tag:blogger.com,1999:blog-89988171074311065712024-03-14T05:10:03.992+05:30Meri chopal मेरी चौपालमित्रों आपका स्वागत है चौपाल पर...आइयें गपशप करें!chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-18000766663378815212009-08-27T13:22:00.002+05:302009-08-27T13:27:30.273+05:30स्वयं भू भगवान<a href="http://4.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SpY8WtgZvcI/AAAAAAAAAGY/F4YDufH1M0U/s1600-h/1.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 214px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SpY8WtgZvcI/AAAAAAAAAGY/F4YDufH1M0U/s320/1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5374549566183554498" /></a><br /><br /><br /><br />प्रत्येक चीज की अपनी सीमाएं होती हैं, जिसका पालन किया जाना चाहिए। यही बात प्रकृति के दोहन के संदर्भ में निर्विरोध रूप से लागू होती है। प्रकृति का सामजस्य हमसे नहीं है। अपितु हमारे जीवन का संपूर्ण ताना-बाना उस पर आधारित है। प्राणी जगत की सत्ता, प्रकृति द्वारा प्रदत सौगातों पर ही निर्भर हैं, जिसे हमने अपने कौशल के माध्यम से उपयोग में लाना सीखा है।<br />लेकिन इसके इत्तर, अपने अद्यतन अनुसंधानों पर अत्यधिक विश्वास कर शायद हम इस वैज्ञानिक युग में खुद को स्वयं यू भगवान मानने की आदिम कल्पना को संकल्पना में परिवर्तित करने के मिथक प्रयास रहे हैं। सूक्ष्म अणु में व्याप्त असीम शक्ति को नियंत्रित कर, उसका प्रतिनिधित्व करके यह सोचना की हम सृष्टि के निर्यामक बन गए हैं, किसी फंतासी से कम नहीं है। कृत्रिम गर्भाधन, क्लोनिंग, अंतरिक्ष विज्ञान इत्यादि के क्षेत्र में अप्रतिम प्रगति अवश्य ही हुई, परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं निकाल लिया जाना की हम प्रकृति की सत्ता को चुनौती देने में समर्थ हो गए हैं। इस धरा पर वहीं सब कुछ होगा जो मनुष्य सम्मत होगा सोचना भी गलत है। वस्तुत: हमें ध्यान रखना होगा कि कल्याणमयी प्रकृति ने जो अनुपम सौगात हमें दी हैं, उसका वह अक्षय स्त्रोत ही हम समाप्त न कर दें।<br />वातावरण की दशाओं में आ रहे परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं रह-रहकर इस इसी तथ्य को उभासित कर रही है कि प्राणी जगत की उपस्थिति इस धरती पर रंगमंच पर करतब दिखलाने वाली कठपुतलियों से अधिक नहीं है।<br /> प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण पाने में मनुष्य न केवल असमर्थ है अपितु उसके सम्मुख विवश भी है। गत~ कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं में हो रही वृद्धि को वैज्ञानिक निरंतर पर्यावरण में किए जाए जा रहे अनुचित हस्तक्षेप तथा ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए कोई भी देश तैयार नहीं दिखता। जो कि दु:खद विषय है। स्वयं भू भगवान बनकर प्रकृति को विना’ा के कागार पर पहुंचा के किसी नए गzह में जीवन की संभावना तला’ा करने से बेहतर है कि हम सब मिलकर पृथ्वी को बचाने का सार्थक प्रयास करें।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-6642848174232817012009-02-07T12:25:00.003+05:302009-02-07T12:51:19.670+05:30चांद पर आशियाना ( व्यंग्य )<a href="http://4.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SY0zJfKb4nI/AAAAAAAAAGQ/Yotrvz5KQwg/s1600-h/1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 310px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SY0zJfKb4nI/AAAAAAAAAGQ/Yotrvz5KQwg/s320/1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5299948574562050674" /></a><br />एक विदेशी कंपनी द्वारा चांद पर प्लांट काटकर बेचे जाने की खबर पढ़कर उन पारंगत प्रेमियों (दिवंगत नहीं, क्योंकि प्रेम अमर होता है, और इसलिए प्रेम करने वाले भी किस्से कहानियों में अमर हो ही जाते हैं। पारंगत इसलिए क्योंकि पहले तो एक-दूसरे को मिलने तथा बाद में प्रेम के प्रगाढ़ हो जाने पर एक-दूसरे को पाने के लिए तथा कभी अपवाद स्वरूप एक-दूसरे को छोड़ने के लिए अल्पमत वाली सरकार की तरह जोड़-तोड़ करते हैं) की आत्माओं को गहरी ठेस पहुंची होंगी जो सदियों से अपनी बपौती बने चांद को बिल्डर्स माफिया के कब्जें में फंसते हुए देख रहे होंगे। ये तो वास्तव में हद ही हो गई है। अब तो इसपर अखिल भारतीय प्रेमी-प्रेमिका मंच बनाकर, किसी महापंचायत की तरह महाअधिवेशन करने की आवश्यकता पड़ गई है। इस खबर को पढ़ते ही मेरे मन में ये विचार उस आकाशवाणी की तरह कौंधा जिसने प्राचीनकाल में कंस को भविष्य की आपदाओं से आगाह किया था। मुझे तो ये पूरा मामला डब्ल्यूटीओ की उन नीतियों से भी ज्यादा खतरनाक लगा, जोकि विकसित देशों के हितों की पैरवी के लिए गड़ी जाती हैं। अब बात यहां पर आ पहुंची है कि हमारे विशेषकर प्रेमी जोड़ों के आदर्श पूर्वज, हीर-रांझा, सोनी-महिवाल, लैला-मजनू आदि ने जहां अपने मुफ्त में आशियानें बनाएं वहां की पवित्र प्रेम में रंगी भूमि को ओने-पौने दामों में बेचा जा रहा है। ये सब देखकर उनके दिलों पर क्या बीतती होगी ये तो वो ही जानते होेंगे।<br />इस संसार में सबसे निरी प्राणी गधे को माना जाता है, मैं कुछ कारणों से प्रेमियों को मानता हूं। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो प्राय: कोमल भावनाओं की मिट्टी से बने ये प्राणी संसार में रहकर भी उससे उसी प्रकार पृथक रहते हैं जैसे पानी में रहकर भी मछली प्यासी ही रहती है। बेचारे एकांत की तलाश में परस्पर प्रेमालाप करने के लिए, इधर से उधर बिना पतंग की डोर की तरह अटकते-लटकते फिरते नजर आते हैं। 100 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में जब उन्हें एकांत नसीब नहीं होता, तो वे बिना किसी विरोधी पार्टी की तरह संसद के इर्द-गिर्द धरने-प्रदर्शन करने की अपेक्षा चुप-चाप चांद पर घर बसाने की योजना बना डालते हैं। अब कोई इस बात का रोना न रोयें कि ज्यादातर जोड़े छ: हफ्ते से अधिक एक साथ न रहकर (एक दूसरे को झेल सकने के सामथ्र्य के अभाव में)किसी दूसरे उम्मीदवार से नैन मटक्का शुरू कर देते हैं। अरे जब समय बदला है तो कुछ न कुछ परिवर्तन आज की पीढ़ी में भी आना स्वभाविक ही है। परंतु जैसे बिल्ली ने म्यांउ-म्यांउ करना नहीं छोड़ा है वैसे ही ये भी पार्टनर जितने भी बदले पर चांद पर घर बसाने की चाह हर बार निसंकोच ही रखते हैं। ऐसे में ये प्रेमियों की भावनाओं के साथ व्यवसायिक खिलवाड़ नहीं है तो और क्या है। हमारे साहित्यकार चांद के अंदर अपनी प्रेमिकाओं की छवि को तलाशते हैं भले ही नासा वालों को वहां गडडे और चट्टानों के सिवाय कुछ भी नजर नहीं आता . दशक-दो दशक पहले अंतरिक्ष यान भेजकर वैज्ञानिकों ने प्रेमियों के खिलाफ लामबद्ध होने का एक जरियां तक खोज डाला, उन्होंने अंतरिक्ष यान चांद पर भेजकर इस तथ्य को खोजा की न तो वहां पर आक्सीजन है और न ही पानी । बिना गुरुत्वाकर्षण शक्ति के व्यक्ति वहां फुदकता ही रहता है। आज के परिपेक्ष्य में देखे तो ये एक लंबी साजिश है प्रेमी-प्रेमिकाओं के खिलाफ वैज्ञानिकों और बिल्डरों की । वो इस प्रकार के तथ्य सामने रखकर उनका हौसला तोड़ना चाहते हैं। परंतु उन भले इंसानों को ये कौन समझायें की भैया जो खोज उन्होंने लाखों करोड़ों डघ्लर खर्च करके की है उसके बारे में तो हमारे प्रेमी समाज को पहले से ही पता है। चांद का ऐसा एटमोस्टफियर क्रिऐट करने में हमारे लवर लिजेंड का बहुत बड़ा हाथ है। जहां वे प्रेम की वास्तविकता से अवगत थे, वहीं उन्हें शादी के लडडू का भी ज्ञान था। कल को चांद पर घर बसाने के बाद, प्रेमिका के भरन-पोषण के लिए रोटी-लून के जुगाड़ के लिए पापड़ बेलने पड़े या फिर मेहबूबा के हाथों में घर का काम करते हुए छाले न पड़ जाएं, इसलिए उन्होंने ऐसी जगह पसंद की जहां इन चीजों का पंगा ही न हो। और वो बस फुदकते-फुदकते इधर से उधर प्रेममल्हार गाते रहें। अब इन बेचारों से चांद छिन गया तो क्या होगा। रात-दिन वो इसी के ख्वाब ही तो देखते रहते हैं। उनका जो होगा सो होगा पर प्यार के देवता क्यूपिड का क्या होगा जो अपने तीर मार-मार कर चांद की बस्ती को आबाद किए हुए हैं। यदि वहां पर व्यवसायिक गतिविधियां प्रारंभ हो गई तो अवैध निर्माण भी होंगे फिर निगम का बुल्ड़ोजर नहीं-नहीं। सहृदय प्रेमियों के साथ ऐसा नहीं होने दिया जा सकता है। वार्षिक बजट की तरह सरकार को संसद में प्रेमियों के हितों से संबंधित एक विशेष बजट को पास करना ही होगा तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रेमियों की स्थिति को ध्यान में रखकर एक सहमति भी बनवानी होगी ताकि प्रेमियों का आशियाना अक्षुण रह सकें। यदि सरकार प्रेमियों की इस मांग पर खरी नहीं उतरती तो आने वाले चुनावों में वे अपनी स्थिति समझ सकती है।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-79887232523942465052009-02-04T16:42:00.001+05:302009-02-04T16:53:04.841+05:30तो क्या खाए इंसान!<a href="http://1.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SYl6hSUEh-I/AAAAAAAAAGI/wlw5V8_aRKk/s1600-h/1.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 288px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SYl6hSUEh-I/AAAAAAAAAGI/wlw5V8_aRKk/s320/1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5298901148848392162" /></a><br />यह खबर उन लोगों के मुंह का स्वाद बिगाड़ सकती है जो तली चीजों के खाने के शौकीन हैं। सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट यानि सीएसई ने अपने एक ताजा अध्ययन मे खादय तेलों की उपयोगिता पर पश्नचिहन उकेर कर दिया है। सरएसई ने बाजार से खादय तेलों के विभिन्न ाडों के 30 से ज्यादा नमूने एकत्र कर उनमें टांस फैटी ऐसिड यानि की कृत्रिम चर्बी की जांच की। नतीजे चौकाने वाले निकले। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण के अनुसार सभी वनस्पति तेलों में जहां स्वास्थ्य के लिए खतरनाक टांस फैट ऐसिड की मात्रा 5 से 12 गुना तक अधिक पाई गई वहीं घी मे यह 5.3 प्रति’ात तक है जो अंतर्राष्टीय मानक से कई गुणा ज्यादा है।<br /> हैरानी की बात यह है कि देश में वनस्पति तेलों के लिए न तो कोई मानक तय किए गए हैं और न ही कोई प्रशासनिक निगरानी तंत्र ही है।उल्लेखनीय है कि टांस फैटी ऐसिड के कारण है शरीर में अच्छे कोलोस्टोल की कमी हो जाती है। यह दिल के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ स्त्रियों मेें बांझपन तथा कैंसर जैसी घातक बिमारियां भी हो सकती है।<br />अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य क्या खाए। सिर्फ हवा-पानी के सहारे तो वह जीवित नहीं रह सकता और वो भी प्रदूषित ही है। जीवित रहने के लिए उसे भोजन की परम आवश्यक्ता होती है।परंतु खाने के लिए शुद्ध क्या बचा है। कभी सिंथेटिक दूध की खबरें सुर्खियों में आती हैं तो कभी सब्जियों की पैदावार रात ही रात में दुगनी करने के लिए रासायनिक पदार्थों के उपयोग की । पहले मिलावट के लिए आटे में नमक की कहावत कही जाती थी पर अब तो नमक में आटा मिलाने का चल पड़ा है जिसके बारे में सरकार को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-6232670755537097852009-01-30T14:24:00.001+05:302009-01-30T14:27:38.515+05:30वसंत पंचमी<a href="http://1.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SYLA76qJasI/AAAAAAAAAGA/xCKXzDQJqlA/s1600-h/1.gif"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 283px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SYLA76qJasI/AAAAAAAAAGA/xCKXzDQJqlA/s320/1.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5297008247331973826" /></a><br />‘वसंत’ सुनते ही मन हिलोरे मारने लगता है, क्योंकि वसंत यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों से निर्मित शब्दमात्र नहीं है। वसंत अपने भीतर एक संपूर्ण संकल्पना संजोये हुए है जो विराट जीवन दर्शन का मूल है। वसंत मन को रोमांचित कर नवीन आशाओं के किसलय खिलाता है। इसलिए वसंत का महत्व सभी के लिए है। प्रकृति के लिए वसंत की क्या महत्ता है, यह उन वृक्षों-लताओं को देखकर लगाया जा सकता हैं जो शीत ऋतु में मृतप्राय: पड़े थे। वसंत के आगमन से उनमें नवीन कोपले आनी प्रारंभ हो गई । यानि उनमें नव जीवन का पुन: संचार होने के लक्षण उत्पन्न हो गए। यही तो वो कारण है कि वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती है। वसंत के आते ही सारा वातावरण मदमस्त हो जाता है। जड़ कर देनी वाली शीत ऋतु के बाद आने वाला यह मौसम बताता है कि यदि जीवन में यदि उत्साह न हो तो वो जिंदगी कैसी? जब मन में उत्साह होता है तो तभी हम कर्मठ होते हैं। देशकाल की यशोगाथा लिखने के लिए प्रवृत होते हैं। संभवत: यही कारण है कि ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वंदना भी इसी माह में होती है क्योंकि ज्ञान के अभाव में उत्साह के निरंकुश होने का भय रहता है। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी ने उत्साह से भरकर सूर्य देव को निगलने का प्रयास किया था।<br />ज्ञान उत्साह के मार्ग को नियंत्रित करता है। सात्विक ज्ञान और उत्साह का समायोजन ही तो कीर्ति का निर्माण करता है, वो कीर्ति जो युगों को प्रभावित करती है, प्रेरणास्त्रोत बनती है। तो आइये हम सब मिलकर इस उत्साह और ज्ञान के पर्व को मनाएं।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-47072975415750812372009-01-24T16:12:00.001+05:302009-01-24T16:18:57.207+05:30एक जर्रे की कहानी<a href="http://3.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SXrx2UoZzlI/AAAAAAAAAFw/ngNH8XOZago/s1600-h/untitled..jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 240px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_NJA4Gp5jDf8/SXrx2UoZzlI/AAAAAAAAAFw/ngNH8XOZago/s320/untitled..jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5294810227480841810" /></a><br />पिछले दिनों एक कहानी पढ़ी। कहानी एक जर्रे की। जर्रा जो एक मानव के पांव के नीचे आकर एक दार्शनिक की भांति जीवन दर्शन से अवगत कराता है। शायद यह कहानी आपको को भी अच्छी लगे। <br />कहानी का प्रारंभ कुछ यूं है कि एक दुखी रोता हुआ व्यक्ति अपनी धुन में चला जा रहा था कि अचानक उसका पैर एक जर्रे यानि धूल के एक कण पर पड़ा। पददलित होने की पीड़ा से वह कराह उठा और बोला-हे मानव मुझे और अधिक तिरस्कृत न कर। मत भूल, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आकाश में चमकते हुए सितारे टूटते हैं, पृथ्वी पर गिरते हैं और गिरने पर धुल ध्ूासरित हो जाते हैं। राजा रंक बन जाते हैं। देखते ही देखते महलों में रहने वाले झोपड़ियों में आ जाते हैं।सदा याद रख परिवर्तन प्रकृति का नियम है, कभी भी, कुछ भी हो सकता है। इसलिए निरन्तर प्रभु का धन्यवाद किया कर कि गुजरा हुआ पल आनन्दमय व्यतीत हुआ। पल पल जीवन का अवलोकन किया कर और हर पल के पश्चात ईश्वर का धन्यवाद किया कर। कुछ समय के लिए विराम लेने के पश्चात~ वह ज+र्रा फिर बोलने लगा। मैं भी एक दिन विश्व की उच्चतम चोटी का अंश था। बडे+-बडे+ प्रसिद्ध पर्वतारोही मेरी ओर लालसा भरी दृष्टि से देखा करते थे कि वह दिन कब आयेगा जब हम इस पर विजय पताका फैहरा पाएंगे, परन्तु मैं तो अजय था इसलिए निरन्तर गर्व में सिर उठाये रखता, कड़कती धूप और बर्फीली हवाओं को सहन करते हुए भी।परंतु समय के थपेड़ों ने प्रकृति के अन्य भागों की तरह मुझे भी प्रभावित किया। जब कड़कती धूप और कड़ाके की सर्दी को और अधिक सहन करने की शक्ति नहीं रही तो एक दिन उस चट~टान से अलग होकर गिर पड़ा। बस फिर क्या था, गिरा तो ऐसे गिरा कि पुन: उठ नही पाया। गिरने के उपरान्त मुझे याद आने लगा बीता हुआ समय। खैर! अब मुझे याद आने लगा अपना बीता हुआ मान-सम्मान। जब मैं चट~टान के साथ, अपने मूल के साथ जुड़ा हुआ था तो मेरा मान-सम्मान था। लोग मुझे ईष्र्या की दृष्टि से देखते थे। पर्वतारोही मुझ पर विजय प्राप्त करना चाहते थे और आस्तिक मेरे चरणों की पूजा किया करते थे। अब मुझे जुड़े रहने के महत्व का अहसास होने लगा। जुड़े रहने में कितना लाभ है, कितना मान-सम्मान है। एक छोटा सा पेच जब हवाई जहाज के साथ जुड़ा होता है तो उसकी निरन्तर सफाई की जाती है, वह खुले आकाश में घूमता है, उसका अपना महत्व होता है,उसकी उपयोगिता होती है। परन्तु जब वह पेच अलग हो जाता है तो वह हर पथिक की ठोकरें खाता है। एक कबाड़ी उसका मूल्य दो पैसे भी नहीं लगाता। पानी की एक बूंद जब तक सागर के साथ जुड़ी रहती है, वह सागर कहलाती है, परन्तु जब सागर से अलग होती है तब किसी एक व्यक्ति की प्यास बुझाने में भी असमर्थ रहती है।यही मेरे साथ भी हुआ। मैं तो जर्रा था इसलिए चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। लेकिन तुम तो मानव हो। इस सृष्टि के निमायक हो, तुम क्यों व्यथित हो। मानव की यह प्रवृति है कि बीते हुए समय को याद कर व्यथित होता है और भविष्य को संवारने की चिन्ता में रहता है। वर्तमान जिसे वह सुन्दर भी बना सकता है और उससे आनन्द भी प्राप्त कर सकता है उसकी अवेहलना करता है। भूल जाता है कि जिसका वर्तमान सुन्दर है उसका भविष्य तो सुन्दर होगा ही। जब तू यह समझ जाएगा और अपने अहम को त्याग कर परोपकार के कार्य करेगा तब तेरा जीवन भी आनन्दमय होगा, लोक सुखी रहेगा और परलोक भी सुभवना हो जायेगा। यह कहकर जर्रा चुप हो गया। मनुष्य को लगा कि उसके सभी दुखों का अंत हो गया और वह उस जर्रे को साथ ले अपना अहम त्याग अपने कर्म पथ पर अगसर हो गया।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-83291772142954050452009-01-12T14:19:00.000+05:302009-01-12T14:21:42.996+05:30बचपन की लोहड़ीआज जब अपने कार्यालय पहुचा तो अपनी मेज पर लोहड़ी से संबंधित एक आकर्षक निमंत्रण पत्र देखा। निमंत्रणपत्र को देखते-देखते कब बचपन की स्मृतियां मस्तिष्क में चलचित्र की भांति घूमने लगी इसका अहसास तक भी नहीं हुआ। स्मृतियों के महासगर में गोते लगाते-लगाते अचानक से वो सभी मित्र याद आ गए जिनके साथ मिलकर खूब लोहड़ी मनाई थी। बचपन का वो आलम याद आते ही मन प्रफुल्लित हो उठा और मन से सुंदर-मुंदरिए हो....के बोल फूट पड़े। अब एक-दो लाइनों के अलावा कुछ टूटे फूटे बोल ही याद आते हैं। पर जब एक लंबे अंतराल के बाद जब आप किन्हीं पुरानी बातों को याद करते हैं तो मन खुशी से खुद ब खुद ही झूम उठता है। अब लग रहा है कि जीवन की भागदौड़ में समय कैसे बीत गया पता ही नहीें चला।<br />शायद अब जीवन का ढर्रा बदल गया है जिसके कारण हम अपनी जीविकोर्पाजन के साधनों में ही कदर व्यस्त हो गए हैं कि शेष सबकुछ रीत गया सा लगता है। इसके अतिरिक्त पहले जिस प्रकार से उत्सवों में सामुदायिक भागीदारी होती थी, शायद वह गुम हो गई है या गुम होती जा रही है।<br />बचपन में हम सभी दोस्त लोहड़ी मांगने के लिए अपनी कालोनी के सभी घरों में जाते थे। दरवाजे पर दस्तक देने के साथ ही जब घर के अंदर से आवाज आती थी कि कौन है....तो हम सभी एक साथ, एक स्वर में गाने लगते- सुंदर-मुंदरिए हो...। हमारे गाने से ही गृहस्वामी समझ जाता और प्राय उत्साह के साथ हमारा उत्साह बढ़ाते। फिर लोहड़ी के दिन पार्क में खूब सारी लकड़ियां एकत्र कर लोहड़ी जलाते। रेबड़ी,मूंगफली और मक्कई के प्रसाद से जेबे भरकर खूब नाचते...। आज एक बार फिर यार दोस्तों के साथ वही धूम मचाने का मन कर रहा है। बहरहाल आप सभी को लोहड़ी-मकर साक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-29448670559761284902009-01-05T18:34:00.001+05:302009-01-05T18:34:58.850+05:30दिल्ली में कड़ाके की ठंडकई सालों के बाद राजधानी दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। दिल्ली की सुबह कोहरे की चादर से ढकी होती है तो शाम ठिठुरन वाली ठंड से जकड़ी होती है और ऐसे मौसम में जरा सी लापरवाही बिमारी को न्यौता दे देेती है। खासतौर पर नवजात बच्चों के लिए यह समय काफी खतरनाक है। सर्दी से जहां उन्हें बचाने की जरूरत है वहीं आवश्यकता इस बात की भी है कि यदि बच्चे को ठंड लग गई है तो उसका तुरंत ही इलाज करवाएं, क्योंकि आपकी बरती गई उपेक्षा से बच्चे को निमोनिया भी हो सकता है। इसलिए बच्चों के संदर्भ में विशेष सावधानी बरतें। यदि आपके बच्चे को ठंड लगी हो तो और आपको निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत ही डाक्टर से सलाह लें। <br />निमोनिया के लक्षण<br />बुखार होना<br />सांस लेने में दिक्कत<br />कमजोरी महसूस होना<br />सांस लेते समय छाती से आवाज निकलना<br />बोलते समय सीटी की आवाज निकलना<br />छाती का अंदर जाना<br /> बार बार प्यास लगना<br />उपाय<br />हर समय शरीर पर गर्म कपड़ा रख<br />संक्रमण वाले व्यक्ति के पास नहीं बैठें<br />स्वस्छ पानी पिएंchopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-49757859375480845772008-12-31T14:17:00.000+05:302008-12-31T14:19:40.275+05:30आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएंchopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-18578362135572178622008-12-31T13:57:00.004+05:302008-12-31T14:10:14.305+05:30दस्विदानिया-२००८ dasvidaniyaनया वर्ष, नई उमंगे लेकर आया है। गत~ वर्ष की दुखदायी घटनाओं से भीगी पलकों को पोंछकर हम सब तैयार हैं नए वर्ष में नई खुशियों के सपने सजाने और उन्हें पूरा करने के लिए। इस कड़ी में हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है। जो आज है, वो कल नहीं था और न ही कल होगा। इसलिए अपने आज से बेहतर कल को बनाने के लिए जहां निरंतर परिश्रम की जरूरत हैं, वहीं नवीन चुनौतियों का सामना का सामना करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्म विश्वास की भी।<br />लेकिन इस सब के मध्य यह भी आवश्यक है कि हम बीते वर्ष ;बीत रहे वर्षद्ध की उन घटनाओं पर भी नजर डाले जिन्होंने हमारे मन-मस्तिष्क को झकझोरा। उस समय को याद कर अपनी मौन श्रद्धांजलि दंे, जब हमारा âदय दर्द से चीत्कार कर उठा था। उन पलों को पुन: भविष्य में जीने की आस रखे जब हमारा सिर गर्व से तन गया था। बीते वर्ष की इन्हीं भूली-बिसरी यादों को आपके सामने लेकर आए है दस्विदानिया-2008 में।<br /><br /><br /><br /><strong>वैश्विक मंदी और धराशायी भारतीय शेयर बाजार:</strong> विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाले अमेरिका में सब प्राइम संकट ऐसा भूचाल लाया कि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की चूले हिल गर्इं। वैश्विक मंदी के इस चक्रव्यूह का भेदन करने के प्रयास निरंतर जारी हंै। अमेरिका के सबसे बड़े और पुराने बैंक लेहमैन और मेरिल लिंच इस आर्थिक सुनामी की भेंट चढ़ गए।<br /><br />इस आर्थिक मंदी के कारण कुलांचे मार रहा भारतीय शेयर बाजार भी बेदम हो गया। विदेशी निवेशकों के शेयर बाजार से हाथ खींचने के कारण बीएसई औंधे मुंह जमीन पर आ गिरा। पहले जहां सेंसेक्स के 25-27 हजार तक पहुंचने के कयास लगाए जा रहे थे, वहीं बाद में सेंसेक्स के पांच हजारी होने की बात होने लगी। रातो-रात अमीर होने की चाह रखने वालों को शेयर बाजार ने जोर का झटका दिया और करोड़ों रुपये शेयर बाजार में डूब गए।<br /><br /><strong>पहले लगी, फिर बुझी तेल की आग: </strong>महंगाई को बढ़ाने-घटाने में कच्चा तेल भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वर्ष 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में रिकाWर्ड वृद्धि और कमी हुई। कच्चे तेल के भाव वर्ष के मध्य में जहां 149 डाWलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे, वहीं वर्ष के अंत तक इनकी कीमतें मात्र 36 डाWलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई।<br /><br /><br /><strong>महंगाई की मार:</strong> वर्ष 2008 में मुदzास्फीति दर दो अंकों में पहुंच गई और आम आदमी को महंगाई की मार सहनी पड़ी। मुदzास्फीति की दर के 12 प्रतिशत के पास पहुंचने से सरकार ने आनन-फानन में अनेक रियायती कदम उठाए। कच्चे तेल की घटती कीमतों ने सरकार का साथ दिया और दिसंबर माह में मुदzास्फीति 6-7 प्रतिशत के बीच आ गई।<br /><br /><br /><strong>सबसे बड़ा आतंकी हमला:</strong> माया नगरी कहलाने वाली मुंबई के लिए 26 नवंबर की रात खौफ की रात बनकर आई। आतंकवादियों ने पहली बार छुपकर वार करने की जगह खुल्लम-खुल्ला मंुबई में एक साथ कई स्थानों पर हमला किया और 200 से अधिक लोगों को मार डाला। 10 आतंकवादियों ने मुंबई के चर्चित स्थानों पर गोलाबारी की। ताज तथा ट्राइडेंट होटल तथा नरीमन प्वाइंट को अपने कब्जे में कर लिया जिसे मुक्त कराने में कमांडों को लगभग 60 घंटे लगे। इस आतंकवादी हमले के कारण गृहमंत्री शिवराज पाटिल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख तथा गृहमंत्री आर.आर.पाटिल को अपने-अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।<br /><br /><strong>संसद में नोट:</strong> वामदलों के केंदzीय सरकार से समर्थन लेने के बाद अल्प मत में आई यूपीए सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना पड़ा। कुछ सांसदों ने सरकार पर उन्हें खरीदने का आरोप लगाया और सदन में नोटों के बंडल दिखलाए।<br />फैशन मंत्री: राजधानी दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद स्थिति का जायजा लेने पहुंचे गृहमंत्री शिवराज पाटिल द्वारा तीन-तीन बार ड्रेस बदलने के कारण मीडिया ने उनकी बहुत किरकिरी हुई।<br /><br /><br /><strong>मुंबई राज:</strong> महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा मुंबई में उत्तर वासियों के विरूद्ध छेड़े गए आंदोलन की देश भर में जमकर आलोचना हुई।<br /><br /><br /><strong>दिल्ली में शीला की हैट्रिक:</strong> 4 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को कांगzेस ने गहरा झटका दिया। कांगzेस जहां शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में अपनी सत्ता को बचाने में कामयाब रही, वहीं राजस्थान में उसने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। मिजोरम में भी कांगzेस की वापिसी हुई। भाजपा की दिल्ली विधानसभा में परचम लहराने की तमाम कवायद खोखली साबित हुई। पार्टी की अपने वरिष्ठ सांसद विजय मल्होत्रा को दिल्ली विधानसभा चुनावों में सीएम इन वेटिंग का झंडा पकड़वाना भारी पड़ा। मल्होत्रा अपनी सीट तो बचा गए, परंतु पार्टी चुनावों में हार गई। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह अपनी-अपनी सरकार पुन: बनाने में कामयाब रहे। जम्मू-कश्मीर में कांगzेस-नैकां का गठबंधन हुआ।<br /><br /><br /><strong>नहीं आई नैनो:</strong> लोगों का लखटकिया कार पाने का सपना, सपना ही बनकर रह गया। पश्चिम बंगाल में तीवz विरोध के कारण रतन टाटा की नैनो इस वर्ष लाने की योजना अधर में लटक गई।<br /><br /><br /><strong>खत्म हुआ फैब फोर का युग:</strong> भारतीय क्रिकेट में फेवरेट फोर युग का अंत सौरभ गांगुली और अनिल कुंबले के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के साथ खत्म हो गया। गांगुली आईपीएल के 20-20 क्रिकेट मैचों में फिलहाल नजर आएंगे।<br /><br /><strong>सचिन ने तोड़ा रिकाWर्ड:</strong> भारतीय क्रिकेट के गाWड कहे जाने वाले सचिन तेंडुलकर ने टेस्ट मैचांे में सबसे ज्यादा रन बनाने का श्रेय हासिल किया।<br /><br /><strong>आईपीएल में छाया वाWर्न का जादू:</strong> स्पिन गेंदबाजी के जादूगर कहे जाने वाले शेन वाWर्न का जादू इंडियन प्रीमियर लीग में सबके सिर चढ़कर बोला। आयोजन में सबसे कमजोर टीम का नेतृत्व करने वाले शेन वाWर्न ने टीम की एकजुटता तथा अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राजस्थान राWयल्स को आईपीएल का खिताब दिलवाया।<br /><br /><strong>धोनी की धूम:</strong> भारतीय क्रिकेट जगत में महेंदz सिंह धोनी की धूम मची हुई है। धोनी वन-डे, टेस्ट तथा 20-20 मैचों में भारतीय टीम के कप्तान हैं।<br /><br /><strong>लगा निशाना:</strong> चीन ओलंपिक भारत के लिए यादगार बना। ओलंपिक में निशानेबाज अभिनव बिंदzा ने पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता। वहीं बाWक्सिंग में विजेंदz तथा कुश्ती में सुशील कुमार ने कास्य पदक जीते।<br /><br /><strong>कोसी में बाढ़:</strong> बिहार राज्य को कोसी में आई भीषण बाढ़ से जूझना पड़ा। बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया।<br /><br /><strong>सीमा पर तनाव:</strong> पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दवाब बना हुआ है जिसके कारण सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ गई है।<br /><strong><br />अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य</strong><br /><strong>नेपाल में राजशाही की जगह लोकतंत्र:</strong> नेपाल में राजवंश का शासन समाप्त करके माओवादियों द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से सरकार बनाई।<br /><strong><br />पाकिस्तान में जरदारी राष्ट्रपति:</strong> परवेश मुशर्रफ के स्थान पर स्व. बेनजीर भुट~टो के पति आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बने।<br /><br /><strong>बराक ओबामा:</strong> अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय बराक ओबामा ने जोड़ दिया है। ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति हैं।<br /><br /><strong>परमाणु करार:</strong> भारत तथा अमेरिका के मध्य होने वाला 123 परमाणु करार अंतत: सिरे चढ़ ही गया। हालांकि इस करार को लेकर विपक्षी दलों की अपनी आशंकाएं है। उनका मानना है कि इस करार से भारत को कई प्रतिबंध लग सकते हंै।<br /><br /><strong>बुश पर जूता फेंका:</strong> अमेरिकी राष्ट्रपति जाWर्ज बुश पर इराक में आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान जूते फैंके गए। जूते फैंकने वाले इराकी शख्स के जूतों की कीमत करोड़ों में लगाई जा रही है।<br /><br /><strong>महाप्रयोग:</strong> जिनेवा में वैज्ञानिकों ने एक महाप्रयोग कर बzãांड के रहस्यों को सुलझाने की पहल की। इस प्रयोग के तहत लगभग 27 किलोमीटर लंबी एक सुरंग जमीन के नीचे बनाई गई। इस महाप्रयोग से पृथ्वी के नष्ट हो जाने के कयास लगाए गए।<br /><br /><strong>एलियन:</strong> परगzही यानि एलियन के अस्तित्व को लेकर पूरे वर्ष ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया सक्रिय रहा।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-51407639360096274742008-12-24T14:15:00.000+05:302008-12-24T14:17:32.881+05:30जूता महात्मयअभी तक तो हम इस गलफत में थे कि मात्र अपने ही देश में जूते को तव्ज्जों दी जाती है, परंतु अब जाकर पता चला कि संपूर्ण विश्व ही जूतामय है। संपूर्ण विश्व जूते में है और जूता विश्व में। जूता वास्तविकता में ग्लोबल है।<br />जूतों की सर्वव्यापक महत्ता को जानकर अब मजनूओं, कविया ेंऔर नेताओं के प्रति आगाध श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाता है, जो अक्सर जूतों का रसास्वादन करते रहते हैं। पहले जिन्हें तुच्छ समझता था, अब उनकी अहमियत का पता चलता है।<br /> आदिकाल से लेकर आधुनिककाल तक के साहित्य पर नजर दौड़ाने पर एक भी ऐसा उच्चकोटि का साहित्यकार नहीं मिलता, जिसने जूते के महत्व को जानकर उसके गुणों का बखान किया हो।<br />प्रेमिकाओं के नख-शिख सौंदर्य का ही वर्णन करके चुक जाने वाले साहित्यकार कभी-भी जूते में निहित सौंदर्य और उसके बहु आयामी उपयोग को समझ ही नहीं पाए। वो तो जूते को पांव की जूती ही समझते रह गए।<br />भला हो बुश साहब का जो अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम दिनों में जूते को महत्व दिलवा गए वर्ना अमेरिकी हवाई अड~डों पर अपने कपड़े-जूते सब कुछ उतार देने वाले लोग तो इस अहमियत से अछूते ही रहे।<br />यह बुश साहब की ही करामात है जिनके चाहने या न चाहने पर भी आर्थिक मंदी के महादौर में संपूर्ण विश्व को पता चल गया कि एक जूता आदमी को करोड़पति भी बना सकता है। अब तो यह लगने लगा है कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज आग या पहिया को न मानकर जूते को ही माननी चाहिए। जूते जब चाहें पहनों और जब चाहों चलाओ। देखा जाए तो जूता जहां पैरों के लिए ढाल है, तो वहीं यह मिसाइल बनकर दूर तक वार करने में भी सक्षम हैं। हां, इतना अवश्य है कि जूते की मारक क्षमता और तय दूरी फैंकने वाले की हिम्मत और शारीरिक ताकत पर ही निर्भर है। चूंकि अब तक जूतों को त्याज्य मानकर उन पर कोई सटीक अनुसंधान नहीं हुआ इसलिए उन पर कोई ऐसी दिशानिर्देशक चिप लगाने की व्यवस्था नहीं हो सकी जिससे वो ठीक निशाने पर लगे। उम्मीद की जा सकती है कि शीघz ही इस पर भी गहन अनुसंधान होगा और बाजारों में ऐसे जूते मिलने लगेंगे।<br />वर्तमान की घटनाओं को देखते हुए बोर्ड की परीक्षाओं में जुटे बच्चों को भी जूते की उपयोगिता के संदर्भ में अपनी जानकारी को परिपक्व करना चाहिए, ताकि परीक्षा में इस प्रकार कोई निबंध लिखने को मिलता है तो उन्हें परेशानी न हो।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-68432449637280269052008-08-02T16:36:00.000+05:302008-08-02T16:37:39.002+05:30पप्पू की पढ़ाई और धोनी की एडमिशनपप्पू की पढ़ाई और धोनी की एडमिशन सुनने में भले ही यह अजीब लगे कि पप्पू की पढ़ाई से धोनी की एडमिशन का कोई संबंध है, पर देखें तो बहुत गहरा संबंध है। हमारे देश में धोनी भले ही एक हो, परंतु पप्पूओं की संख्या हजारों-लाखों में है। हर पप्पू का बस यही सपना है कि लोग चिल्लाकर कहेंगे कि पप्पू पास हो गया है। पर कमबख्त, शिक्षा विभाग के अड़ियल रवैये के कारण एक पप्पू तो पिछले कई दशकों से दसवीं पास करने में जुटा है और अन्य कर्ई पप्पूओं को रेग्यूलर स्कूल, काWलेज में एडमिशन लेने के लिए भागीरथी प्रयास करने पड़ रहे हैं। वहीं अपने धोनी को स्नातक बनाने के लिए काWलेज प्रशासन शिक्षा विभाग तमाम नियम-मसौदों में हेर-फेर करने की जुगत लड़ा रहा है। अब तो बात आपको भी लाWजिंग क्लियर हो गया होगा कि पप्पू की पढ़ाई से धोनी की एडमिशन का संबंध परमाणु करार मुíे पर एकजुट कांगzेस और सपा से भी ज्यादा है। इसलिए देश का हर पप्पू अब धोनी को अपना आदर्श मानता है। माने भी क्यूं न, धोनी से उन्हें प्रेरणा मिलती है, खेलने की। अब आप यह सोचने लग जाएगे कि बात तो पप्पू की पढ़ाई की हो रही थी, फिर खेलने की बात कहां से आ गई। अब बात आ ही गई है तो समझ भी लें। पप्पूओं को धोनी से पेzरणा मिली खेलने की, अगर सभी पप्पू, धोनी की तरह खेलेंगे तो, वो दमादम नाम कमाएंगे। <br />नाम कमाएंगे तो धन वर्षा भी होगी और वो स्टार आइकाWन भी बन जाएंगे। अपने देश की जनता और मीडिया को प्रेम ही क्रिकेट से है। ऐसे में जब वो हर ओर छा जाएंगे तो उन्हंे भी आसानी से एडमिशन मिल जाएगा और फिर जनता जर्नादन एक साथ चीखेगी, पप्पू पास हो गया। अब आई बात समझ में। अब ज्यादा होशियार बनकर यह मत सोचने लग जाइएगा कि जब सभी पप्पू, धोनी की तरह खेलेंगे तो धोनी कहां खेलेगा।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-89034475671447484982008-08-02T16:32:00.002+05:302008-08-02T16:36:54.426+05:30मेट्रो की स्थिति<a href="http://bp3.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SJQ_qd2AN9I/AAAAAAAAAEU/pl0pa-RaA7A/s1600-h/metro.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp3.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SJQ_qd2AN9I/AAAAAAAAAEU/pl0pa-RaA7A/s320/metro.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5229875066082179026" /></a><br />राजधानी दिल्ली में ‘मेट्रो’ नाम एक अनूठी संकल्पना को सहेजे हुए है। यह संकल्पना मेट्रो के सुव्यवस्थित परिचालन, चाक-चौबंद सुरक्षा एवं व्यवस्था आदि से निर्मित है। यह कहना औचित्यपूर्ण नहीं है कि राजधानी में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के बाद आम आदमी से जुड़ी यदि कोई सेवा दिल्लीवासियों को सहजता का आभास कराती है तो वह दिल्ली मेट्रो ही है। साफ-सुथरे हाईटेक प्लेटफार्म, सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था, निर्बाध गति से मेट्रो का परिचालन, कुल मिलाकर विश्वस्तरीय सरीखी सुविधाएं जो सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट में उपलब्ध नहीं हो सकती, वो मेट्रो द्वारा गत~ कई वर्षों से प्रदान की जा रही है। <br />राजधानी में मेट्रो का निर्माण जिस समय प्रारंभ हुआ था, उस समय प्राय: आम जन की राय यही थी कि यह वृहद परियोजना मात्र दिवास्वप्न ही साबित होगी और यदि यह परियोजना ठंडे बस्ते में नहीं गई तो इसके पूर्ण होने में कुछ वर्ष नहीं, बल्कि कई दशक सहज ही लग जाएंगे। सरकारी परियोजनाओं के संदर्भ में यह बात झूठी भी नहीं मानी जा सकती। हालांकि मेट्रो इसमें अपवाद ही रही। भूमिगत मेट्रो मार्ग हो या Åंचे-Åंचे पिलरों पर मेट्रो ट्रेक बिछाने का कार्य, डीएमआरसी ने हर जगह सफलता का इतिहास रचा। लेकिन अब यहीं मेट्रो विवादों के घेरे में घिरती जा रही है। मेट्रो निर्माण स्थल में होने वाले हादसों के कारण मेट्रो की कार्यप्रणाली के समक्ष प्रश्नचिह~न लगने प्रारंभ हो गए हैं। कभी मेट्रो मार्ग के निर्माण स्थल पर लोहे का गार्डर गाड़ी के Åपर गिर जाता है, तो कभी लोहे की छड़ व्यक्ति के आर-पार हो जाती है। मेट्रो निर्माण स्थल पर इस प्रकार की असावधानी मेट्रो की बिगड़ती प्रबंधकीय व्यवस्था की ओर साफ इशारा करती हैं। केंदzीय सचिवालय से दिल्ली विश्वविद्यालय मार्ग तक मेट्रो के परिचालन में मिलने वाली ढेर सारी शिकायतों से आहत दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्वयं मेट्रो में सवार होकर इसका निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बात को महसूस किया कि मेट्रो व्यवस्था में गिरावट आनी शुरू हो चुकी है। कमाई के मामले में मेट्रो आए दिन ही रिकाWर्ड बना रही है। परंतु जिन सुविधाओं के परिणामस्वरूप दिल्ली की जनता ने मेट्रो को सर-माथे पर बिठाया था, अब वहीं धीरे-धीरे नदारद होती जा रही है। देखा जाए तो डीएमआरसी का लगभग सारा ध्यान मेट्रो के माध्यम से मोटी कमाई करने का बन चुका है। डीएमआरसी जितना आतुर कमाई करने के लिए हो रखा है, उतना ही वह कम ध्यान यात्रियों की सुविधाओं पर दे रहा है। यदि स्थिति यही रही तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली मेट्रो की स्थिति भी डीटीसी की तरह हो जाएगी।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-29983770948507471322008-07-19T17:54:00.003+05:302008-07-19T18:17:03.776+05:30व्यंग्य देश के भविष्य का सवाल<a href="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SIHhgDoTyAI/AAAAAAAAAEM/DutsnRQ6plg/s1600-h/election.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SIHhgDoTyAI/AAAAAAAAAEM/DutsnRQ6plg/s320/election.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5224704983572924418" /></a><br />गुप-चुप से बैठे छेदीलाल बार-बार अपने मोबाइल फोन को इस तरह निहार रहे हैं, जैसे कोई पुराना शराबी, खाली पड़ी शराब की बोतल को बड़े अरमानों के साथ देखता है। पिछले कई दिनों से एकांतवास में बैठे छेदीलाल खुद को कोसते नहीं थकते। केंदz सरकार के अस्थिर होते ही सांसदों के जोड़-तोड़ की खबरे जैसे हीं मीडिया में सुनामी की तरह आने लगी, उसी समय मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह छेदीलाल भी अपना बोरिया-बिस्तर समेट एकांतवास में निकल गए।<br />आज चार दिन बीत जाने के बाद भी जब किसी पार्टी ने उन्हें फोन करके हाल-चाल नहीं पूछा तो उनका धैर्य भी चुकने लगा। मन ही मन मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे। मीडिया वालों ने व्यर्थ का हो-हल्ला मचा कर रखा हुआ है...सांसदों की लाWटरी लगने वाली है। यहां तो पिछले चार दिन से फोन की घंटी तक नहीं बजी। न तो मीडिया ने उन्हें विशषज्ञ मान उनसे कुछ पूछा और न किसी राजनीतिक दल ने कि आप किस ओर हैं।<br />पहले छेदीलाल जी को इस बात का गम सालता था कि कोई भी पार्टी उन्हें टिकट न देकर समाजसेवा करने से वंचित कर रही है।और जब वो जैसे-तैसे जोड़-तोड़ संसद पहुंचे तो अब उन्हें यह बात अंंदर ही अंदर ही खाए जा रही है कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें देश के भविष्य के निर्माण पूर्णाहूति डालने का निमंत्रण नहीं दे रहा। कोई भी नृप हो, हमें क्या हानि के मूलमंत्र में विश्वास रखने वाले छेदीलाल किसी भी परिस्थिति में उस प्रसाद से वंचित नहीं रहना चाहते तो पूर्णाहूति के पूर्व ही लोकतंत्र में बंट रहा है।<br />सरकार बचाने-गिराने के इस भीषण मंथन में उनकी सारी आस्था भीष्म की तरह प्रसाद के आसपास ही स्थिर हो चुकी है। तभी उनका मोबाइल घिग्गिया और देशभक्ति की रिंग टोन बजी। किसी अनजानी खुशी के साथ मोबाइल उन्होंने झटपट उठा गर्व के साथ कहा हैलो। उधर से एक सुरीली आवाज आई सर हमारा बैंक आपको लोन उपलब्ध करवा सकता है, क्या आपकी कोई रिक्वायरमेंट है? आप क्या करते हैं, मैं सांसद हूं, अनमने मन से खिसिया कर छेदीलाल बोले। तो फिर आपको लोन की क्या जरूरत, आजकल तो वैसे ही... इससे पहले बात पूरी होती छेदी लाल जी ने उसका आशय भांपकर फोन काट दिया और अपने ड्राईवर को आवाज लगाई चल पप्पू, झटपट गाड़ी निकाल राजधानी जाना है...ं देश के भविष्य का सवाल है।<strong></strong>chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-92105803804054738972008-07-09T14:40:00.006+05:302008-07-09T15:00:22.671+05:30वैकल्पिक उर्जा <a href="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHSCKBDPNiI/AAAAAAAAAD8/v3Jv73kwWmY/s1600-h/3.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHSCKBDPNiI/AAAAAAAAAD8/v3Jv73kwWmY/s320/3.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5220940976621565474" /></a><br /><br /> बढ़ती तेल की कीमतों से न केवल भारत अपितु विश्व के अन्य देश भी प्रभावित हो रहे हैं। देखा जाए तो 18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के पश्चात~ से विश्व अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से तेल आधरित हो चुकी है। कच्चे तेल को इसी कारण ब्लैक गोल्ड की संज्ञा भी दी गई। लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व जीवाश्म से निर्मित यह अमूल्य संपदा निरंतर किए जा रहे दोहन के कारण आज समाप्ति के कगार पर पहुंच रही है। वैज्ञानिकों की माने तो यदि वर्तमान स्तर पर ही प्राकृतिक तेल का दोहन किया जाता रहा तो अगले कुछ सौ सालों में विश्व के तेल कुंए तेल उगलना बंद कर देंगे तथा उससे पूर्व तेल की कीमतें इतनी बढ़ चुकी होंगी की संभवत: वह राशनिंग पर भी न मिले। इस स्थिति से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक ईंधनों की खोज एवं उपयोग को बढ़ावा देने का विचार दिया है। हालांकि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं, परंतु उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। यदि इन वैकल्पिक उर्जा स्त्राोतों को परिष्कृत कर अपनाने के लिए सभी देश एक जुट हो जाएं तो स्थिति में काफी हर्षात्मक सुधार हो सकता है। पृथ्वी पर सरलता से प्राप्त होने वाले अन्य उर्जा स्त्रोतों यथा सौर, भूतापीय, समुंदzीय, वायु एवं परमाणु उर्जा के उपयोग की तरफ ध्यान दिया जाए तो बिगड़ी स्थिति को सुधरा भी जा सकता है, लेकिन इसके लिए बिना किसी लागलपेट के शुरूवात करने की जरूरत है। इस संदर्भ में अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का अभी तक रवैया सुखद नहीं रहा है। <br /><br /><br /><blockquote>तेल की खोज वो चमत्कारिक घटना थी, जिसने मानव जाति के भविष्य को ही बदल कर रख दिया। जैसे-जैसे वह इस तेल के उपयोग के विविध तरीकों की खोज करता गया, वैसे-वैसे वह नवीन इतिहास का सजृन करने लगा। यद्यपि तेल के प्रथम कुंए के मिलने का विवरण चौथी शताब्दी में चीन से जुड़ा है, परंतु इसके उपयोग की गाथा का प्रारंभ 18वीं शताब्दी से ही माना जाता है। इस शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का जो सूत्रापात हुआ था, उसी के वनस्पत: तेल के कंुओं की खोज और उसके परिष्कृत रूप के उपयोग की संभावनाओं को टटोला जाना शुरू हुआ, जो अब भी जारी है। भूमि से प्राप्त होने वाले इस कच्चे तेल के कंुओं पर आधिपत्य जमाने के लिए युद्ध आरंभ हुए जो आज भी जारी हैं। वस्तुत: आज तेल के बिना किसी प्रकार की प्रगति की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहनों से लेकर हवा में उड़ते हवाई जहाज सभी इस तेल की ही देन हैं। मनुष्य के उड़ने का सपना, सपना ही रह जाता यदि तेल की खोज न होती। आज दूसरे गzहों पर मानव बस्तियां बसाने की बात की जा रही हैं, नवीन अनुसंधान हो रहे हैं, वो सब इस तेल की ही देन तो हैं। </blockquote><br /><br /><br />चूंकि तेल, जल की तरह चक्रीय संसाधन नहीं है, इसलिए आज इस बात की आवश्यकता बहुत बढ़ गई है कि तेल का उपयोग समझदारी पूर्वक किया जाए ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्राप्त होता रहे। इसके लिए आवश्यकता है ईंधन के वैकल्पिक स्त्रोतों के खोज एवं उनके उपयोग की। <br />इस कड़ी में सबसे पहले वैकल्पिक उर्जा के स्त्रोत के रूप में सौर उर्जा का नाम आता है। सूर्य से हमें निरंतर उष्मा प्राप्त होती है। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख कारण सूर्य ही है। उर्जा की दृष्टि से सूर्य वैकल्पिक उफर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत सिद्ध हो सकता है। यदि इस दिशा में अनुसंधान किए जाए।<br />वायु उर्जा: विश्व में अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े पंखों की सहायता से वायु का उपयोग उर्जा पैदा करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि यह स्त्रोत हर जगह कारगर सिद्ध नहीं हो सकता, परंतु उपयुक्त स्थानों पर इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।<br />भूतापीय उर्जा: उर्जा के इस स्त्रोत का उपयोग केवल उन स्थानों पर किया जा सकता है जहां पर गर्म जल के झरने बहते हैं। यद्यपि संपूर्ण विश्व में इस प्रकार के क्षेत्र अत्यंत सीमित ही हैं, लेकिन जहां पर इन जल स्त्रोतों की भरमार है, वहां पर इनका उपयोग उर्जा उत्पादन के लिए करना श्रेयष्कर है।<br />समुंदzीय उर्जा: समुंदz की विशाल लहरों से विश्व के अनेक देशों में बिजली पैदा करने का कार्य किया जा रहा है। फांस आदि कुछेक देशों में इसके माध्यम से बिजली घर भी बनाए गए हैं। फिलहाल यह पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय नहीं हो पाई है। <br />समुंदz तटीय प्रदेशों में यदि सागरीय लहरांे के उपयोग द्वारा उफर्जा उत्पन्न करने की तकनीक को विकसित एवं बढ़ावा दिया जाए तो इससे भी तेल के उपयोग को कुछ कम करने में सहायता मिलेगी।<br />परमाणु उर्जा: परमाणु शक्ति को उफर्जा के एक वृहद स्त्रोत के रूप में देखा जाता है। परमाणु तकनीक के माध्यम से उर्जा को उत्पन्न कर उसका उपयोग लाभकारी कार्यों में किया जा सकता है।<br /><br /><em><em><blockquote>विश्व में सबसे अधिक तेल उत्पादक देश साउदी अरब है जबकि सबसे बड़ा उपभोक्ता देश अमेरिका है। अनुमानत: साउदी अरब में 8.582 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन होता है। चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। संभावित आंकड़ों के आधर पर विश्व में तेल का स्टाWक 10 खरब बैरल से भी ज्यादा का है। जबकि वर्तमान में संपूर्ण विश्व में तेल की कुल खपत 84 मिलियन बैरल की है। हालांकि सभी देश पूर्णतया: न भी हो परंतु स्थूल रूप से इन खाड़ी देशों पर अपनी तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर हैं। जिस प्रकार से तेल की मांग बढ़ती जा रही है उसकी तुलना में इनका उत्पादन कम है। तेल की कीमतों में हो रही वृद्धि का यह प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त तेल उत्पादन में युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक परिस्थितियां, उत्पादक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती आदि कारणों से तेल की कीमतों में वृद्धि होती रहती है। </blockquote></em></em><br /><br /><br />आए दिन आप विभिन्न समाचार पत्रों में पढ़ते अथवा टी.वी. न्यूज चैनलों पर सुनते होंगे कि कच्चे तेल की कीमतें रिकाWर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। आज कच्चे तेल के दाम इतने बैरल हो गए हैं आदि-आदि। क्या आपको पता है कि कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण बैरल में किया जाता है। एक बैरल में 158 लीटर तेल होता है। विश्व के संपूर्ण तेल का लगभग 75प्रतिशत हिस्सा ओपेक के सदस्य देशों के पास है। ये देश यदि एक दिन भी हड़ताल पर चले जाएं तो सारी दुनिया में ही हाहाकार मच जाएगा। इन देशों की अर्थव्यवस्था तेल के कुंओं पर ही आश्रित है। ब्लैक गोल्ड के ये सिरमोर देश ओपेक देश कहलाते हैं। उल्लेखनीय है कि ओपेक विश्व के 13 बड़े तेल उत्पादक देशों का समूह है। इन देशों में साउदी अरब, इराक, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, लीबिया, अंगोला, अलजीरिया, नाइजीरिया, कतर, इंडोनेशिया और वेनेजुएला सम्मिलित हंै। इन देशों द्वारा औसतन: 27-28 मिलियन बैरल से ज्यादा का तेल उत्पादन किया जाता है। दुनिया को गतिशील रखने में इन देशों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। कच्चे तेल में पेट्रोल, गैसोलीन, एलपीजी, बेंजीन, केरोसिन, नापथा, फुएल आWयल, ईथेन, गैसआWयल, एथीलीन, सिंथेटिकफाइबर, प्रोपीलीन, ब्यूटेडिएन्स, अमोनिया, मेथानाWल, लुबिzकेंट, सिंथेटिक रबर आदि मिले होते है।<br /><br /><br /><blockquote>विकास की दzुत गति के परिणाम स्वरूप देश में पेट्रोल की मांग तेजी से बढ़ी है। देश में कुल खपत का लगभग 70प्रतिशत हिस्सा भारत को बाहर से निर्यात करना पड़ता है। वर्तमान खपत दर के अनुसार देश में 116 मिलियन मिट्रिक टन तेल की वार्षिक आवश्यकता है। जबकि देश में इसका उत्पादन इस मांग के अनुपात में अत्यंत कम है। देश में घरेलू उत्पादन 33 मिलियन मिट्रिक टन मात्रा है। <br />तेल की बाकी आवश्यकता की आपूर्ति खाड़ी देशों से तेल निर्यात कर पूरी की जाती है। तेल और गैस की बढ़ती मांग के मíेनजर सरकार द्वारा तेल और गैस की खोज के क्षेत्र में शतप्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी जा चुकी है। इसके अतिरिक्त भारतीय कंपनियों द्वारा देश से इत्तर रूस सहित अनेक अन्य देशों में भी तेल की खोज तथा तेल परिष्करण के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां ओ.एन.जी.सी. तथा आWयल इंडिया लि. द्वारा भारत में तेल की खोज की जा रही है। आंकड़ों की माने तो तेल और गैस की घरेलू खोज में इन दोनों कंपनियों का कुल हिस्सा लगभग 83प्रतिशत है। देश में 150 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस की दैनिक आवश्यकता है। <br />जबकि देश में इसका उत्पादन लगभग 75 मिलियन क्यूबिक मीटर ही है। अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारत तथा ईरान के मध्य गैस पाईप लाईन परियोजना पर कार्य किया जा रहा है।</blockquote>chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-64226382711797560282008-07-07T18:20:00.000+05:302008-07-07T18:23:48.669+05:30रेवा <a href="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHIRqXJY-pI/AAAAAAAAAC4/wWV2h4BGO-E/s1600-h/reva+e-car.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHIRqXJY-pI/AAAAAAAAAC4/wWV2h4BGO-E/s320/reva+e-car.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5220254337541405330" /></a><br />इलेक्ट्रिक इंजन, फुल आWटोमैटिक <br />;बिना गियर और क्लच के, ट~यूबलेस टायर, <br />डिस्क बzेक, रिजेनरेटिंग बzेकिंग सिस्टम,डेंटप्रूपफ 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src="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHIPsZ_lRvI/AAAAAAAAACw/XmHgYE0SK_c/s320/bill.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5220252173642057458" /></a><br />सपनों को हकीकत में बदलना और फिर उसे दूसरों के लिए आदर्श बना देना, यह जादू या करिश्मा वाकई में ही विश्व के सबसे धनी लोगों की श्रेणी में शुमार बिल गेट~स ही कर सकते हैं। सफलता के शिखर पर आसन जमाये बिल गेट~स ने 52 वर्ष की आयु में ;जोकि बहुत ज्यादा नहीं हैद्ध कंपनी के विशाल सामzज्य की जिम्मेदारी अपने एक मित्र के कंधों पर डालकर, अपने जीवन की दूसरी पारी में एक नए क्षेत्र में नवीन आदर्श तथा कीर्तिमान स्थापित करने के लिए बेहिचक पहल कर दी। अब उनका सबसे बड़ा लक्ष्य अपनी अरबों-खरबों की दौलत जरूरतमंदों में बांटने का है। देखा जाए तो वो कोई संत-महात्मा नहीं है। वो टैक्निकल लैंग्वेज में प्योर प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने लगभग 3 दशक पूर्व अपनी मेहनत से अपनी सफलता की कहानी लिखी। माइक्रोसाफ्ट कंपनी की नींव रखने वाले बिल गेट~स ने जग प्रसिद्ध कई नामचीन हस्तियों की तरह अपना कैरियर शून्य से शुरू कर उस मुकाम तक पहुंचाया जिसके आस-पास, आज तक कोई फटक नहीं पाया। अकूत संपदा के मालिक होने के बावजूद भी उनके कृत्य निरंतर जनसेवा के कार्यों से जुड़े रहे। इसलिए उन्हें उन संतों की श्रेणी में शामिल करना गलत नहीं होगा जो न केवल जनहित के लिए कार्य करते हैं अपितु समाज के सम्मुख आदर्श भी रखते हैं। यह साधारण व्यक्ति की असाधारण सोच नहीं है तो क्या है? इसे बिल गेट~स की आसाधण क्षमता ही कहा जाएगा कि सफलता के नवीन मापदंड उन्होंने स्वयं ही तय करें। इस कार्य के लिए उन्होंने किसी परिपाटी का अनुकरण की बजाय खुद के लिए एक नई लीक तैयार की। अब उनका ध्यान दुनिया भर में बिल एंड मेलिंडा गेट~स फाउडेंशन के माध्यम से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा प्रसार, रोग निदान आदि कार्यक्रमों को चलाने में रहेगा। अब उन्होंने जो नई विंडोज बनाई है, उसका लाभ भी जन-जन पहुंचेगा।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-60350661367731840092008-07-07T18:04:00.000+05:302008-07-07T18:08:26.952+05:30 रियलिटी शो <a href="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHIOFaOJDsI/AAAAAAAAACo/soyTjR0FIVY/s1600-h/singing.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SHIOFaOJDsI/AAAAAAAAACo/soyTjR0FIVY/s320/singing.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5220250404176596674" /></a><br />पिछले कुछ एक वर्षों से छोटे पर्दें पर रियलिटी शो तथा प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रमों की बाढ़-सी आ रखी है। इन कार्यक्रमों से जिस प्रकार टी.वी.चैनलों की टीआरपी बढ़ती है, उसे देखते हुए हर एक टीवी चैनल इस प्रकार के ‘डेली सोप’ कार्यक्रमों को अपने एयर टाइम में जगह देने के लिए तैयार खड़ा है। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इन कार्यक्रमों में विजेता को एक भारी भरकम रकम तथा प्रसिद्धि इनाम के रूप में मिलती है, जिसके कारण शो में भाग लेने वाला हर प्रतिभागी खुद को सिकंदर साबित करने में जी-जान से जुट जाता है। और खुद को सिकंदर साबित करने की यह मनोदशा उन्हें कई बार अवसाद के चक्रव्यूह में भी उलझा देती है। उधर कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ाने के लिए भी तमाम तरह के हथकंडे चैनलों द्वारा अपनाए जाते हैं। शो के जजों के आपसी मनमुटाव से लेकर प्रतिभागियों की आपसी नोक-झोक को भी ‘सनसेशनल’ सनसनी बनाकर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। चूंकि यह सारा मामला टीआरपी से अर्थात~ गलाकाट होड़ में अन्य चैनलों से आगे निकलने का होता है इसलिए हर वो तरीका अपनाया जाता है, जिससे दर्शक कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित हांे। इसी बानगी के तहत छोटे-छोटे बच्चों को भी रातोरात स्टार और लखपति बनने के ख्याब दिखाए जाते हैं। बड़ों की तर्ज पर जब यह सुकुमार व्यावसायिकता के पुट से परिपूर्ण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो वहां उनके साथ व्यवहार भी किसी प्रोफेशनल की तरह ही किया जाता है। हालांकि इसमें केवल टी.वी. चैनल वालों को ही दोष देना गलत होगा, क्योंकि संभवत: अभिभावकों का एक बड़ा तबका भी जाने-अनजाने इस ग्लैमर से प्रभावित होकर अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों पर डाल देता है। इस सबके बीच में अबोध आयु के बच्चे पर कार्यक्रम में असफल होने पर क्या बीतती होगी, इसका अंदाजा किशोरवय शिंजिनी सेन गुप्ता की मनोस्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। दक्षिण कोलकाता की शिंजिनी को एक रियलिटी शो में जजों के विचारों से इस कदर मानसिक आघात लगा कि वह लकवे का शिकार हो गई। गुमसुम सी शिंजिनी अस्पताल में उपचाराधीन है। नृत्य, जो प्रत्येक मानवीय भावना को अपनी मुदzा द्वारा अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता है, उसकी स्तुति करने वाली शिंजिनी इस प्रकार अशक्त हो जाएगी, संभवत: किसी ने सोचा भी न होगा। यहां पर हमारा उíेश्य किसी पर दोषारोपण करने का या किसी की भावनाओं को आहत का कदापि भी नहीं है। शो के जजों को यदि गुरु मान लिया जाए तो उनका कार्य ही प्रतिभागियों ;शिष्योंद्ध की योग्यता का आंकलन कर उनकी कमियों को उनके सामने लाना है। ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि वह कटुवचन भी बोल दें। उधर प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी संतान जीवन में सफलता और यश प्राप्त करें, इस लिए वो अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं, और नि:संदेह करना भी चाहिए। लेकिन इन सब के बीच जो एक अहम~ सवाल है कि प्रतियोगी बच्चों की भावनाओं को भी सभी समझना आवश्यक है, उसे दर किनार ही कर दिया जाता है, जिसका परिणाम शिंजिनी के रूप में हमारे सामने है। यहां आवश्यक यह है कि बच्चा किसी प्रतियोगिता, केवल टीवी शो ही नहीं बल्कि पढ़ाई इत्यादि के क्षेत्र में भी असफल हो जाता है, तो उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास सभी के द्वारा करना चाहिए। रियालिटी शो में शिल्पा शेट~टी जैसे स्थापित कलाकार भावनात्मक रूप से आहत हो जाते हैं तो एक बच्चे की स्थिति सहज समझी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि टीवी चैनलों के जज एवं बच्चों के माता-पिता भी इस बात का ध्यान रखें। बहरहाल शिंजिनी ठीक होकर जल्द से जल्द घर आए, सबकी यहीं प्रार्थना है।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-25462664433764714792008-06-04T12:38:00.000+05:302008-06-04T12:57:06.925+05:30लो बढ़ गए दाम....... ब्रेकिंग news....<a href="http://bp0.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SEZDqwxJ1LI/AAAAAAAAACY/iKEobV77fbA/s1600-h/muri+dev.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp0.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SEZDqwxJ1LI/AAAAAAAAACY/iKEobV77fbA/s200/muri+dev.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5207924421025191090" /></a><br /><a href="http://bp0.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SEZDrpSyBGI/AAAAAAAAACg/meoIQS6A5dc/s1600-h/oil.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp0.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SEZDrpSyBGI/AAAAAAAAACg/meoIQS6A5dc/s200/oil.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5207924436198622306" /></a><br />नई दिल्ली। पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने आखिरकार पेट्रोल,डीजल सहित रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि करने की घोषणा कर ही दी। पेट्रोल की कीमतों मे 5 रुपये की तो डीजल की कीमतों में 3 रुपये प्रति लिटर की बढ़ोतरी हो गई है। जबकि रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 50 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ा दी गई है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ते तेल की कीमतों के मद~देनजर स्वदेशी तेल कंपनियों पर पड़ रहे बोझ को कम करने के लिए यह कदम उठाना आवश्यक माना जा रहा था।<br />लेकिन सरकार के इस निर्णय से मुदzास्फीति की दर में गिरावट आने की उम्मीद करना ही अब बेमानी हो गया है। महंगाई का बोझ आम जनता पर बढ़ेगा, जिस के साथ होने का दावा सरकार करती है।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-28635350265666385202008-05-30T12:55:00.000+05:302008-05-30T13:51:54.518+05:30<a href="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SD-4q2udyqI/AAAAAAAAACQ/fQUYyJyoG44/s1600-h/food+copy.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SD-4q2udyqI/AAAAAAAAACQ/fQUYyJyoG44/s320/food+copy.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5206082740648004258" /></a><br /><blockquote>बढ़ती महंगाई और खाघान्न की समस्या से चहुंओर आग लगी हुई है। इस आग से सबसे प्रभावित है आम नागरिक जिसे दो वक्त की रोटी जुटाना भी अब भारी पड़ रहा है। बीते दिनों मुदzास्फीति की दर में जिस प्रकार की वृद्धि दर्ज हुई वो चौकाने वाली है। सरकार के तमाम दावे और प्रयास 20-20 क्रिकेट में डेक्कन चार्जस के फ्लाप शो की तरह ही रहे। विश्व के नामचीन अर्थशास्त्रियों की जुगलबंदीे भी बढ़ती मुदzस्फीति की दर का थमाने में असमर्थ लगती है। हालांकि इस तथ्य को <br />झुठलाया नहीं कहा जा सकता की बढ़ती महंगाई के नेपथ्य में सरकारी नीतियों के साथ-साथ संपूर्ण विश्व की गतिविधियां भी कहीं न कहीं कारक के रूप में उपस्थित रहीं हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि संप्रग सरकार सारे मामले को वैश्विक घटनाओं पर थोपकर अपना पल्ला झाड़ ले। विकास का पहिया निरंतर घूमता रहे इसके लिए मजबूत अर्थव्यवस्था की आवश्यकता प्रथम अनिवार्य शर्त है। लेकिन हाल के दिनों में जिस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था को झटके लग रहे हैं, वो भविष्य के प्रति आगाह करते हैं जिसकी अनदेखी करना महंगा पड़ सकता है। इस समस्या को दो विभिन्न आयामों से देखकर वैश्विक परिपेक्ष्य में सरकार की स्थिति को आंका जा सकता है।</blockquote><br /><strong>18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति ने विश्व</strong> में एक नए युग का सूत्रपात कर दिया था। इस क्रांति की बदौलत न केवल यूरोप विकास के पथ पर अगzसर हुआ, अपितु संपूर्ण विश्व ही उसके बनाए रोड मैप का अनुसरण कर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने लगा।औद्योगिक क्रांति ने विकास की वो बुनियाद डाली जिस पर आज संपूर्ण संसार की अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से टिकी हुई है। <br />प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध भी इसी औद्योगिक क्रांति की देन माने जा सकते हंै। औद्योगिकीकरण की रफ्तार बनाए रखने के लिए जब कच्चे माल तथा औद्योगिकीकरण के कारण फैक्ट्रियो में बने बहुतायात उत्पादों को खपाने के लिए बस्तियों की आवश्यकता पड़ी तब उपनिवेशवाद का एक नया दौर भी जन्मा था।यह कहना अतिश्योक्ति पूर्ण नहीं है कि औद्योगिकीकरण की वजह से ही हरित एवं श्वेत क्रांति भी अस्तित्व में आ सकीं।<br />बहरहाल, 19वीं शताब्दी की समाप्ति तक वैश्विक मंच और विभिन्न देशों की भौगोलिक सीमाओं में अनेक परिवर्तन आए और वैश्वीकरण की भावना को बढ़ावा मिलने लगा। आर्थिक क्षेत्र में सहयोग की बढ़ती आवश्यकता ने सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर बनाकर, स्वयं को सर्वेसर्वा मानने की भावना को रसातल में पहुंचा दिया। यही कारण है कि जब विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमेरिका पर सबप्राइम संकट छाया तो भारत सहित अनेक देशों की अर्थव्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा और उससे बचने के उपाय ढूंढे जाने शुरू हुए। इसी प्रकार खाड़ी देशों से विभिन्न देशों में निर्यात किए जाने वाले कच्चे तेल की कीमतों का प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्ररोक्ष रूप से प्रभावित करने में सक्षम है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों का बढ़ना, महंगाई के बढ़ने की दिशा तय करता है, ऐसे में यह कह पाना काफी कठिन है कि अंतर्राष्ट्रीय पटल पर होने वाली हलचलों से कोई देश अब अछूता भी रह सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो महंगाई का मुíा एकमात्र सपंzग सरकार को चिंता का कही विषय नहीं, अपितु इस प्राय: प्रत्येक देश की सरकार अपने-अपने स्तर पर जूझ रही है। वस्तुत: वैश्वीकरण के लाभ और हानि बाWलीवुड की उस अभिनेत्री की तरह हो चुके हैं जिसके ज्यादा एक्सपोजर से हाय-हाय तो अदाओं पर वाह-वाह करने से लोग नहीं चूकते। <br />गत~ दिनों कैरेबियाई देशों में जो खाधान्न समस्या को लेकर घटनाएं घटित हुई वह इसी प्रभाव का परिणाम मानी जा सकती हैं। इसको लेकर विश्व भर के देश चिंतित होकर अनेक उपाय कर रहे है। आंकड़ों के मुताबिक जहां मुदzास्फीति की दर बढ़ी है वहीं गत~ ढाई दशकों में विश्व का अनाज भंडारण अपने निम्नतर स्तर पर पहुंच चुका है तथा खाद्यान्न की कीमतें रिकाWर्डस्तर को पार कर रही हंै। इसको देखते हुए विश्व के कई देशों में अनाज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जा रहे है। तो कहीं आयात पर से प्रतिबंध हटाएं जा रहें हैं। वस्तुत सारी स्थिति ही इस ओर इशारा कर रही हैं कि महंगाई का बढ़ना एक मात्र सरकार की असफल नीतियांे का परिणाम नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह भी नही लगाया जा सकता कि खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों को कम करने में सरकार द्वारा किसी पहल की जरूरत नहीं है। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी खाद्यान्न की कमी और उनकी कीमतों में वृद्धि को सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखते है। चूंकि खाद्यान्न की कीमतों पर अंकुश नहीं लगता, तो इसका सीधा प्रभाव आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। लेकिन देश में ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई इसे समझना भी आवश्यक है। महंगाई बढ़ने के दो प्रमुख कारणों सब प्राइम संकट और बढ़ती तेल की कीमतों को निकाल दें तो इसके इत्तर भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारण है जो देश में खाद्यान्न कीमतों की बढ़ोत्तरी के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है और इसका सबसे प्रमुख कारण कृषि क्षेत्र की उपेक्षा है।<br />कृषि क्षेत्र के प्रति बरती जाने वाली इसी उपेक्षा के परिणाम स्वरूप कृषक वर्ग अपने परंपरागत~ खेती-बाड़ी के व्यवसाय को छोड़कर अन्य उद्यमों के प्रति आकृष्ट हुआ। चूंकि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलाधार कृषि ही है, परंतु उसके प्रति बरती गई सरकारी उपेक्षा किसानों का इस दिशा से मोहभंग करने में काफी रही। समय पर सरकारी ऋण न मिलने से परेशान किसान जहां गैर परंपरा गत~ उद्यमों की ओर कूच करने लगे वहीं ऋण के बोझ तले दबे किसान एक के बाद एक आत्महत्या करने को बाधित हुई। पिछले कुछ वर्षों का दौर कौन भुला सकता है जब किसानों की आत्महत्या से संबंधित खबरों में समाचार पत्र और टी.वी. चैनल अटे पड़े थे। सहायता के नाम पर नाम मात्र सरकारी धनराशि से किसानों का कितना भला हुआ, यह सहज ही समझा जा सकता है। समय से पूर्व संभावित खाद्यान्न समस्याओं का आंकलन करने में सभी पुरोधा भयंकर चूक कर बैठे। अन्यथा यह कैसे संभव है कि सेंसेक्स की उड़ान पर विकास दर की भविष्यवाणी करने वाले बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप घटती फसल उत्पादकता पर मंथन नहीं कर सके। हां, इस संदर्भ में यह रियायत भले ही ली जा सकती है कि संपूर्ण विश्व में तमाम अर्थशास्त्री और कृषि वैज्ञानिकों के आंकड़ों से इत्तर यह स्थिति उत्पन्न हुई है।और इसका सबसे प्रमुख कारण कृषि क्षेत्र की उपेक्षा है।<br />कृषि क्षेत्र के प्रति बरती जाने वाली इसी उपेक्षा के परिणाम स्वरूप कृषक वर्ग अपने परंपरागत~ खेती-बाड़ी के व्यवसाय को छोड़कर अन्य उद्यमों के प्रति आकृष्ट हुआ। चूंकि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलाधार कृषि ही है, परंतु उसके प्रति बरती गई सरकारी उपेक्षा किसानों का इस दिशा से मोहभंग करने में काफी रही। समय पर सरकारी ऋण न मिलने से परेशान किसान जहां गैर परंपरा गत~ उद्यमों की ओर कूच करने लगे वहीं ऋण के बोझ तले दबे किसान एक के बाद एक आत्महत्या करने को बाधित हुई। पिछले कुछ वर्षों का दौर कौन भुला सकता है जब किसानों की आत्महत्या से संबंधित खबरों में समाचार पत्र और टी.वी. चैनल अटे पड़े थे। सहायता के नाम पर नाम मात्र सरकारी धनराशि से किसानों का कितना भला हुआ, यह सहज ही समझा जा सकता है। समय से पूर्व संभावित खाद्यान्न समस्याओं का आंकलन करने में सभी पुरोधा भयंकर चूक कर बैठे। अन्यथा यह कैसे संभव है कि सेंसेक्स की उड़ान पर विकास दर की भविष्यवाणी करने वाले बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप घटती फसल उत्पादकता पर मंथन नहीं कर सके। हां, इस संदर्भ में यह रियायत भले ही ली जा सकती है कि संपूर्ण विश्व में तमाम अर्थशास्त्री और कृषि वैज्ञानिकों के आंकड़ों से इत्तर यह स्थिति उत्पन्न हुई है। जानकारों का मानना है कि देश में हरित क्रांति के उपरांत एक प्रकार से कृषि क्षेत्र की उपेक्षा प्रारंभ करनी शुरू हो गई है। देश में लगातार औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिलता रहा, जबकि कृषि क्षेत्र अपेक्षाकृत सुविधाओं से जुझने के साथ-साथ अपने विस्तार के लिए तरसते रहें। जिसका परिणाम यह हुआ कि जनसंख्या के अनुरूप औसतन वार्षिक पैदावार में जो वृद्धि होनी चाहिए थी वह नहीं हो सकी।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-55929476863494154352008-05-23T13:57:00.000+05:302008-05-23T14:11:18.491+05:30<a href="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SDaDAWudypI/AAAAAAAAACI/5-kuw2Hr6dw/s1600-h/delhi1.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp2.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SDaDAWudypI/AAAAAAAAACI/5-kuw2Hr6dw/s320/delhi1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5203490461596895890" /></a><br />क्या बदल रही है दिल्ली!<br /><em><blockquote>दिल्ली अभी दूर है, कभी यह मुहावरा किसी काम की दुरुहता के लिए उपयोग में आता था। पर अब यह मुहावरा समय की गर्त में खो चुका है। मुगलकाल में शानोशौकत के प्रर्याय के रूप में जाने वाली दिल्ली एक बार फिर बदलाव के दौर से गुजर रही है। दिल्ली को वल्र्डक्लास सिटी में बदलने की तैयारी जोरशोर से हो रही है। लेकिन क्या सीमेंट-रोड़ी के नित नये खड़े होते जंगल दिल्ली को बदल पाएंगे, यह एक अहम प्रश्न है जिसका जवाब समय ही देगा। लेकिन बदलती दिल्ली की तस्वीर के दो पक्ष हैं, जो साथसाथ उभरते हैं।</blockquote></em><br /><br />समय बदल रहा है, साथ ही दिल्ली के विकास की योजनाएं भी बदल रहीं हैं। मूलभूत सुविधओं की फेहरिस्त में अनेक चीजें तेजी से अपना स्थान सुनिश्चित करती जा रही हैं। जनता को अत्याध्ुनिक सुविधएं उपलब्ध कराने के लिए प्रशासन द्वारा ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा है। दिल्ली को विश्वस्तरीय मानकों से सुसज्जित करने के प्रयास प्रशासन द्वारा किए जा रहे हंै। बदलो, बदलो और बदलो की गूंज ही अब हर ओर सुनाई देती है। वर्तमान की कड़वी वास्तविकाओं में भी भविष्य के सुखद स्वरूप को तलाशा जा रहा है। बदलाव की इस बयार में आने वाले वर्षों में देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति कैसी होगी, इस पर चर्चा और योजनाओं को लेकर सरकार बेहद गंभीर है। काWमनवेल्थ खेलों की तैयारियां कर रही सरकार दिल्ली के भविष्य को लेकर बेहद आशावान हैं। बात चाहे बिजली-पानी की हो या फिर ट्रैफिक की। आने वाले वर्षों में दिल्ली सरकार के लिए सब कुछ ‘स्मूथ’ होने जा रहा है।<br /><br /><br />लेकिन इसके इतर, दिल्ली की आम जनता कुछ और भी कहती है। विकास के दावे जितने भी कर लिए जाएं, परंतु दिल्ली का वातावरण दिनोदिन खराब ही हो रहा है। सीएनजी वाहनों की बढ़ती संख्या भी वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को कम करने में असफल हो रही है। मैट्रो ने दिल्ली को जाम से आजादी दी, लेकिन पहाड़ी पर बसी दिल्ली भीतर से खोखली भी हो रही है। फलाईओवरों, सड़कों को चौड़ा करने का परिणाम दिल्ली की आबोहवा पर भी पड़ रहा है। इनके निर्माण पर करोड़ों रुपये प्रशासन ने खर्च किए, साथ ही करोड़ों रुपये की वनस्पति संपदा को भी नुकसान पहुंचाया गया। सैकड़ों-हजारों पेड़ों को काट डाला गया। भले ही अद्यतन तकनीकी द्वारा पेड़ों को जड़ों सहित एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगाने या फिर शासकीय दस्तावेजों में बढ़ती हरियाली को दर्शा दिया जाए, परंतु लोक सच इसके विपरीत है। दिल्ली से दिनोदिन हरे-भरे स्थान गायब होते जा रहे हैं। शहर के पेड़ खोखले हो जरा सी तेज आंधी-बारिश में भरभरा कर गिर रहे हैं। राजधानी की सड़कें वाहनों से इस कदर भरी पड़ी है कि आने वाले समय में दिल्ली को देश के सबसे बड़े पार्किंग स्थल के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पड़ जाएगी। आने वाले कल में संभवत: गाड़ियों की रफतार 30-35 किलोमीटर प्रति घंटे से सिमट 8-10 किलोमीटर प्रति घंटे पर सिमट आए। यातायात के दिनोंदिन बढ़ते दबाव में, दिल्ली भागती कम हांफती ही अध्कि नजर आएगी। अरावली पर्वत माला पर बसी दिल्ली को भूकंप के खतरे वाली जोन में भी वरीयता प्राप्त है। अत्यधिक नवनिर्माणों के कारण दिल्ली भूकंपीय त्राासदी से मुक्त रह सकेगी? शब्दों की बाजीगिरी में न उलझा जाए तो स्पष्ट है कि पेयजल के लिए दिल्ली की निर्भरता पड़ोसी राज्यों पर कितनी है। गर्मियों में जल और विद्युत समस्या तो आम है लेकिन अब तो सर्दियों में भी यह संकट बरकरार रहता है। यमुना को साफ करने के लिए अब तक करोड़ों रुपये साफ हो चुके हैं, परंतु स्थिति जस की तस है। यमुना नदी को साफ करने के लिए विदेशों से बुलाए गए विशेषज्ञ भी हाथ जोड़कर भाग रहे हैं, ऐसे में सरकार किस प्रकार स्वच्छ दिल्ली हरित दिल्ली का नारा बोल सकती है। कारपोरेट कैपिटल में परिवर्तित होती दिल्ली की आबादी दो करोड़ का आंकड़ा छूने की तरफ बढ़ चुकी है ऐसे में बिना किसी सटीक योजना के बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा किस प्रकार किया जा सकेगा। इसे देख ऐसा नहीं लगता कि दिल्ली अभी दूर है!chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-49524227132575703402008-05-22T12:54:00.000+05:302008-05-22T12:59:29.266+05:30शेनवार्न तुसी कमाल हो।<a href="http://bp3.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SDUgx2udyoI/AAAAAAAAACA/UWCYkNUQ5zc/s1600-h/shane.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp3.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SDUgx2udyoI/AAAAAAAAACA/UWCYkNUQ5zc/s320/shane.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5203100985372560002" /></a><br />मुंबई इंडियन और किंग्स इलेवन के बीच कल हुए 20-20 मैच को आपने नहीं देखा तो यकीनन आप एक मजेदार रोमांचकारी मैच देखने से वंचित रह गए। मैच की आखिरी गेंद तक आप यह नहीं कह सकते थे की मैच कौन जीतेगा। मास्टर ब्लास्टर सचिन जब तक पिच पर रहे यह लग रहा था कि मैच मुंबई ही जीतेगी, पर उनके रनआउ ट होते ही मैच का नक्शा बदल गया। मैच के अंतिम ओवर में युवराज की कप्तानी की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने मैच वापिस अपने कब्जे में ले लिया। इस सब के बीच शेनवार्न की भी तारीफ करनी भी बहुत जरूरी है जिन्होंने इस टूर्नामेंट के आरम्भ में सबसे कमजोर माने जाने वाली टीम को बेहतरीन टीम बना दिया। वाकई शेनवार्न तुसी कमाल हो।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-59246903834021966652008-05-20T17:42:00.000+05:302008-05-20T18:01:32.703+05:3020-20 क्रिकेट<a href="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SDLEjYEIUVI/AAAAAAAAAB4/c8BPti2t8fo/s1600-h/ipl20-20.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;" src="http://bp1.blogger.com/_NJA4Gp5jDf8/SDLEjYEIUVI/AAAAAAAAAB4/c8BPti2t8fo/s320/ipl20-20.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5202436631600582994" /></a><br />आईपीएल का खुमार अपने यौवन पर है। धड़ाधड़ चौंके-छक्के पड़ने वाला यह सेगमेंट लोगों का भरपूर मनोरंजन कर रहा है। खेल के इस आयोजन ने क्रिकेट विश्व कप के रोमांच को भी कहीं पीछे छोड़ दिया है। देशी-विदेशी खिलाड़ियों से सजी-धजी टीमें जब अपने जौहर पिच पर दिखाती हैं, तो दर्शकों का उत्साह कई गुणा बढ़ जाता है। दो-एक विवादों को छोड़ दें तो आईपीएल का यह प्रयोग न केवल अत्यधिक सफल रहा, अपितु इसने भविष्य के लिए अनेक नवीन संभावनाओं के भी द्वार खोल दिए हंै। क्रिकेट के देश में इस टूर्नामेंट की सफलता को लेकर भले ही अनेक कयासों का दौर चला हो, परंतु बीसीसीआई का यह नया काWरपोरेट एडिशन रंग ला रहा है। हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि अपने देश में क्रिकेट को लेकर जो दीवानगी है उसे थोड़ी सी मार्किटिंग स्टेट~जी के साथ आसानी से भुनाया जा सकता है। और इस आयोजन से वो दीवानगी और बढ़ी है, इसे झुठलाया नही जा सकता। लेकिन एकमात्र क्रिकेट का उद्धार होने से यह नहीं माना जा सकता कि सभी खेलों की स्थिति में भी सुधार हो रहा है। देश का राष्ट्रीय खेल हाWकी पतन के गर्त से उभरने की कोशिश कर रहा है। फुटबाWल पश्चिम बंगाल आदि राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर सका है। बैडमिंटन, टेबल टेनिस, बाWक्सिंग, कुश्ती, कबड~डी आदि का भविष्य भगवान भरोसे ही लगता है। टेनिस और शतरंज में विजय आनंद, भूपति-पेस तथा सानिया मिर्जा ने अपने प्रदर्शन के बल पर विश्व पटल पर स्थान बनाया है लेकिन इनकी लोकप्रियता भी देश में औनी-पौनी ही है। इन सभी खेलों को क्रिकेट के समकक्ष आंका जाए तो अंतर उन्नीस-बीस का नहीं, बल्कि 10-1 का निकलेगा। क्रिकेट की लोकप्रियता के गzाफ इन सभी खेलों की तुलना में कहीं Åंचा है, इसका मतलब यह नही कि क्रिकेट के प्रति कोई पूर्वागzह रखा जाए। लेकिन देश में सभी खेलों को समान रूप से फलने-फूलने के लिए अवसर अवश्य मिलंे, इसका ध्यान भी रखना परम~ आवश्यक है। सरकारी अनुदान के भरोसे अन्य खेलों का सुधार हो, यह संभव नही लगता। वर्तमान में आपेक्षित तो यही लगता है कि काWरपोरेट घराने तथा सिनेमा की सपोर्ट अन्य खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए अवश्य होनी चाहिए। 20-20 क्रिकेट फाWरमेट की तरह दूसरे खेलों के फाWरमेट में भी बदलाव लाकर उन्हंे प्रोत्साहित करने का व्यापक प्रयास करना चाहिए।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-49232795991516363582008-05-19T13:59:00.002+05:302008-05-19T14:00:36.168+05:30स्वयं भू भगवानस्वयं भू भगवान<br />प्रत्येक चीज की अपनी सीमाएं होती हैं, जिसका पालन किया जाना चाहिए। यही बात प्रकृति के दोहन के संदर्भ में निर्विरोध रूप से लागू होती है। प्रकृति का सामजस्य हमसे नहीं है। अपितु हमारे जीवन का संपूर्ण ताना-बाना उस पर आधारित है। प्राणी जगत की सत्ता, प्रकृति द्वारा प्रदत सौगातों पर ही निर्भर हैं, जिसे हमने अपने कौशल के माध्यम से उपयोग में लाना सीखा है।<br />लेकिन इसके इत्तर, अपने अद्यतन अनुसंधानों पर अत्यधिक विश्वास कर शायद हम इस वैज्ञानिक युग में खुद को स्वयं यू भगवान मानने की आदिम कल्पना को संकल्पना में परिवर्तित करने के मिथक प्रयास रहे हैं। सूक्ष्म अणु में व्याप्त असीम शक्ति को नियंत्रित कर, उसका प्रतिनिधित्व करके यह सोचना की हम सृष्टि के निर्यामक बन गए हैं, किसी फंतासी से कम नहीं है। कृत्रिम गर्भाधन, क्लोनिंग, अंतरिक्ष विज्ञान इत्यादि के क्षेत्र में अप्रतिम प्रगति अवश्य ही हुई, परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं निकाल लिया जाना की हम प्रकृति की सत्ता को चुनौती देने में समर्थ हो गए हैं। इस धरा पर वहीं सब कुछ होगा जो मनुष्य सम्मत होगा सोचना भी गलत है। वस्तुत: हमें ध्यान रखना होगा कि कल्याणमयी प्रकृति ने जो अनुपम सौगात हमें दी हैं, उसका वह अक्षय स्त्रोत ही हम समाप्त न कर दें।<br />वातावरण की दशाओं में आ रहे परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं रह-रहकर इस इसी तथ्य को उभासित कर रही है कि प्राणी जगत की उपस्थिति इस धरती पर रंगमंच पर करतब दिखलाने वाली कठपुतलियों से अधिक नहीं है।<br />म्यांमर में आए भयंकर तूफान के बाद चीन में आए शक्तिशाली भूकंप ने एक बार फिर यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण पाने में मनुष्य न केवल असमर्थ है अपितु उसके सम्मुख विवश भी है। गत~ कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं में हो रही वृद्धि को वैज्ञानिक निरंतर पर्यावरण में किए जाए जा रहे अनुचित हस्तक्षेप तथा ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए कोई भी देश तैयार नहीं दिखता। जो कि दु:खद विषय है। स्वयं भू भगवान बनकर प्रकृति को विना’ा के कागार पर पहुंचा के किसी नए गzह में जीवन की संभावना तला’ा करने से बेहतर है कि हम सब मिलकर पृथ्वी को बचाने का सार्थक प्रयास करें।chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-6001117264516268102008-05-19T13:28:00.000+05:302008-05-19T13:43:14.773+05:30चाय-मटृठीचाय-मटृठी का मेल भी अपने आप में अनोखा है। गर्म-गर्म चाय के साथ करारी-खस्ता नमकीन मटृठी अपने अनुभव के आधार पर प्रिंट मीडिया के पत्रकारों में अच्छी-खासी लोकप्रिय है। जहां तक मेरा मानना है कि स्पष्ट रूप से इसकी दो वजह हो सकती हैं। एक, यह सहज उपलब्ध हो जाती है, दूसरी जेब का बजट भी बना रहता है। विशुद्ध रूप से चाय-मटृठी के कारण स्टिंगर से लेकर उपसंपादकों की जमात तक एक-दूसरे से जुड़ी रहती है। लंबी-चौड़ी व्याख्यान माला जो कभी काफी हाउसों में होती थी, वो अब संक्षिप्त प्रकरण में चाय की ठेली या चाय की दुकानों पर होने लगी है। चाय का आWर्डर देने से चाय पीने की 10-15 की अवधि में देश-विदेश के सभी गंभीर मुíों पर अच्छी खासी चर्चा के साथ-साथ कार्यालयी निंदा रस तथा आर्टिकल के लिए किसका इंटरव्यूह लिया जाए इस समस्या का भी समाधान हो जाता है।<br />लेकिन बढ़ती महंगाई के असर से चाय-मटृठी भी अछूती नहीं रह पाई है। दूध, चाय और पानी की किल्लत के चलते अब चाय के दाम भी बढ़ गए हैं। जिसके कारण अब दो-पांच लोगों के संग चाय पीते समय यह सोचा जाता है कि बिल कौन दे। चूंकि चाय की दुकान में दिनभर में 5-7 बार जाना आम बात है ऐसे में दो-तीन बार भी बिल भरने वाला भी अपनी ढीली होती जेब का ध्यान रखकर एक-दो दिन बिना एकस्ट्रा चाय पीकर काम चला रहा है। खैर सरकार को चाहिए की वो चाय-मटृठी पर भी सब्सिडी देनी शुरू करे। आपका क्या विचार है!chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8998817107431106571.post-59438707455648429842008-03-26T16:26:00.000+05:302008-03-26T16:42:23.515+05:30अंडरवल्र्ड में भर्ती व्यंग्य<p>आजकल अपना अंडरवल्र्ड, कुशल पेशेवरों की कमी से जूझ रहा है, विश्वास तो नहीं होता। परंतु जब एक tवी चैनल में इस भर्ती की खबर सुनी तो, आंखे सजल हो उठी। एक तो गिने-चुने मुट्ठी भर लोगों का जमावड़ा है यह, परंतु जब उसमें भी कमी होने लग जाए तो स्थिति काफी कुछ स्वयं ही व्यक्त कर देती है। बेचारों पर आई इस त्राासदी से मन व्याकुल हो उठा। जब रहा नहीं गया तो मुहल्ले के ही डॉन टाइप टपोरी के पास अपनी दिली भड़ास और सांत्वना देने के लिए पहुंच गया। भैंसो के तबेले में खटिया पर लेटे हुए अप टू डेट `भाई´ को सलाम ठोककर मैं चुपचाप खड़ा हो गया। लेटे-लेटे एक आंख से मुझे घूरते हुए डॉन भाई ने एक बार ही में मुझे पूरा स्केन कर, इशारों में आने का प्रायोजन पूछ डाला। डरते-डरते पूरे सम्मान के साथ `भाई जी´ को प्रणाम कर मैंने उन्हें अपने सारी भावनाओं से एक ही सांस में अवगत करा दिया।मेरी बात को समझकर बड़ी भारी आवाज में बोले, बात तो चिंता की है। परंतु अभी हम लोग इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। यह तो टपोरी लोगों का काम है जो उन्होंने इस बात को लीक कर डाला, नहीं तो पुलटुस प्लान था। पहले तो हम लोगों ने सोचा कि बाहर से आउट सोर्सिंग कर लें, परंतु कुछ सोचकर हम रूक गए। परंतु आप लोगों ने क्या सोचा? मैने डरते हुए पूछा। यही भीडू , एक तो अपने देश में पहले ही काम-धंध्ेा को लेकर बहुत मारा-मारी है। इसलिए अपुन लोगों का नैतिक दायित्व बनता है कि यहीं के छोकरा लोगों को चांस दिया जाए। दूसरा यहां के लोकल लौंडों पर फालतूच खर्च भी नहीं करना पड़ेगा़़। वैसे भी आउट सोर्सिंग पर भरोसा इस फील्ड में ठीक भी नहीं है। लौकल टच वाले लड़के ठीक रहेंगे।लेकिन अंडरवल्र्ड में ऐसी भरती की जरूरत क्यों पड़ गई, मैंने अपनी उत्सुकता को शांत करने के लिए पूछा। इस पर भाई डॉन ने कहा कि जब से मुन्नाभाई ने गांधीगीरी का पाठ पढ़ना शुरू किया, तब से चिंता होनी शुरू हो गई। पिछले दिनों ही अपना एक लड़का, रेडियोवाली के साथ भाग गया। दूसरा वसूली पर जाने पर घोड़ा, तमंचे की जगह गुलाब का फूल लेकर जाने लगा। हालत तो यह हो गए कि सभी अपने आप को मुन्ना और सकिZट मानने लग गए। कुछ देर मौन रहकर भाई फिर बोले- साला इन लुच्चा लोगों को बदलते जमाने के साथ इन गुगोZं को ठरेZ की बोतल की जगह बिलायती `रम´ में रमाया गया कि ताकि उनका कुछ स्टैंडर्ड बन सके और दो-चार पैग के बाद गेट-वे-इंडिया को झूमता न देखने लग जाए। तमंचों की जगह माउजर, पिस्टल दी गई ताकि जब वो किसी पर तानी जाए तो देखने वाले पर स्पैशल इफैक्ट पड़े। आम गुगोZं की जगह फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़ते गुर्गों को बढ़ावा दिया जिससे सामने वाली पार्टी के सामने भाई का इंप्रेशन डाउन न हो। साला उनका एक मस्त स्टाइल मेंनटेन करने वास्ते गोरों लोगों को भी इधर लाया। अक्खा लग्जरी लाइफ को प्रोमोट किया भाई ने, लेकिन यह ढक्कन लोग एक फिल्म पन सेंटी होगेला कभी सपने मेें भी नहीं सोचेला था। बापू ने तो अपने धंधे की वाट ही लगा डाली। भाई ने इन लोगों को अपने बच्चे माफिक प्यार कियेला, पर यह हलकट लोग जब ससुराल में भी होता था तो वहां भी भाई इन लोगों को किसी बात की परेशानी नहीं होने दी। लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी मुन्नाभाई पैटर्न पर यदि वसूली करने गए तो काम कैसे चलेगा? इस फिल्म ने गुगोZं का इतना मॉरल डाऊन कर दिया कि सभी गुगेZ खुद को समाजसेवी समझ फिल्म को आइडिल उसे ही फोलो करने लग गएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्इससे पहले ही वह अपनी बात पूरी करते कि उनके फोन की घंटी घिघयाने लगी। मोबाइल पर बात कर भाई डॉन में अपने चमचों को गाड़ी निकालने का फरमान जारी करते हुए कहा कि भाई ने नए लौंडों का इंटरव्यूह लेने के वास्ते बुलाया है। इससे पहले में कुछ कहता लोकल भाई की गाड़ी आंखों से ओझल हो गई।</p>chopalhttp://www.blogger.com/profile/12019204638083852870noreply@blogger.com0