Saturday, August 2, 2008
मेट्रो की स्थिति
राजधानी दिल्ली में ‘मेट्रो’ नाम एक अनूठी संकल्पना को सहेजे हुए है। यह संकल्पना मेट्रो के सुव्यवस्थित परिचालन, चाक-चौबंद सुरक्षा एवं व्यवस्था आदि से निर्मित है। यह कहना औचित्यपूर्ण नहीं है कि राजधानी में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के बाद आम आदमी से जुड़ी यदि कोई सेवा दिल्लीवासियों को सहजता का आभास कराती है तो वह दिल्ली मेट्रो ही है। साफ-सुथरे हाईटेक प्लेटफार्म, सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था, निर्बाध गति से मेट्रो का परिचालन, कुल मिलाकर विश्वस्तरीय सरीखी सुविधाएं जो सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट में उपलब्ध नहीं हो सकती, वो मेट्रो द्वारा गत~ कई वर्षों से प्रदान की जा रही है।
राजधानी में मेट्रो का निर्माण जिस समय प्रारंभ हुआ था, उस समय प्राय: आम जन की राय यही थी कि यह वृहद परियोजना मात्र दिवास्वप्न ही साबित होगी और यदि यह परियोजना ठंडे बस्ते में नहीं गई तो इसके पूर्ण होने में कुछ वर्ष नहीं, बल्कि कई दशक सहज ही लग जाएंगे। सरकारी परियोजनाओं के संदर्भ में यह बात झूठी भी नहीं मानी जा सकती। हालांकि मेट्रो इसमें अपवाद ही रही। भूमिगत मेट्रो मार्ग हो या Åंचे-Åंचे पिलरों पर मेट्रो ट्रेक बिछाने का कार्य, डीएमआरसी ने हर जगह सफलता का इतिहास रचा। लेकिन अब यहीं मेट्रो विवादों के घेरे में घिरती जा रही है। मेट्रो निर्माण स्थल में होने वाले हादसों के कारण मेट्रो की कार्यप्रणाली के समक्ष प्रश्नचिह~न लगने प्रारंभ हो गए हैं। कभी मेट्रो मार्ग के निर्माण स्थल पर लोहे का गार्डर गाड़ी के Åपर गिर जाता है, तो कभी लोहे की छड़ व्यक्ति के आर-पार हो जाती है। मेट्रो निर्माण स्थल पर इस प्रकार की असावधानी मेट्रो की बिगड़ती प्रबंधकीय व्यवस्था की ओर साफ इशारा करती हैं। केंदzीय सचिवालय से दिल्ली विश्वविद्यालय मार्ग तक मेट्रो के परिचालन में मिलने वाली ढेर सारी शिकायतों से आहत दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्वयं मेट्रो में सवार होकर इसका निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बात को महसूस किया कि मेट्रो व्यवस्था में गिरावट आनी शुरू हो चुकी है। कमाई के मामले में मेट्रो आए दिन ही रिकाWर्ड बना रही है। परंतु जिन सुविधाओं के परिणामस्वरूप दिल्ली की जनता ने मेट्रो को सर-माथे पर बिठाया था, अब वहीं धीरे-धीरे नदारद होती जा रही है। देखा जाए तो डीएमआरसी का लगभग सारा ध्यान मेट्रो के माध्यम से मोटी कमाई करने का बन चुका है। डीएमआरसी जितना आतुर कमाई करने के लिए हो रखा है, उतना ही वह कम ध्यान यात्रियों की सुविधाओं पर दे रहा है। यदि स्थिति यही रही तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली मेट्रो की स्थिति भी डीटीसी की तरह हो जाएगी।
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