Wednesday, July 9, 2008

वैकल्पिक उर्जा



बढ़ती तेल की कीमतों से न केवल भारत अपितु विश्व के अन्य देश भी प्रभावित हो रहे हैं। देखा जाए तो 18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के पश्चात~ से विश्व अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से तेल आधरित हो चुकी है। कच्चे तेल को इसी कारण ब्लैक गोल्ड की संज्ञा भी दी गई। लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व जीवाश्म से निर्मित यह अमूल्य संपदा निरंतर किए जा रहे दोहन के कारण आज समाप्ति के कगार पर पहुंच रही है। वैज्ञानिकों की माने तो यदि वर्तमान स्तर पर ही प्राकृतिक तेल का दोहन किया जाता रहा तो अगले कुछ सौ सालों में विश्व के तेल कुंए तेल उगलना बंद कर देंगे तथा उससे पूर्व तेल की कीमतें इतनी बढ़ चुकी होंगी की संभवत: वह राशनिंग पर भी न मिले। इस स्थिति से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक ईंधनों की खोज एवं उपयोग को बढ़ावा देने का विचार दिया है। हालांकि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं, परंतु उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। यदि इन वैकल्पिक उर्जा स्त्राोतों को परिष्कृत कर अपनाने के लिए सभी देश एक जुट हो जाएं तो स्थिति में काफी हर्षात्मक सुधार हो सकता है। पृथ्वी पर सरलता से प्राप्त होने वाले अन्य उर्जा स्त्रोतों यथा सौर, भूतापीय, समुंदzीय, वायु एवं परमाणु उर्जा के उपयोग की तरफ ध्यान दिया जाए तो बिगड़ी स्थिति को सुधरा भी जा सकता है, लेकिन इसके लिए बिना किसी लागलपेट के शुरूवात करने की जरूरत है। इस संदर्भ में अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का अभी तक रवैया सुखद नहीं रहा है।


तेल की खोज वो चमत्कारिक घटना थी, जिसने मानव जाति के भविष्य को ही बदल कर रख दिया। जैसे-जैसे वह इस तेल के उपयोग के विविध तरीकों की खोज करता गया, वैसे-वैसे वह नवीन इतिहास का सजृन करने लगा। यद्यपि तेल के प्रथम कुंए के मिलने का विवरण चौथी शताब्दी में चीन से जुड़ा है, परंतु इसके उपयोग की गाथा का प्रारंभ 18वीं शताब्दी से ही माना जाता है। इस शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का जो सूत्रापात हुआ था, उसी के वनस्पत: तेल के कंुओं की खोज और उसके परिष्कृत रूप के उपयोग की संभावनाओं को टटोला जाना शुरू हुआ, जो अब भी जारी है। भूमि से प्राप्त होने वाले इस कच्चे तेल के कंुओं पर आधिपत्य जमाने के लिए युद्ध आरंभ हुए जो आज भी जारी हैं। वस्तुत: आज तेल के बिना किसी प्रकार की प्रगति की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहनों से लेकर हवा में उड़ते हवाई जहाज सभी इस तेल की ही देन हैं। मनुष्य के उड़ने का सपना, सपना ही रह जाता यदि तेल की खोज न होती। आज दूसरे गzहों पर मानव बस्तियां बसाने की बात की जा रही हैं, नवीन अनुसंधान हो रहे हैं, वो सब इस तेल की ही देन तो हैं।



चूंकि तेल, जल की तरह चक्रीय संसाधन नहीं है, इसलिए आज इस बात की आवश्यकता बहुत बढ़ गई है कि तेल का उपयोग समझदारी पूर्वक किया जाए ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्राप्त होता रहे। इसके लिए आवश्यकता है ईंधन के वैकल्पिक स्त्रोतों के खोज एवं उनके उपयोग की।
इस कड़ी में सबसे पहले वैकल्पिक उर्जा के स्त्रोत के रूप में सौर उर्जा का नाम आता है। सूर्य से हमें निरंतर उष्मा प्राप्त होती है। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख कारण सूर्य ही है। उर्जा की दृष्टि से सूर्य वैकल्पिक उफर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत सिद्ध हो सकता है। यदि इस दिशा में अनुसंधान किए जाए।
वायु उर्जा: विश्व में अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े पंखों की सहायता से वायु का उपयोग उर्जा पैदा करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि यह स्त्रोत हर जगह कारगर सिद्ध नहीं हो सकता, परंतु उपयुक्त स्थानों पर इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
भूतापीय उर्जा: उर्जा के इस स्त्रोत का उपयोग केवल उन स्थानों पर किया जा सकता है जहां पर गर्म जल के झरने बहते हैं। यद्यपि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के क्षेत्र अत्यंत सीमित ही हैं, लेकिन जहां पर इन जल स्त्रोतों की भरमार है, वहां पर इनका उपयोग उर्जा उत्पादन के लिए करना श्रेयष्कर है।
समुंदzीय उर्जा: समुंदz की विशाल लहरों से विश्व के अनेक देशों में बिजली पैदा करने का कार्य किया जा रहा है। फांस आदि कुछेक देशों में इसके माध्यम से बिजली घर भी बनाए गए हैं। फिलहाल यह पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय नहीं हो पाई है।
समुंदz तटीय प्रदेशों में यदि सागरीय लहरांे के उपयोग द्वारा उफर्जा उत्पन्न करने की तकनीक को विकसित एवं बढ़ावा दिया जाए तो इससे भी तेल के उपयोग को कुछ कम करने में सहायता मिलेगी।
परमाणु उर्जा: परमाणु शक्ति को उफर्जा के एक वृहद स्त्रोत के रूप में देखा जाता है। परमाणु तकनीक के माध्यम से उर्जा को उत्पन्न कर उसका उपयोग लाभकारी कार्यों में किया जा सकता है।

विश्व में सबसे अधिक तेल उत्पादक देश साउदी अरब है जबकि सबसे बड़ा उपभोक्ता देश अमेरिका है। अनुमानत: साउदी अरब में 8.582 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन होता है। चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। संभावित आंकड़ों के आधर पर विश्व में तेल का स्टाWक 10 खरब बैरल से भी ज्यादा का है। जबकि वर्तमान में संपूर्ण विश्व में तेल की कुल खपत 84 मिलियन बैरल की है। हालांकि सभी देश पूर्णतया: न भी हो परंतु स्थूल रूप से इन खाड़ी देशों पर अपनी तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर हैं। जिस प्रकार से तेल की मांग बढ़ती जा रही है उसकी तुलना में इनका उत्पादन कम है। तेल की कीमतों में हो रही वृद्धि का यह प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त तेल उत्पादन में युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक परिस्थितियां, उत्पादक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती आदि कारणों से तेल की कीमतों में वृद्धि होती रहती है।



आए दिन आप विभिन्न समाचार पत्रों में पढ़ते अथवा टी.वी. न्यूज चैनलों पर सुनते होंगे कि कच्चे तेल की कीमतें रिकाWर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। आज कच्चे तेल के दाम इतने बैरल हो गए हैं आदि-आदि। क्या आपको पता है कि कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण बैरल में किया जाता है। एक बैरल में 158 लीटर तेल होता है। विश्व के संपूर्ण तेल का लगभग 75प्रतिशत हिस्सा ओपेक के सदस्य देशों के पास है। ये देश यदि एक दिन भी हड़ताल पर चले जाएं तो सारी दुनिया में ही हाहाकार मच जाएगा। इन देशों की अर्थव्यवस्था तेल के कुंओं पर ही आश्रित है। ब्लैक गोल्ड के ये सिरमोर देश ओपेक देश कहलाते हैं। उल्लेखनीय है कि ओपेक विश्व के 13 बड़े तेल उत्पादक देशों का समूह है। इन देशों में साउदी अरब, इराक, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, लीबिया, अंगोला, अलजीरिया, नाइजीरिया, कतर, इंडोनेशिया और वेनेजुएला सम्मिलित हंै। इन देशों द्वारा औसतन: 27-28 मिलियन बैरल से ज्यादा का तेल उत्पादन किया जाता है। दुनिया को गतिशील रखने में इन देशों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। कच्चे तेल में पेट्रोल, गैसोलीन, एलपीजी, बेंजीन, केरोसिन, नापथा, फुएल आWयल, ईथेन, गैसआWयल, एथीलीन, सिंथेटिकफाइबर, प्रोपीलीन, ब्यूटेडिएन्स, अमोनिया, मेथानाWल, लुबिzकेंट, सिंथेटिक रबर आदि मिले होते है।


विकास की दzुत गति के परिणाम स्वरूप देश में पेट्रोल की मांग तेजी से बढ़ी है। देश में कुल खपत का लगभग 70प्रतिशत हिस्सा भारत को बाहर से निर्यात करना पड़ता है। वर्तमान खपत दर के अनुसार देश में 116 मिलियन मिट्रिक टन तेल की वार्षिक आवश्यकता है। जबकि देश में इसका उत्पादन इस मांग के अनुपात में अत्यंत कम है। देश में घरेलू उत्पादन 33 मिलियन मिट्रिक टन मात्रा है।
तेल की बाकी आवश्यकता की आपूर्ति खाड़ी देशों से तेल निर्यात कर पूरी की जाती है। तेल और गैस की बढ़ती मांग के मíेनजर सरकार द्वारा तेल और गैस की खोज के क्षेत्र में शतप्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी जा चुकी है। इसके अतिरिक्त भारतीय कंपनियों द्वारा देश से इत्तर रूस सहित अनेक अन्य देशों में भी तेल की खोज तथा तेल परिष्करण के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां ओ.एन.जी.सी. तथा आWयल इंडिया लि. द्वारा भारत में तेल की खोज की जा रही है। आंकड़ों की माने तो तेल और गैस की घरेलू खोज में इन दोनों कंपनियों का कुल हिस्सा लगभग 83प्रतिशत है। देश में 150 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस की दैनिक आवश्यकता है।
जबकि देश में इसका उत्पादन लगभग 75 मिलियन क्यूबिक मीटर ही है। अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारत तथा ईरान के मध्य गैस पाईप लाईन परियोजना पर कार्य किया जा रहा है।

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