Thursday, August 27, 2009
स्वयं भू भगवान
प्रत्येक चीज की अपनी सीमाएं होती हैं, जिसका पालन किया जाना चाहिए। यही बात प्रकृति के दोहन के संदर्भ में निर्विरोध रूप से लागू होती है। प्रकृति का सामजस्य हमसे नहीं है। अपितु हमारे जीवन का संपूर्ण ताना-बाना उस पर आधारित है। प्राणी जगत की सत्ता, प्रकृति द्वारा प्रदत सौगातों पर ही निर्भर हैं, जिसे हमने अपने कौशल के माध्यम से उपयोग में लाना सीखा है।
लेकिन इसके इत्तर, अपने अद्यतन अनुसंधानों पर अत्यधिक विश्वास कर शायद हम इस वैज्ञानिक युग में खुद को स्वयं यू भगवान मानने की आदिम कल्पना को संकल्पना में परिवर्तित करने के मिथक प्रयास रहे हैं। सूक्ष्म अणु में व्याप्त असीम शक्ति को नियंत्रित कर, उसका प्रतिनिधित्व करके यह सोचना की हम सृष्टि के निर्यामक बन गए हैं, किसी फंतासी से कम नहीं है। कृत्रिम गर्भाधन, क्लोनिंग, अंतरिक्ष विज्ञान इत्यादि के क्षेत्र में अप्रतिम प्रगति अवश्य ही हुई, परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं निकाल लिया जाना की हम प्रकृति की सत्ता को चुनौती देने में समर्थ हो गए हैं। इस धरा पर वहीं सब कुछ होगा जो मनुष्य सम्मत होगा सोचना भी गलत है। वस्तुत: हमें ध्यान रखना होगा कि कल्याणमयी प्रकृति ने जो अनुपम सौगात हमें दी हैं, उसका वह अक्षय स्त्रोत ही हम समाप्त न कर दें।
वातावरण की दशाओं में आ रहे परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं रह-रहकर इस इसी तथ्य को उभासित कर रही है कि प्राणी जगत की उपस्थिति इस धरती पर रंगमंच पर करतब दिखलाने वाली कठपुतलियों से अधिक नहीं है।
प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण पाने में मनुष्य न केवल असमर्थ है अपितु उसके सम्मुख विवश भी है। गत~ कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं में हो रही वृद्धि को वैज्ञानिक निरंतर पर्यावरण में किए जाए जा रहे अनुचित हस्तक्षेप तथा ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए कोई भी देश तैयार नहीं दिखता। जो कि दु:खद विषय है। स्वयं भू भगवान बनकर प्रकृति को विना’ा के कागार पर पहुंचा के किसी नए गzह में जीवन की संभावना तला’ा करने से बेहतर है कि हम सब मिलकर पृथ्वी को बचाने का सार्थक प्रयास करें।
Saturday, February 7, 2009
चांद पर आशियाना ( व्यंग्य )
एक विदेशी कंपनी द्वारा चांद पर प्लांट काटकर बेचे जाने की खबर पढ़कर उन पारंगत प्रेमियों (दिवंगत नहीं, क्योंकि प्रेम अमर होता है, और इसलिए प्रेम करने वाले भी किस्से कहानियों में अमर हो ही जाते हैं। पारंगत इसलिए क्योंकि पहले तो एक-दूसरे को मिलने तथा बाद में प्रेम के प्रगाढ़ हो जाने पर एक-दूसरे को पाने के लिए तथा कभी अपवाद स्वरूप एक-दूसरे को छोड़ने के लिए अल्पमत वाली सरकार की तरह जोड़-तोड़ करते हैं) की आत्माओं को गहरी ठेस पहुंची होंगी जो सदियों से अपनी बपौती बने चांद को बिल्डर्स माफिया के कब्जें में फंसते हुए देख रहे होंगे। ये तो वास्तव में हद ही हो गई है। अब तो इसपर अखिल भारतीय प्रेमी-प्रेमिका मंच बनाकर, किसी महापंचायत की तरह महाअधिवेशन करने की आवश्यकता पड़ गई है। इस खबर को पढ़ते ही मेरे मन में ये विचार उस आकाशवाणी की तरह कौंधा जिसने प्राचीनकाल में कंस को भविष्य की आपदाओं से आगाह किया था। मुझे तो ये पूरा मामला डब्ल्यूटीओ की उन नीतियों से भी ज्यादा खतरनाक लगा, जोकि विकसित देशों के हितों की पैरवी के लिए गड़ी जाती हैं। अब बात यहां पर आ पहुंची है कि हमारे विशेषकर प्रेमी जोड़ों के आदर्श पूर्वज, हीर-रांझा, सोनी-महिवाल, लैला-मजनू आदि ने जहां अपने मुफ्त में आशियानें बनाएं वहां की पवित्र प्रेम में रंगी भूमि को ओने-पौने दामों में बेचा जा रहा है। ये सब देखकर उनके दिलों पर क्या बीतती होगी ये तो वो ही जानते होेंगे।
इस संसार में सबसे निरी प्राणी गधे को माना जाता है, मैं कुछ कारणों से प्रेमियों को मानता हूं। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो प्राय: कोमल भावनाओं की मिट्टी से बने ये प्राणी संसार में रहकर भी उससे उसी प्रकार पृथक रहते हैं जैसे पानी में रहकर भी मछली प्यासी ही रहती है। बेचारे एकांत की तलाश में परस्पर प्रेमालाप करने के लिए, इधर से उधर बिना पतंग की डोर की तरह अटकते-लटकते फिरते नजर आते हैं। 100 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में जब उन्हें एकांत नसीब नहीं होता, तो वे बिना किसी विरोधी पार्टी की तरह संसद के इर्द-गिर्द धरने-प्रदर्शन करने की अपेक्षा चुप-चाप चांद पर घर बसाने की योजना बना डालते हैं। अब कोई इस बात का रोना न रोयें कि ज्यादातर जोड़े छ: हफ्ते से अधिक एक साथ न रहकर (एक दूसरे को झेल सकने के सामथ्र्य के अभाव में)किसी दूसरे उम्मीदवार से नैन मटक्का शुरू कर देते हैं। अरे जब समय बदला है तो कुछ न कुछ परिवर्तन आज की पीढ़ी में भी आना स्वभाविक ही है। परंतु जैसे बिल्ली ने म्यांउ-म्यांउ करना नहीं छोड़ा है वैसे ही ये भी पार्टनर जितने भी बदले पर चांद पर घर बसाने की चाह हर बार निसंकोच ही रखते हैं। ऐसे में ये प्रेमियों की भावनाओं के साथ व्यवसायिक खिलवाड़ नहीं है तो और क्या है। हमारे साहित्यकार चांद के अंदर अपनी प्रेमिकाओं की छवि को तलाशते हैं भले ही नासा वालों को वहां गडडे और चट्टानों के सिवाय कुछ भी नजर नहीं आता . दशक-दो दशक पहले अंतरिक्ष यान भेजकर वैज्ञानिकों ने प्रेमियों के खिलाफ लामबद्ध होने का एक जरियां तक खोज डाला, उन्होंने अंतरिक्ष यान चांद पर भेजकर इस तथ्य को खोजा की न तो वहां पर आक्सीजन है और न ही पानी । बिना गुरुत्वाकर्षण शक्ति के व्यक्ति वहां फुदकता ही रहता है। आज के परिपेक्ष्य में देखे तो ये एक लंबी साजिश है प्रेमी-प्रेमिकाओं के खिलाफ वैज्ञानिकों और बिल्डरों की । वो इस प्रकार के तथ्य सामने रखकर उनका हौसला तोड़ना चाहते हैं। परंतु उन भले इंसानों को ये कौन समझायें की भैया जो खोज उन्होंने लाखों करोड़ों डघ्लर खर्च करके की है उसके बारे में तो हमारे प्रेमी समाज को पहले से ही पता है। चांद का ऐसा एटमोस्टफियर क्रिऐट करने में हमारे लवर लिजेंड का बहुत बड़ा हाथ है। जहां वे प्रेम की वास्तविकता से अवगत थे, वहीं उन्हें शादी के लडडू का भी ज्ञान था। कल को चांद पर घर बसाने के बाद, प्रेमिका के भरन-पोषण के लिए रोटी-लून के जुगाड़ के लिए पापड़ बेलने पड़े या फिर मेहबूबा के हाथों में घर का काम करते हुए छाले न पड़ जाएं, इसलिए उन्होंने ऐसी जगह पसंद की जहां इन चीजों का पंगा ही न हो। और वो बस फुदकते-फुदकते इधर से उधर प्रेममल्हार गाते रहें। अब इन बेचारों से चांद छिन गया तो क्या होगा। रात-दिन वो इसी के ख्वाब ही तो देखते रहते हैं। उनका जो होगा सो होगा पर प्यार के देवता क्यूपिड का क्या होगा जो अपने तीर मार-मार कर चांद की बस्ती को आबाद किए हुए हैं। यदि वहां पर व्यवसायिक गतिविधियां प्रारंभ हो गई तो अवैध निर्माण भी होंगे फिर निगम का बुल्ड़ोजर नहीं-नहीं। सहृदय प्रेमियों के साथ ऐसा नहीं होने दिया जा सकता है। वार्षिक बजट की तरह सरकार को संसद में प्रेमियों के हितों से संबंधित एक विशेष बजट को पास करना ही होगा तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रेमियों की स्थिति को ध्यान में रखकर एक सहमति भी बनवानी होगी ताकि प्रेमियों का आशियाना अक्षुण रह सकें। यदि सरकार प्रेमियों की इस मांग पर खरी नहीं उतरती तो आने वाले चुनावों में वे अपनी स्थिति समझ सकती है।
Wednesday, February 4, 2009
तो क्या खाए इंसान!
यह खबर उन लोगों के मुंह का स्वाद बिगाड़ सकती है जो तली चीजों के खाने के शौकीन हैं। सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट यानि सीएसई ने अपने एक ताजा अध्ययन मे खादय तेलों की उपयोगिता पर पश्नचिहन उकेर कर दिया है। सरएसई ने बाजार से खादय तेलों के विभिन्न ाडों के 30 से ज्यादा नमूने एकत्र कर उनमें टांस फैटी ऐसिड यानि की कृत्रिम चर्बी की जांच की। नतीजे चौकाने वाले निकले। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण के अनुसार सभी वनस्पति तेलों में जहां स्वास्थ्य के लिए खतरनाक टांस फैट ऐसिड की मात्रा 5 से 12 गुना तक अधिक पाई गई वहीं घी मे यह 5.3 प्रति’ात तक है जो अंतर्राष्टीय मानक से कई गुणा ज्यादा है।
हैरानी की बात यह है कि देश में वनस्पति तेलों के लिए न तो कोई मानक तय किए गए हैं और न ही कोई प्रशासनिक निगरानी तंत्र ही है।उल्लेखनीय है कि टांस फैटी ऐसिड के कारण है शरीर में अच्छे कोलोस्टोल की कमी हो जाती है। यह दिल के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ स्त्रियों मेें बांझपन तथा कैंसर जैसी घातक बिमारियां भी हो सकती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य क्या खाए। सिर्फ हवा-पानी के सहारे तो वह जीवित नहीं रह सकता और वो भी प्रदूषित ही है। जीवित रहने के लिए उसे भोजन की परम आवश्यक्ता होती है।परंतु खाने के लिए शुद्ध क्या बचा है। कभी सिंथेटिक दूध की खबरें सुर्खियों में आती हैं तो कभी सब्जियों की पैदावार रात ही रात में दुगनी करने के लिए रासायनिक पदार्थों के उपयोग की । पहले मिलावट के लिए आटे में नमक की कहावत कही जाती थी पर अब तो नमक में आटा मिलाने का चल पड़ा है जिसके बारे में सरकार को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा।
Friday, January 30, 2009
वसंत पंचमी
‘वसंत’ सुनते ही मन हिलोरे मारने लगता है, क्योंकि वसंत यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों से निर्मित शब्दमात्र नहीं है। वसंत अपने भीतर एक संपूर्ण संकल्पना संजोये हुए है जो विराट जीवन दर्शन का मूल है। वसंत मन को रोमांचित कर नवीन आशाओं के किसलय खिलाता है। इसलिए वसंत का महत्व सभी के लिए है। प्रकृति के लिए वसंत की क्या महत्ता है, यह उन वृक्षों-लताओं को देखकर लगाया जा सकता हैं जो शीत ऋतु में मृतप्राय: पड़े थे। वसंत के आगमन से उनमें नवीन कोपले आनी प्रारंभ हो गई । यानि उनमें नव जीवन का पुन: संचार होने के लक्षण उत्पन्न हो गए। यही तो वो कारण है कि वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती है। वसंत के आते ही सारा वातावरण मदमस्त हो जाता है। जड़ कर देनी वाली शीत ऋतु के बाद आने वाला यह मौसम बताता है कि यदि जीवन में यदि उत्साह न हो तो वो जिंदगी कैसी? जब मन में उत्साह होता है तो तभी हम कर्मठ होते हैं। देशकाल की यशोगाथा लिखने के लिए प्रवृत होते हैं। संभवत: यही कारण है कि ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वंदना भी इसी माह में होती है क्योंकि ज्ञान के अभाव में उत्साह के निरंकुश होने का भय रहता है। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी ने उत्साह से भरकर सूर्य देव को निगलने का प्रयास किया था।
ज्ञान उत्साह के मार्ग को नियंत्रित करता है। सात्विक ज्ञान और उत्साह का समायोजन ही तो कीर्ति का निर्माण करता है, वो कीर्ति जो युगों को प्रभावित करती है, प्रेरणास्त्रोत बनती है। तो आइये हम सब मिलकर इस उत्साह और ज्ञान के पर्व को मनाएं।
Saturday, January 24, 2009
एक जर्रे की कहानी
पिछले दिनों एक कहानी पढ़ी। कहानी एक जर्रे की। जर्रा जो एक मानव के पांव के नीचे आकर एक दार्शनिक की भांति जीवन दर्शन से अवगत कराता है। शायद यह कहानी आपको को भी अच्छी लगे।
कहानी का प्रारंभ कुछ यूं है कि एक दुखी रोता हुआ व्यक्ति अपनी धुन में चला जा रहा था कि अचानक उसका पैर एक जर्रे यानि धूल के एक कण पर पड़ा। पददलित होने की पीड़ा से वह कराह उठा और बोला-हे मानव मुझे और अधिक तिरस्कृत न कर। मत भूल, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आकाश में चमकते हुए सितारे टूटते हैं, पृथ्वी पर गिरते हैं और गिरने पर धुल ध्ूासरित हो जाते हैं। राजा रंक बन जाते हैं। देखते ही देखते महलों में रहने वाले झोपड़ियों में आ जाते हैं।सदा याद रख परिवर्तन प्रकृति का नियम है, कभी भी, कुछ भी हो सकता है। इसलिए निरन्तर प्रभु का धन्यवाद किया कर कि गुजरा हुआ पल आनन्दमय व्यतीत हुआ। पल पल जीवन का अवलोकन किया कर और हर पल के पश्चात ईश्वर का धन्यवाद किया कर। कुछ समय के लिए विराम लेने के पश्चात~ वह ज+र्रा फिर बोलने लगा। मैं भी एक दिन विश्व की उच्चतम चोटी का अंश था। बडे+-बडे+ प्रसिद्ध पर्वतारोही मेरी ओर लालसा भरी दृष्टि से देखा करते थे कि वह दिन कब आयेगा जब हम इस पर विजय पताका फैहरा पाएंगे, परन्तु मैं तो अजय था इसलिए निरन्तर गर्व में सिर उठाये रखता, कड़कती धूप और बर्फीली हवाओं को सहन करते हुए भी।परंतु समय के थपेड़ों ने प्रकृति के अन्य भागों की तरह मुझे भी प्रभावित किया। जब कड़कती धूप और कड़ाके की सर्दी को और अधिक सहन करने की शक्ति नहीं रही तो एक दिन उस चट~टान से अलग होकर गिर पड़ा। बस फिर क्या था, गिरा तो ऐसे गिरा कि पुन: उठ नही पाया। गिरने के उपरान्त मुझे याद आने लगा बीता हुआ समय। खैर! अब मुझे याद आने लगा अपना बीता हुआ मान-सम्मान। जब मैं चट~टान के साथ, अपने मूल के साथ जुड़ा हुआ था तो मेरा मान-सम्मान था। लोग मुझे ईष्र्या की दृष्टि से देखते थे। पर्वतारोही मुझ पर विजय प्राप्त करना चाहते थे और आस्तिक मेरे चरणों की पूजा किया करते थे। अब मुझे जुड़े रहने के महत्व का अहसास होने लगा। जुड़े रहने में कितना लाभ है, कितना मान-सम्मान है। एक छोटा सा पेच जब हवाई जहाज के साथ जुड़ा होता है तो उसकी निरन्तर सफाई की जाती है, वह खुले आकाश में घूमता है, उसका अपना महत्व होता है,उसकी उपयोगिता होती है। परन्तु जब वह पेच अलग हो जाता है तो वह हर पथिक की ठोकरें खाता है। एक कबाड़ी उसका मूल्य दो पैसे भी नहीं लगाता। पानी की एक बूंद जब तक सागर के साथ जुड़ी रहती है, वह सागर कहलाती है, परन्तु जब सागर से अलग होती है तब किसी एक व्यक्ति की प्यास बुझाने में भी असमर्थ रहती है।यही मेरे साथ भी हुआ। मैं तो जर्रा था इसलिए चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। लेकिन तुम तो मानव हो। इस सृष्टि के निमायक हो, तुम क्यों व्यथित हो। मानव की यह प्रवृति है कि बीते हुए समय को याद कर व्यथित होता है और भविष्य को संवारने की चिन्ता में रहता है। वर्तमान जिसे वह सुन्दर भी बना सकता है और उससे आनन्द भी प्राप्त कर सकता है उसकी अवेहलना करता है। भूल जाता है कि जिसका वर्तमान सुन्दर है उसका भविष्य तो सुन्दर होगा ही। जब तू यह समझ जाएगा और अपने अहम को त्याग कर परोपकार के कार्य करेगा तब तेरा जीवन भी आनन्दमय होगा, लोक सुखी रहेगा और परलोक भी सुभवना हो जायेगा। यह कहकर जर्रा चुप हो गया। मनुष्य को लगा कि उसके सभी दुखों का अंत हो गया और वह उस जर्रे को साथ ले अपना अहम त्याग अपने कर्म पथ पर अगसर हो गया।
Monday, January 12, 2009
बचपन की लोहड़ी
आज जब अपने कार्यालय पहुचा तो अपनी मेज पर लोहड़ी से संबंधित एक आकर्षक निमंत्रण पत्र देखा। निमंत्रणपत्र को देखते-देखते कब बचपन की स्मृतियां मस्तिष्क में चलचित्र की भांति घूमने लगी इसका अहसास तक भी नहीं हुआ। स्मृतियों के महासगर में गोते लगाते-लगाते अचानक से वो सभी मित्र याद आ गए जिनके साथ मिलकर खूब लोहड़ी मनाई थी। बचपन का वो आलम याद आते ही मन प्रफुल्लित हो उठा और मन से सुंदर-मुंदरिए हो....के बोल फूट पड़े। अब एक-दो लाइनों के अलावा कुछ टूटे फूटे बोल ही याद आते हैं। पर जब एक लंबे अंतराल के बाद जब आप किन्हीं पुरानी बातों को याद करते हैं तो मन खुशी से खुद ब खुद ही झूम उठता है। अब लग रहा है कि जीवन की भागदौड़ में समय कैसे बीत गया पता ही नहीें चला।
शायद अब जीवन का ढर्रा बदल गया है जिसके कारण हम अपनी जीविकोर्पाजन के साधनों में ही कदर व्यस्त हो गए हैं कि शेष सबकुछ रीत गया सा लगता है। इसके अतिरिक्त पहले जिस प्रकार से उत्सवों में सामुदायिक भागीदारी होती थी, शायद वह गुम हो गई है या गुम होती जा रही है।
बचपन में हम सभी दोस्त लोहड़ी मांगने के लिए अपनी कालोनी के सभी घरों में जाते थे। दरवाजे पर दस्तक देने के साथ ही जब घर के अंदर से आवाज आती थी कि कौन है....तो हम सभी एक साथ, एक स्वर में गाने लगते- सुंदर-मुंदरिए हो...। हमारे गाने से ही गृहस्वामी समझ जाता और प्राय उत्साह के साथ हमारा उत्साह बढ़ाते। फिर लोहड़ी के दिन पार्क में खूब सारी लकड़ियां एकत्र कर लोहड़ी जलाते। रेबड़ी,मूंगफली और मक्कई के प्रसाद से जेबे भरकर खूब नाचते...। आज एक बार फिर यार दोस्तों के साथ वही धूम मचाने का मन कर रहा है। बहरहाल आप सभी को लोहड़ी-मकर साक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
शायद अब जीवन का ढर्रा बदल गया है जिसके कारण हम अपनी जीविकोर्पाजन के साधनों में ही कदर व्यस्त हो गए हैं कि शेष सबकुछ रीत गया सा लगता है। इसके अतिरिक्त पहले जिस प्रकार से उत्सवों में सामुदायिक भागीदारी होती थी, शायद वह गुम हो गई है या गुम होती जा रही है।
बचपन में हम सभी दोस्त लोहड़ी मांगने के लिए अपनी कालोनी के सभी घरों में जाते थे। दरवाजे पर दस्तक देने के साथ ही जब घर के अंदर से आवाज आती थी कि कौन है....तो हम सभी एक साथ, एक स्वर में गाने लगते- सुंदर-मुंदरिए हो...। हमारे गाने से ही गृहस्वामी समझ जाता और प्राय उत्साह के साथ हमारा उत्साह बढ़ाते। फिर लोहड़ी के दिन पार्क में खूब सारी लकड़ियां एकत्र कर लोहड़ी जलाते। रेबड़ी,मूंगफली और मक्कई के प्रसाद से जेबे भरकर खूब नाचते...। आज एक बार फिर यार दोस्तों के साथ वही धूम मचाने का मन कर रहा है। बहरहाल आप सभी को लोहड़ी-मकर साक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
Monday, January 5, 2009
दिल्ली में कड़ाके की ठंड
कई सालों के बाद राजधानी दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। दिल्ली की सुबह कोहरे की चादर से ढकी होती है तो शाम ठिठुरन वाली ठंड से जकड़ी होती है और ऐसे मौसम में जरा सी लापरवाही बिमारी को न्यौता दे देेती है। खासतौर पर नवजात बच्चों के लिए यह समय काफी खतरनाक है। सर्दी से जहां उन्हें बचाने की जरूरत है वहीं आवश्यकता इस बात की भी है कि यदि बच्चे को ठंड लग गई है तो उसका तुरंत ही इलाज करवाएं, क्योंकि आपकी बरती गई उपेक्षा से बच्चे को निमोनिया भी हो सकता है। इसलिए बच्चों के संदर्भ में विशेष सावधानी बरतें। यदि आपके बच्चे को ठंड लगी हो तो और आपको निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत ही डाक्टर से सलाह लें।
निमोनिया के लक्षण
बुखार होना
सांस लेने में दिक्कत
कमजोरी महसूस होना
सांस लेते समय छाती से आवाज निकलना
बोलते समय सीटी की आवाज निकलना
छाती का अंदर जाना
बार बार प्यास लगना
उपाय
हर समय शरीर पर गर्म कपड़ा रख
संक्रमण वाले व्यक्ति के पास नहीं बैठें
स्वस्छ पानी पिएं
निमोनिया के लक्षण
बुखार होना
सांस लेने में दिक्कत
कमजोरी महसूस होना
सांस लेते समय छाती से आवाज निकलना
बोलते समय सीटी की आवाज निकलना
छाती का अंदर जाना
बार बार प्यास लगना
उपाय
हर समय शरीर पर गर्म कपड़ा रख
संक्रमण वाले व्यक्ति के पास नहीं बैठें
स्वस्छ पानी पिएं
Wednesday, December 31, 2008
दस्विदानिया-२००८ dasvidaniya
नया वर्ष, नई उमंगे लेकर आया है। गत~ वर्ष की दुखदायी घटनाओं से भीगी पलकों को पोंछकर हम सब तैयार हैं नए वर्ष में नई खुशियों के सपने सजाने और उन्हें पूरा करने के लिए। इस कड़ी में हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है। जो आज है, वो कल नहीं था और न ही कल होगा। इसलिए अपने आज से बेहतर कल को बनाने के लिए जहां निरंतर परिश्रम की जरूरत हैं, वहीं नवीन चुनौतियों का सामना का सामना करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्म विश्वास की भी।
लेकिन इस सब के मध्य यह भी आवश्यक है कि हम बीते वर्ष ;बीत रहे वर्षद्ध की उन घटनाओं पर भी नजर डाले जिन्होंने हमारे मन-मस्तिष्क को झकझोरा। उस समय को याद कर अपनी मौन श्रद्धांजलि दंे, जब हमारा âदय दर्द से चीत्कार कर उठा था। उन पलों को पुन: भविष्य में जीने की आस रखे जब हमारा सिर गर्व से तन गया था। बीते वर्ष की इन्हीं भूली-बिसरी यादों को आपके सामने लेकर आए है दस्विदानिया-2008 में।
वैश्विक मंदी और धराशायी भारतीय शेयर बाजार: विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाले अमेरिका में सब प्राइम संकट ऐसा भूचाल लाया कि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की चूले हिल गर्इं। वैश्विक मंदी के इस चक्रव्यूह का भेदन करने के प्रयास निरंतर जारी हंै। अमेरिका के सबसे बड़े और पुराने बैंक लेहमैन और मेरिल लिंच इस आर्थिक सुनामी की भेंट चढ़ गए।
इस आर्थिक मंदी के कारण कुलांचे मार रहा भारतीय शेयर बाजार भी बेदम हो गया। विदेशी निवेशकों के शेयर बाजार से हाथ खींचने के कारण बीएसई औंधे मुंह जमीन पर आ गिरा। पहले जहां सेंसेक्स के 25-27 हजार तक पहुंचने के कयास लगाए जा रहे थे, वहीं बाद में सेंसेक्स के पांच हजारी होने की बात होने लगी। रातो-रात अमीर होने की चाह रखने वालों को शेयर बाजार ने जोर का झटका दिया और करोड़ों रुपये शेयर बाजार में डूब गए।
पहले लगी, फिर बुझी तेल की आग: महंगाई को बढ़ाने-घटाने में कच्चा तेल भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वर्ष 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में रिकाWर्ड वृद्धि और कमी हुई। कच्चे तेल के भाव वर्ष के मध्य में जहां 149 डाWलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे, वहीं वर्ष के अंत तक इनकी कीमतें मात्र 36 डाWलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई।
महंगाई की मार: वर्ष 2008 में मुदzास्फीति दर दो अंकों में पहुंच गई और आम आदमी को महंगाई की मार सहनी पड़ी। मुदzास्फीति की दर के 12 प्रतिशत के पास पहुंचने से सरकार ने आनन-फानन में अनेक रियायती कदम उठाए। कच्चे तेल की घटती कीमतों ने सरकार का साथ दिया और दिसंबर माह में मुदzास्फीति 6-7 प्रतिशत के बीच आ गई।
सबसे बड़ा आतंकी हमला: माया नगरी कहलाने वाली मुंबई के लिए 26 नवंबर की रात खौफ की रात बनकर आई। आतंकवादियों ने पहली बार छुपकर वार करने की जगह खुल्लम-खुल्ला मंुबई में एक साथ कई स्थानों पर हमला किया और 200 से अधिक लोगों को मार डाला। 10 आतंकवादियों ने मुंबई के चर्चित स्थानों पर गोलाबारी की। ताज तथा ट्राइडेंट होटल तथा नरीमन प्वाइंट को अपने कब्जे में कर लिया जिसे मुक्त कराने में कमांडों को लगभग 60 घंटे लगे। इस आतंकवादी हमले के कारण गृहमंत्री शिवराज पाटिल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख तथा गृहमंत्री आर.आर.पाटिल को अपने-अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
संसद में नोट: वामदलों के केंदzीय सरकार से समर्थन लेने के बाद अल्प मत में आई यूपीए सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना पड़ा। कुछ सांसदों ने सरकार पर उन्हें खरीदने का आरोप लगाया और सदन में नोटों के बंडल दिखलाए।
फैशन मंत्री: राजधानी दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद स्थिति का जायजा लेने पहुंचे गृहमंत्री शिवराज पाटिल द्वारा तीन-तीन बार ड्रेस बदलने के कारण मीडिया ने उनकी बहुत किरकिरी हुई।
मुंबई राज: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा मुंबई में उत्तर वासियों के विरूद्ध छेड़े गए आंदोलन की देश भर में जमकर आलोचना हुई।
दिल्ली में शीला की हैट्रिक: 4 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को कांगzेस ने गहरा झटका दिया। कांगzेस जहां शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में अपनी सत्ता को बचाने में कामयाब रही, वहीं राजस्थान में उसने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। मिजोरम में भी कांगzेस की वापिसी हुई। भाजपा की दिल्ली विधानसभा में परचम लहराने की तमाम कवायद खोखली साबित हुई। पार्टी की अपने वरिष्ठ सांसद विजय मल्होत्रा को दिल्ली विधानसभा चुनावों में सीएम इन वेटिंग का झंडा पकड़वाना भारी पड़ा। मल्होत्रा अपनी सीट तो बचा गए, परंतु पार्टी चुनावों में हार गई। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह अपनी-अपनी सरकार पुन: बनाने में कामयाब रहे। जम्मू-कश्मीर में कांगzेस-नैकां का गठबंधन हुआ।
नहीं आई नैनो: लोगों का लखटकिया कार पाने का सपना, सपना ही बनकर रह गया। पश्चिम बंगाल में तीवz विरोध के कारण रतन टाटा की नैनो इस वर्ष लाने की योजना अधर में लटक गई।
खत्म हुआ फैब फोर का युग: भारतीय क्रिकेट में फेवरेट फोर युग का अंत सौरभ गांगुली और अनिल कुंबले के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के साथ खत्म हो गया। गांगुली आईपीएल के 20-20 क्रिकेट मैचों में फिलहाल नजर आएंगे।
सचिन ने तोड़ा रिकाWर्ड: भारतीय क्रिकेट के गाWड कहे जाने वाले सचिन तेंडुलकर ने टेस्ट मैचांे में सबसे ज्यादा रन बनाने का श्रेय हासिल किया।
आईपीएल में छाया वाWर्न का जादू: स्पिन गेंदबाजी के जादूगर कहे जाने वाले शेन वाWर्न का जादू इंडियन प्रीमियर लीग में सबके सिर चढ़कर बोला। आयोजन में सबसे कमजोर टीम का नेतृत्व करने वाले शेन वाWर्न ने टीम की एकजुटता तथा अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राजस्थान राWयल्स को आईपीएल का खिताब दिलवाया।
धोनी की धूम: भारतीय क्रिकेट जगत में महेंदz सिंह धोनी की धूम मची हुई है। धोनी वन-डे, टेस्ट तथा 20-20 मैचों में भारतीय टीम के कप्तान हैं।
लगा निशाना: चीन ओलंपिक भारत के लिए यादगार बना। ओलंपिक में निशानेबाज अभिनव बिंदzा ने पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता। वहीं बाWक्सिंग में विजेंदz तथा कुश्ती में सुशील कुमार ने कास्य पदक जीते।
कोसी में बाढ़: बिहार राज्य को कोसी में आई भीषण बाढ़ से जूझना पड़ा। बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया।
सीमा पर तनाव: पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दवाब बना हुआ है जिसके कारण सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ गई है।
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
नेपाल में राजशाही की जगह लोकतंत्र: नेपाल में राजवंश का शासन समाप्त करके माओवादियों द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से सरकार बनाई।
पाकिस्तान में जरदारी राष्ट्रपति: परवेश मुशर्रफ के स्थान पर स्व. बेनजीर भुट~टो के पति आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बने।
बराक ओबामा: अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय बराक ओबामा ने जोड़ दिया है। ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति हैं।
परमाणु करार: भारत तथा अमेरिका के मध्य होने वाला 123 परमाणु करार अंतत: सिरे चढ़ ही गया। हालांकि इस करार को लेकर विपक्षी दलों की अपनी आशंकाएं है। उनका मानना है कि इस करार से भारत को कई प्रतिबंध लग सकते हंै।
बुश पर जूता फेंका: अमेरिकी राष्ट्रपति जाWर्ज बुश पर इराक में आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान जूते फैंके गए। जूते फैंकने वाले इराकी शख्स के जूतों की कीमत करोड़ों में लगाई जा रही है।
महाप्रयोग: जिनेवा में वैज्ञानिकों ने एक महाप्रयोग कर बzãांड के रहस्यों को सुलझाने की पहल की। इस प्रयोग के तहत लगभग 27 किलोमीटर लंबी एक सुरंग जमीन के नीचे बनाई गई। इस महाप्रयोग से पृथ्वी के नष्ट हो जाने के कयास लगाए गए।
एलियन: परगzही यानि एलियन के अस्तित्व को लेकर पूरे वर्ष ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया सक्रिय रहा।
लेकिन इस सब के मध्य यह भी आवश्यक है कि हम बीते वर्ष ;बीत रहे वर्षद्ध की उन घटनाओं पर भी नजर डाले जिन्होंने हमारे मन-मस्तिष्क को झकझोरा। उस समय को याद कर अपनी मौन श्रद्धांजलि दंे, जब हमारा âदय दर्द से चीत्कार कर उठा था। उन पलों को पुन: भविष्य में जीने की आस रखे जब हमारा सिर गर्व से तन गया था। बीते वर्ष की इन्हीं भूली-बिसरी यादों को आपके सामने लेकर आए है दस्विदानिया-2008 में।
वैश्विक मंदी और धराशायी भारतीय शेयर बाजार: विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाले अमेरिका में सब प्राइम संकट ऐसा भूचाल लाया कि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की चूले हिल गर्इं। वैश्विक मंदी के इस चक्रव्यूह का भेदन करने के प्रयास निरंतर जारी हंै। अमेरिका के सबसे बड़े और पुराने बैंक लेहमैन और मेरिल लिंच इस आर्थिक सुनामी की भेंट चढ़ गए।
इस आर्थिक मंदी के कारण कुलांचे मार रहा भारतीय शेयर बाजार भी बेदम हो गया। विदेशी निवेशकों के शेयर बाजार से हाथ खींचने के कारण बीएसई औंधे मुंह जमीन पर आ गिरा। पहले जहां सेंसेक्स के 25-27 हजार तक पहुंचने के कयास लगाए जा रहे थे, वहीं बाद में सेंसेक्स के पांच हजारी होने की बात होने लगी। रातो-रात अमीर होने की चाह रखने वालों को शेयर बाजार ने जोर का झटका दिया और करोड़ों रुपये शेयर बाजार में डूब गए।
पहले लगी, फिर बुझी तेल की आग: महंगाई को बढ़ाने-घटाने में कच्चा तेल भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वर्ष 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में रिकाWर्ड वृद्धि और कमी हुई। कच्चे तेल के भाव वर्ष के मध्य में जहां 149 डाWलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे, वहीं वर्ष के अंत तक इनकी कीमतें मात्र 36 डाWलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई।
महंगाई की मार: वर्ष 2008 में मुदzास्फीति दर दो अंकों में पहुंच गई और आम आदमी को महंगाई की मार सहनी पड़ी। मुदzास्फीति की दर के 12 प्रतिशत के पास पहुंचने से सरकार ने आनन-फानन में अनेक रियायती कदम उठाए। कच्चे तेल की घटती कीमतों ने सरकार का साथ दिया और दिसंबर माह में मुदzास्फीति 6-7 प्रतिशत के बीच आ गई।
सबसे बड़ा आतंकी हमला: माया नगरी कहलाने वाली मुंबई के लिए 26 नवंबर की रात खौफ की रात बनकर आई। आतंकवादियों ने पहली बार छुपकर वार करने की जगह खुल्लम-खुल्ला मंुबई में एक साथ कई स्थानों पर हमला किया और 200 से अधिक लोगों को मार डाला। 10 आतंकवादियों ने मुंबई के चर्चित स्थानों पर गोलाबारी की। ताज तथा ट्राइडेंट होटल तथा नरीमन प्वाइंट को अपने कब्जे में कर लिया जिसे मुक्त कराने में कमांडों को लगभग 60 घंटे लगे। इस आतंकवादी हमले के कारण गृहमंत्री शिवराज पाटिल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख तथा गृहमंत्री आर.आर.पाटिल को अपने-अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
संसद में नोट: वामदलों के केंदzीय सरकार से समर्थन लेने के बाद अल्प मत में आई यूपीए सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना पड़ा। कुछ सांसदों ने सरकार पर उन्हें खरीदने का आरोप लगाया और सदन में नोटों के बंडल दिखलाए।
फैशन मंत्री: राजधानी दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद स्थिति का जायजा लेने पहुंचे गृहमंत्री शिवराज पाटिल द्वारा तीन-तीन बार ड्रेस बदलने के कारण मीडिया ने उनकी बहुत किरकिरी हुई।
मुंबई राज: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा मुंबई में उत्तर वासियों के विरूद्ध छेड़े गए आंदोलन की देश भर में जमकर आलोचना हुई।
दिल्ली में शीला की हैट्रिक: 4 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को कांगzेस ने गहरा झटका दिया। कांगzेस जहां शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में अपनी सत्ता को बचाने में कामयाब रही, वहीं राजस्थान में उसने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। मिजोरम में भी कांगzेस की वापिसी हुई। भाजपा की दिल्ली विधानसभा में परचम लहराने की तमाम कवायद खोखली साबित हुई। पार्टी की अपने वरिष्ठ सांसद विजय मल्होत्रा को दिल्ली विधानसभा चुनावों में सीएम इन वेटिंग का झंडा पकड़वाना भारी पड़ा। मल्होत्रा अपनी सीट तो बचा गए, परंतु पार्टी चुनावों में हार गई। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह अपनी-अपनी सरकार पुन: बनाने में कामयाब रहे। जम्मू-कश्मीर में कांगzेस-नैकां का गठबंधन हुआ।
नहीं आई नैनो: लोगों का लखटकिया कार पाने का सपना, सपना ही बनकर रह गया। पश्चिम बंगाल में तीवz विरोध के कारण रतन टाटा की नैनो इस वर्ष लाने की योजना अधर में लटक गई।
खत्म हुआ फैब फोर का युग: भारतीय क्रिकेट में फेवरेट फोर युग का अंत सौरभ गांगुली और अनिल कुंबले के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के साथ खत्म हो गया। गांगुली आईपीएल के 20-20 क्रिकेट मैचों में फिलहाल नजर आएंगे।
सचिन ने तोड़ा रिकाWर्ड: भारतीय क्रिकेट के गाWड कहे जाने वाले सचिन तेंडुलकर ने टेस्ट मैचांे में सबसे ज्यादा रन बनाने का श्रेय हासिल किया।
आईपीएल में छाया वाWर्न का जादू: स्पिन गेंदबाजी के जादूगर कहे जाने वाले शेन वाWर्न का जादू इंडियन प्रीमियर लीग में सबके सिर चढ़कर बोला। आयोजन में सबसे कमजोर टीम का नेतृत्व करने वाले शेन वाWर्न ने टीम की एकजुटता तथा अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राजस्थान राWयल्स को आईपीएल का खिताब दिलवाया।
धोनी की धूम: भारतीय क्रिकेट जगत में महेंदz सिंह धोनी की धूम मची हुई है। धोनी वन-डे, टेस्ट तथा 20-20 मैचों में भारतीय टीम के कप्तान हैं।
लगा निशाना: चीन ओलंपिक भारत के लिए यादगार बना। ओलंपिक में निशानेबाज अभिनव बिंदzा ने पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता। वहीं बाWक्सिंग में विजेंदz तथा कुश्ती में सुशील कुमार ने कास्य पदक जीते।
कोसी में बाढ़: बिहार राज्य को कोसी में आई भीषण बाढ़ से जूझना पड़ा। बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया।
सीमा पर तनाव: पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दवाब बना हुआ है जिसके कारण सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ गई है।
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
नेपाल में राजशाही की जगह लोकतंत्र: नेपाल में राजवंश का शासन समाप्त करके माओवादियों द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से सरकार बनाई।
पाकिस्तान में जरदारी राष्ट्रपति: परवेश मुशर्रफ के स्थान पर स्व. बेनजीर भुट~टो के पति आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बने।
बराक ओबामा: अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय बराक ओबामा ने जोड़ दिया है। ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति हैं।
परमाणु करार: भारत तथा अमेरिका के मध्य होने वाला 123 परमाणु करार अंतत: सिरे चढ़ ही गया। हालांकि इस करार को लेकर विपक्षी दलों की अपनी आशंकाएं है। उनका मानना है कि इस करार से भारत को कई प्रतिबंध लग सकते हंै।
बुश पर जूता फेंका: अमेरिकी राष्ट्रपति जाWर्ज बुश पर इराक में आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान जूते फैंके गए। जूते फैंकने वाले इराकी शख्स के जूतों की कीमत करोड़ों में लगाई जा रही है।
महाप्रयोग: जिनेवा में वैज्ञानिकों ने एक महाप्रयोग कर बzãांड के रहस्यों को सुलझाने की पहल की। इस प्रयोग के तहत लगभग 27 किलोमीटर लंबी एक सुरंग जमीन के नीचे बनाई गई। इस महाप्रयोग से पृथ्वी के नष्ट हो जाने के कयास लगाए गए।
एलियन: परगzही यानि एलियन के अस्तित्व को लेकर पूरे वर्ष ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया सक्रिय रहा।
Wednesday, December 24, 2008
जूता महात्मय
अभी तक तो हम इस गलफत में थे कि मात्र अपने ही देश में जूते को तव्ज्जों दी जाती है, परंतु अब जाकर पता चला कि संपूर्ण विश्व ही जूतामय है। संपूर्ण विश्व जूते में है और जूता विश्व में। जूता वास्तविकता में ग्लोबल है।
जूतों की सर्वव्यापक महत्ता को जानकर अब मजनूओं, कविया ेंऔर नेताओं के प्रति आगाध श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाता है, जो अक्सर जूतों का रसास्वादन करते रहते हैं। पहले जिन्हें तुच्छ समझता था, अब उनकी अहमियत का पता चलता है।
आदिकाल से लेकर आधुनिककाल तक के साहित्य पर नजर दौड़ाने पर एक भी ऐसा उच्चकोटि का साहित्यकार नहीं मिलता, जिसने जूते के महत्व को जानकर उसके गुणों का बखान किया हो।
प्रेमिकाओं के नख-शिख सौंदर्य का ही वर्णन करके चुक जाने वाले साहित्यकार कभी-भी जूते में निहित सौंदर्य और उसके बहु आयामी उपयोग को समझ ही नहीं पाए। वो तो जूते को पांव की जूती ही समझते रह गए।
भला हो बुश साहब का जो अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम दिनों में जूते को महत्व दिलवा गए वर्ना अमेरिकी हवाई अड~डों पर अपने कपड़े-जूते सब कुछ उतार देने वाले लोग तो इस अहमियत से अछूते ही रहे।
यह बुश साहब की ही करामात है जिनके चाहने या न चाहने पर भी आर्थिक मंदी के महादौर में संपूर्ण विश्व को पता चल गया कि एक जूता आदमी को करोड़पति भी बना सकता है। अब तो यह लगने लगा है कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज आग या पहिया को न मानकर जूते को ही माननी चाहिए। जूते जब चाहें पहनों और जब चाहों चलाओ। देखा जाए तो जूता जहां पैरों के लिए ढाल है, तो वहीं यह मिसाइल बनकर दूर तक वार करने में भी सक्षम हैं। हां, इतना अवश्य है कि जूते की मारक क्षमता और तय दूरी फैंकने वाले की हिम्मत और शारीरिक ताकत पर ही निर्भर है। चूंकि अब तक जूतों को त्याज्य मानकर उन पर कोई सटीक अनुसंधान नहीं हुआ इसलिए उन पर कोई ऐसी दिशानिर्देशक चिप लगाने की व्यवस्था नहीं हो सकी जिससे वो ठीक निशाने पर लगे। उम्मीद की जा सकती है कि शीघz ही इस पर भी गहन अनुसंधान होगा और बाजारों में ऐसे जूते मिलने लगेंगे।
वर्तमान की घटनाओं को देखते हुए बोर्ड की परीक्षाओं में जुटे बच्चों को भी जूते की उपयोगिता के संदर्भ में अपनी जानकारी को परिपक्व करना चाहिए, ताकि परीक्षा में इस प्रकार कोई निबंध लिखने को मिलता है तो उन्हें परेशानी न हो।
जूतों की सर्वव्यापक महत्ता को जानकर अब मजनूओं, कविया ेंऔर नेताओं के प्रति आगाध श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाता है, जो अक्सर जूतों का रसास्वादन करते रहते हैं। पहले जिन्हें तुच्छ समझता था, अब उनकी अहमियत का पता चलता है।
आदिकाल से लेकर आधुनिककाल तक के साहित्य पर नजर दौड़ाने पर एक भी ऐसा उच्चकोटि का साहित्यकार नहीं मिलता, जिसने जूते के महत्व को जानकर उसके गुणों का बखान किया हो।
प्रेमिकाओं के नख-शिख सौंदर्य का ही वर्णन करके चुक जाने वाले साहित्यकार कभी-भी जूते में निहित सौंदर्य और उसके बहु आयामी उपयोग को समझ ही नहीं पाए। वो तो जूते को पांव की जूती ही समझते रह गए।
भला हो बुश साहब का जो अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम दिनों में जूते को महत्व दिलवा गए वर्ना अमेरिकी हवाई अड~डों पर अपने कपड़े-जूते सब कुछ उतार देने वाले लोग तो इस अहमियत से अछूते ही रहे।
यह बुश साहब की ही करामात है जिनके चाहने या न चाहने पर भी आर्थिक मंदी के महादौर में संपूर्ण विश्व को पता चल गया कि एक जूता आदमी को करोड़पति भी बना सकता है। अब तो यह लगने लगा है कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज आग या पहिया को न मानकर जूते को ही माननी चाहिए। जूते जब चाहें पहनों और जब चाहों चलाओ। देखा जाए तो जूता जहां पैरों के लिए ढाल है, तो वहीं यह मिसाइल बनकर दूर तक वार करने में भी सक्षम हैं। हां, इतना अवश्य है कि जूते की मारक क्षमता और तय दूरी फैंकने वाले की हिम्मत और शारीरिक ताकत पर ही निर्भर है। चूंकि अब तक जूतों को त्याज्य मानकर उन पर कोई सटीक अनुसंधान नहीं हुआ इसलिए उन पर कोई ऐसी दिशानिर्देशक चिप लगाने की व्यवस्था नहीं हो सकी जिससे वो ठीक निशाने पर लगे। उम्मीद की जा सकती है कि शीघz ही इस पर भी गहन अनुसंधान होगा और बाजारों में ऐसे जूते मिलने लगेंगे।
वर्तमान की घटनाओं को देखते हुए बोर्ड की परीक्षाओं में जुटे बच्चों को भी जूते की उपयोगिता के संदर्भ में अपनी जानकारी को परिपक्व करना चाहिए, ताकि परीक्षा में इस प्रकार कोई निबंध लिखने को मिलता है तो उन्हें परेशानी न हो।
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