Saturday, January 24, 2009
एक जर्रे की कहानी
पिछले दिनों एक कहानी पढ़ी। कहानी एक जर्रे की। जर्रा जो एक मानव के पांव के नीचे आकर एक दार्शनिक की भांति जीवन दर्शन से अवगत कराता है। शायद यह कहानी आपको को भी अच्छी लगे।
कहानी का प्रारंभ कुछ यूं है कि एक दुखी रोता हुआ व्यक्ति अपनी धुन में चला जा रहा था कि अचानक उसका पैर एक जर्रे यानि धूल के एक कण पर पड़ा। पददलित होने की पीड़ा से वह कराह उठा और बोला-हे मानव मुझे और अधिक तिरस्कृत न कर। मत भूल, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आकाश में चमकते हुए सितारे टूटते हैं, पृथ्वी पर गिरते हैं और गिरने पर धुल ध्ूासरित हो जाते हैं। राजा रंक बन जाते हैं। देखते ही देखते महलों में रहने वाले झोपड़ियों में आ जाते हैं।सदा याद रख परिवर्तन प्रकृति का नियम है, कभी भी, कुछ भी हो सकता है। इसलिए निरन्तर प्रभु का धन्यवाद किया कर कि गुजरा हुआ पल आनन्दमय व्यतीत हुआ। पल पल जीवन का अवलोकन किया कर और हर पल के पश्चात ईश्वर का धन्यवाद किया कर। कुछ समय के लिए विराम लेने के पश्चात~ वह ज+र्रा फिर बोलने लगा। मैं भी एक दिन विश्व की उच्चतम चोटी का अंश था। बडे+-बडे+ प्रसिद्ध पर्वतारोही मेरी ओर लालसा भरी दृष्टि से देखा करते थे कि वह दिन कब आयेगा जब हम इस पर विजय पताका फैहरा पाएंगे, परन्तु मैं तो अजय था इसलिए निरन्तर गर्व में सिर उठाये रखता, कड़कती धूप और बर्फीली हवाओं को सहन करते हुए भी।परंतु समय के थपेड़ों ने प्रकृति के अन्य भागों की तरह मुझे भी प्रभावित किया। जब कड़कती धूप और कड़ाके की सर्दी को और अधिक सहन करने की शक्ति नहीं रही तो एक दिन उस चट~टान से अलग होकर गिर पड़ा। बस फिर क्या था, गिरा तो ऐसे गिरा कि पुन: उठ नही पाया। गिरने के उपरान्त मुझे याद आने लगा बीता हुआ समय। खैर! अब मुझे याद आने लगा अपना बीता हुआ मान-सम्मान। जब मैं चट~टान के साथ, अपने मूल के साथ जुड़ा हुआ था तो मेरा मान-सम्मान था। लोग मुझे ईष्र्या की दृष्टि से देखते थे। पर्वतारोही मुझ पर विजय प्राप्त करना चाहते थे और आस्तिक मेरे चरणों की पूजा किया करते थे। अब मुझे जुड़े रहने के महत्व का अहसास होने लगा। जुड़े रहने में कितना लाभ है, कितना मान-सम्मान है। एक छोटा सा पेच जब हवाई जहाज के साथ जुड़ा होता है तो उसकी निरन्तर सफाई की जाती है, वह खुले आकाश में घूमता है, उसका अपना महत्व होता है,उसकी उपयोगिता होती है। परन्तु जब वह पेच अलग हो जाता है तो वह हर पथिक की ठोकरें खाता है। एक कबाड़ी उसका मूल्य दो पैसे भी नहीं लगाता। पानी की एक बूंद जब तक सागर के साथ जुड़ी रहती है, वह सागर कहलाती है, परन्तु जब सागर से अलग होती है तब किसी एक व्यक्ति की प्यास बुझाने में भी असमर्थ रहती है।यही मेरे साथ भी हुआ। मैं तो जर्रा था इसलिए चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। लेकिन तुम तो मानव हो। इस सृष्टि के निमायक हो, तुम क्यों व्यथित हो। मानव की यह प्रवृति है कि बीते हुए समय को याद कर व्यथित होता है और भविष्य को संवारने की चिन्ता में रहता है। वर्तमान जिसे वह सुन्दर भी बना सकता है और उससे आनन्द भी प्राप्त कर सकता है उसकी अवेहलना करता है। भूल जाता है कि जिसका वर्तमान सुन्दर है उसका भविष्य तो सुन्दर होगा ही। जब तू यह समझ जाएगा और अपने अहम को त्याग कर परोपकार के कार्य करेगा तब तेरा जीवन भी आनन्दमय होगा, लोक सुखी रहेगा और परलोक भी सुभवना हो जायेगा। यह कहकर जर्रा चुप हो गया। मनुष्य को लगा कि उसके सभी दुखों का अंत हो गया और वह उस जर्रे को साथ ले अपना अहम त्याग अपने कर्म पथ पर अगसर हो गया।
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10 comments:
ज़र्रे को माध्यम बनाकर जो जीवन
दर्शन दिया है,वाह बहुत बढिया है...........
बहुत अच्छा लिखा है
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
बेहतरीन..बहुत बढ़िया है.
पानी की एक बूंद जब तक सागर के साथ जुड़ी रहती है, वह सागर कहलाती है, परन्तु जब सागर से अलग होती है तब किसी एक व्यक्ति की प्यास बुझाने में भी असमर्थ रहती है।यही मेरे साथ भी हुआ। मैं तो जर्रा था इसलिए चाहकर भी कुछ नहीं कर सका.
बहुत ही गहरी बातें लिख दी आप ने एक ज़र्रे के माध्यम से...बहुत ही अच्छा लेख.
मनुष्य को लगा कि उसके सभी दुखों का अंत हो गया और वह उस जर्रे को साथ ले अपना अहम त्याग अपने कर्म पथ पर अगसर हो गया
kaash aisa hua hota-
nice post yar
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बहुत ही प्रेरक कहानी लिखी आपने , लिखते रहिये ...
बस यही पंक्ति याद आती है...
मैं एक कतरा हूं मेरा अलग वजूद तो है,
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है।
बस यही पंक्ति याद आती है...
मैं एक कतरा हूं मेरा अलग वजूद तो है,
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है।
bilkul sahi likha hai aapne jeevan ka sahi chitran kiya hai bahut badiya
bahut badiya likha hai
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