Tuesday, May 20, 2008

20-20 क्रिकेट


आईपीएल का खुमार अपने यौवन पर है। धड़ाधड़ चौंके-छक्के पड़ने वाला यह सेगमेंट लोगों का भरपूर मनोरंजन कर रहा है। खेल के इस आयोजन ने क्रिकेट विश्व कप के रोमांच को भी कहीं पीछे छोड़ दिया है। देशी-विदेशी खिलाड़ियों से सजी-धजी टीमें जब अपने जौहर पिच पर दिखाती हैं, तो दर्शकों का उत्साह कई गुणा बढ़ जाता है। दो-एक विवादों को छोड़ दें तो आईपीएल का यह प्रयोग न केवल अत्यधिक सफल रहा, अपितु इसने भविष्य के लिए अनेक नवीन संभावनाओं के भी द्वार खोल दिए हंै। क्रिकेट के देश में इस टूर्नामेंट की सफलता को लेकर भले ही अनेक कयासों का दौर चला हो, परंतु बीसीसीआई का यह नया काWरपोरेट एडिशन रंग ला रहा है। हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि अपने देश में क्रिकेट को लेकर जो दीवानगी है उसे थोड़ी सी मार्किटिंग स्टेट~जी के साथ आसानी से भुनाया जा सकता है। और इस आयोजन से वो दीवानगी और बढ़ी है, इसे झुठलाया नही जा सकता। लेकिन एकमात्र क्रिकेट का उद्धार होने से यह नहीं माना जा सकता कि सभी खेलों की स्थिति में भी सुधार हो रहा है। देश का राष्ट्रीय खेल हाWकी पतन के गर्त से उभरने की कोशिश कर रहा है। फुटबाWल पश्चिम बंगाल आदि राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर सका है। बैडमिंटन, टेबल टेनिस, बाWक्सिंग, कुश्ती, कबड~डी आदि का भविष्य भगवान भरोसे ही लगता है। टेनिस और शतरंज में विजय आनंद, भूपति-पेस तथा सानिया मिर्जा ने अपने प्रदर्शन के बल पर विश्व पटल पर स्थान बनाया है लेकिन इनकी लोकप्रियता भी देश में औनी-पौनी ही है। इन सभी खेलों को क्रिकेट के समकक्ष आंका जाए तो अंतर उन्नीस-बीस का नहीं, बल्कि 10-1 का निकलेगा। क्रिकेट की लोकप्रियता के गzाफ इन सभी खेलों की तुलना में कहीं Åंचा है, इसका मतलब यह नही कि क्रिकेट के प्रति कोई पूर्वागzह रखा जाए। लेकिन देश में सभी खेलों को समान रूप से फलने-फूलने के लिए अवसर अवश्य मिलंे, इसका ध्यान भी रखना परम~ आवश्यक है। सरकारी अनुदान के भरोसे अन्य खेलों का सुधार हो, यह संभव नही लगता। वर्तमान में आपेक्षित तो यही लगता है कि काWरपोरेट घराने तथा सिनेमा की सपोर्ट अन्य खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए अवश्य होनी चाहिए। 20-20 क्रिकेट फाWरमेट की तरह दूसरे खेलों के फाWरमेट में भी बदलाव लाकर उन्हंे प्रोत्साहित करने का व्यापक प्रयास करना चाहिए।

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