Wednesday, March 26, 2008

अंडरवल्र्ड में भर्ती व्यंग्य

आजकल अपना अंडरवल्र्ड, कुशल पेशेवरों की कमी से जूझ रहा है, विश्वास तो नहीं होता। परंतु जब एक tवी चैनल में इस भर्ती की खबर सुनी तो, आंखे सजल हो उठी। एक तो गिने-चुने मुट्ठी भर लोगों का जमावड़ा है यह, परंतु जब उसमें भी कमी होने लग जाए तो स्थिति काफी कुछ स्वयं ही व्यक्त कर देती है। बेचारों पर आई इस त्राासदी से मन व्याकुल हो उठा। जब रहा नहीं गया तो मुहल्ले के ही डॉन टाइप टपोरी के पास अपनी दिली भड़ास और सांत्वना देने के लिए पहुंच गया। भैंसो के तबेले में खटिया पर लेटे हुए अप टू डेट `भाई´ को सलाम ठोककर मैं चुपचाप खड़ा हो गया। लेटे-लेटे एक आंख से मुझे घूरते हुए डॉन भाई ने एक बार ही में मुझे पूरा स्केन कर, इशारों में आने का प्रायोजन पूछ डाला। डरते-डरते पूरे सम्मान के साथ `भाई जी´ को प्रणाम कर मैंने उन्हें अपने सारी भावनाओं से एक ही सांस में अवगत करा दिया।मेरी बात को समझकर बड़ी भारी आवाज में बोले, बात तो चिंता की है। परंतु अभी हम लोग इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। यह तो टपोरी लोगों का काम है जो उन्होंने इस बात को लीक कर डाला, नहीं तो पुलटुस प्लान था। पहले तो हम लोगों ने सोचा कि बाहर से आउट सोर्सिंग कर लें, परंतु कुछ सोचकर हम रूक गए। परंतु आप लोगों ने क्या सोचा? मैने डरते हुए पूछा। यही भीडू , एक तो अपने देश में पहले ही काम-धंध्ेा को लेकर बहुत मारा-मारी है। इसलिए अपुन लोगों का नैतिक दायित्व बनता है कि यहीं के छोकरा लोगों को चांस दिया जाए। दूसरा यहां के लोकल लौंडों पर फालतूच खर्च भी नहीं करना पड़ेगा़़। वैसे भी आउट सोर्सिंग पर भरोसा इस फील्ड में ठीक भी नहीं है। लौकल टच वाले लड़के ठीक रहेंगे।लेकिन अंडरवल्र्ड में ऐसी भरती की जरूरत क्यों पड़ गई, मैंने अपनी उत्सुकता को शांत करने के लिए पूछा। इस पर भाई डॉन ने कहा कि जब से मुन्नाभाई ने गांधीगीरी का पाठ पढ़ना शुरू किया, तब से चिंता होनी शुरू हो गई। पिछले दिनों ही अपना एक लड़का, रेडियोवाली के साथ भाग गया। दूसरा वसूली पर जाने पर घोड़ा, तमंचे की जगह गुलाब का फूल लेकर जाने लगा। हालत तो यह हो गए कि सभी अपने आप को मुन्ना और सकिZट मानने लग गए। कुछ देर मौन रहकर भाई फिर बोले- साला इन लुच्चा लोगों को बदलते जमाने के साथ इन गुगोZं को ठरेZ की बोतल की जगह बिलायती `रम´ में रमाया गया कि ताकि उनका कुछ स्टैंडर्ड बन सके और दो-चार पैग के बाद गेट-वे-इंडिया को झूमता न देखने लग जाए। तमंचों की जगह माउजर, पिस्टल दी गई ताकि जब वो किसी पर तानी जाए तो देखने वाले पर स्पैशल इफैक्ट पड़े। आम गुगोZं की जगह फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़ते गुर्गों को बढ़ावा दिया जिससे सामने वाली पार्टी के सामने भाई का इंप्रेशन डाउन न हो। साला उनका एक मस्त स्टाइल मेंनटेन करने वास्ते गोरों लोगों को भी इधर लाया। अक्खा लग्जरी लाइफ को प्रोमोट किया भाई ने, लेकिन यह ढक्कन लोग एक फिल्म पन सेंटी होगेला कभी सपने मेें भी नहीं सोचेला था। बापू ने तो अपने धंधे की वाट ही लगा डाली। भाई ने इन लोगों को अपने बच्चे माफिक प्यार कियेला, पर यह हलकट लोग जब ससुराल में भी होता था तो वहां भी भाई इन लोगों को किसी बात की परेशानी नहीं होने दी। लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी मुन्नाभाई पैटर्न पर यदि वसूली करने गए तो काम कैसे चलेगा? इस फिल्म ने गुगोZं का इतना मॉरल डाऊन कर दिया कि सभी गुगेZ खुद को समाजसेवी समझ फिल्म को आइडिल उसे ही फोलो करने लग गएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्इससे पहले ही वह अपनी बात पूरी करते कि उनके फोन की घंटी घिघयाने लगी। मोबाइल पर बात कर भाई डॉन में अपने चमचों को गाड़ी निकालने का फरमान जारी करते हुए कहा कि भाई ने नए लौंडों का इंटरव्यूह लेने के वास्ते बुलाया है। इससे पहले में कुछ कहता लोकल भाई की गाड़ी आंखों से ओझल हो गई।

No comments: