Wednesday, December 24, 2008

जूता महात्मय

अभी तक तो हम इस गलफत में थे कि मात्र अपने ही देश में जूते को तव्ज्जों दी जाती है, परंतु अब जाकर पता चला कि संपूर्ण विश्व ही जूतामय है। संपूर्ण विश्व जूते में है और जूता विश्व में। जूता वास्तविकता में ग्लोबल है।
जूतों की सर्वव्यापक महत्ता को जानकर अब मजनूओं, कविया ेंऔर नेताओं के प्रति आगाध श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाता है, जो अक्सर जूतों का रसास्वादन करते रहते हैं। पहले जिन्हें तुच्छ समझता था, अब उनकी अहमियत का पता चलता है।
आदिकाल से लेकर आधुनिककाल तक के साहित्य पर नजर दौड़ाने पर एक भी ऐसा उच्चकोटि का साहित्यकार नहीं मिलता, जिसने जूते के महत्व को जानकर उसके गुणों का बखान किया हो।
प्रेमिकाओं के नख-शिख सौंदर्य का ही वर्णन करके चुक जाने वाले साहित्यकार कभी-भी जूते में निहित सौंदर्य और उसके बहु आयामी उपयोग को समझ ही नहीं पाए। वो तो जूते को पांव की जूती ही समझते रह गए।
भला हो बुश साहब का जो अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम दिनों में जूते को महत्व दिलवा गए वर्ना अमेरिकी हवाई अड~डों पर अपने कपड़े-जूते सब कुछ उतार देने वाले लोग तो इस अहमियत से अछूते ही रहे।
यह बुश साहब की ही करामात है जिनके चाहने या न चाहने पर भी आर्थिक मंदी के महादौर में संपूर्ण विश्व को पता चल गया कि एक जूता आदमी को करोड़पति भी बना सकता है। अब तो यह लगने लगा है कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज आग या पहिया को न मानकर जूते को ही माननी चाहिए। जूते जब चाहें पहनों और जब चाहों चलाओ। देखा जाए तो जूता जहां पैरों के लिए ढाल है, तो वहीं यह मिसाइल बनकर दूर तक वार करने में भी सक्षम हैं। हां, इतना अवश्य है कि जूते की मारक क्षमता और तय दूरी फैंकने वाले की हिम्मत और शारीरिक ताकत पर ही निर्भर है। चूंकि अब तक जूतों को त्याज्य मानकर उन पर कोई सटीक अनुसंधान नहीं हुआ इसलिए उन पर कोई ऐसी दिशानिर्देशक चिप लगाने की व्यवस्था नहीं हो सकी जिससे वो ठीक निशाने पर लगे। उम्मीद की जा सकती है कि शीघz ही इस पर भी गहन अनुसंधान होगा और बाजारों में ऐसे जूते मिलने लगेंगे।
वर्तमान की घटनाओं को देखते हुए बोर्ड की परीक्षाओं में जुटे बच्चों को भी जूते की उपयोगिता के संदर्भ में अपनी जानकारी को परिपक्व करना चाहिए, ताकि परीक्षा में इस प्रकार कोई निबंध लिखने को मिलता है तो उन्हें परेशानी न हो।

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