तबका भी जाने-अनजाने इस ग्लैमर से प्रभावित होकर अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों पर डाल देता है। इस सबके बीच में अबोध आयु के बच्चे पर कार्यक्रम में असफल होने पर क्या बीतती होगी, इसका अंदाजा किशोरवय शिंजिनी सेन गुप्ता की मनोस्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। दक्षिण कोलकाता की शिंजिनी को एक रियलिटी शो में जजों के विचारों से इस कदर मानसिक आघात लगा कि वह लकवे का शिकार हो गई। गुमसुम सी शिंजिनी अस्पताल में उपचाराधीन है। नृत्य, जो प्रत्येक मानवीय भावना को अपनी मुदzा द्वारा अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता है, उसकी स्तुति करने वाली शिंजिनी इस प्रकार अशक्त हो जाएगी, संभवत: किसी ने सोचा भी न होगा। यहां पर हमारा उíेश्य किसी पर दोषारोपण करने का या किसी की भावनाओं को आहत का कदापि भी नहीं है। शो के जजों को यदि गुरु मान लिया जाए तो उनका कार्य ही प्रतिभागियों ;शिष्योंद्ध की योग्यता का आंकलन कर उनकी कमियों को उनके सामने लाना है। ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि वह कटुवचन भी बोल दें। उधर प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी संतान जीवन में सफलता और यश प्राप्त करें, इस लिए वो अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं, और नि:संदेह करना भी चाहिए। लेकिन इन सब के बीच जो एक अहम~ सवाल है कि प्रतियोगी बच्चों की भावनाओं को भी सभी समझना आवश्यक है, उसे दर किनार ही कर दिया जाता है, जिसका परिणाम शिंजिनी के रूप में हमारे सामने है। यहां आवश्यक यह है कि बच्चा किसी प्रतियोगिता, केवल टीवी शो ही नहीं बल्कि पढ़ाई इत्यादि के क्षेत्र में भी असफल हो जाता है, तो उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास सभी के द्वारा करना चाहिए। रियालिटी शो में शिल्पा शेट~टी जैसे स्थापित कलाकार भावनात्मक रूप से आहत हो जाते हैं तो एक बच्चे की स्थिति सहज समझी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि टीवी चैनलों के जज एवं बच्चों के माता-पिता भी इस बात का ध्यान रखें। बहरहाल शिंजिनी ठीक होकर जल्द से जल्द घर आए, सबकी यहीं प्रार्थना है।