Friday, January 30, 2009
वसंत पंचमी
‘वसंत’ सुनते ही मन हिलोरे मारने लगता है, क्योंकि वसंत यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों से निर्मित शब्दमात्र नहीं है। वसंत अपने भीतर एक संपूर्ण संकल्पना संजोये हुए है जो विराट जीवन दर्शन का मूल है। वसंत मन को रोमांचित कर नवीन आशाओं के किसलय खिलाता है। इसलिए वसंत का महत्व सभी के लिए है। प्रकृति के लिए वसंत की क्या महत्ता है, यह उन वृक्षों-लताओं को देखकर लगाया जा सकता हैं जो शीत ऋतु में मृतप्राय: पड़े थे। वसंत के आगमन से उनमें नवीन कोपले आनी प्रारंभ हो गई । यानि उनमें नव जीवन का पुन: संचार होने के लक्षण उत्पन्न हो गए। यही तो वो कारण है कि वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती है। वसंत के आते ही सारा वातावरण मदमस्त हो जाता है। जड़ कर देनी वाली शीत ऋतु के बाद आने वाला यह मौसम बताता है कि यदि जीवन में यदि उत्साह न हो तो वो जिंदगी कैसी? जब मन में उत्साह होता है तो तभी हम कर्मठ होते हैं। देशकाल की यशोगाथा लिखने के लिए प्रवृत होते हैं। संभवत: यही कारण है कि ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वंदना भी इसी माह में होती है क्योंकि ज्ञान के अभाव में उत्साह के निरंकुश होने का भय रहता है। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी ने उत्साह से भरकर सूर्य देव को निगलने का प्रयास किया था।
ज्ञान उत्साह के मार्ग को नियंत्रित करता है। सात्विक ज्ञान और उत्साह का समायोजन ही तो कीर्ति का निर्माण करता है, वो कीर्ति जो युगों को प्रभावित करती है, प्रेरणास्त्रोत बनती है। तो आइये हम सब मिलकर इस उत्साह और ज्ञान के पर्व को मनाएं।
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11 comments:
ब्लोगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है...यहाँ पत्रकारिता से हटकर हम अपने दिल की बात करतें है..पत्रकार यूँ भी बदल तो कुछ पाता नहीं है ख़ुद को भी खो देता है....इसी से बचने के लिए ब्लॉग एक अच्छा विकल्प है...लगे रहिये
ब्लोगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है...यहाँ पत्रकारिता से हटकर हम अपने दिल की बात करतें है..पत्रकार यूँ भी बदल तो कुछ पाता नहीं है ख़ुद को भी खो देता है....इसी से बचने के लिए ब्लॉग एक अच्छा विकल्प है...लगे रहिये
ब्लोगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है...यहाँ पत्रकारिता से हटकर हम अपने दिल की बात करतें है..पत्रकार यूँ भी बदल तो कुछ पाता नहीं है ख़ुद को भी खो देता है....इसी से बचने के लिए ब्लॉग एक अच्छा विकल्प है...लगे रहिये
वसंत पंचमी याद दिलाने का आभार । हमारे स्कूल में वसंत के गीत और कविताएँ गाई जाती थीं , तथा सरस्वती पूजा भी होती थी ।
एक कविता की कुछ पंक्तियाँ मुझे अब भी याद है ।
वसंत की वयार से ये दिग् दिगन्त छा गया
दुखों का अन्त आ गया कि लो वसंत आ गया, कि लो वसंत आ गया ।
.अच्छी बात की है.
बसंत पंचमी पर हार्दिक बधाई, बहुत सुन्दर लेख है!
वासंती शुभकामनाएं स्वीकारें...........
ज़रूर पढ़ें:
हिन्द-युग्म: आनन्द बक्षी पर विशेष लेख
देर से ही सही, बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
bilkul sahi likha hai, ma sraswati hum sab ko apni chhatrachhaya me rakhe...
Basant panchami ki hardik shubhkamnayen, ma saraswati ka ashiriwaad hum sab par bana rahe
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